
सरकारी डॉक्टरों की मनमानी पर लगाम ही चिकित्सालयों में स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की पहली शर्त
गुना से गौरव भट्ट की विशेष रिपोर्ट
गुना: प्रदेश के जिला चिकित्सालयों के साथ साथ गुना जिले के शासकीय जिला चिकित्सालय की स्वास्थ्य व्यवस्था दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है। गाँव कस्बों से लेकर जिला अस्पतालों तक मरीजों की सबसे बड़ी शिकायत यही है कि डॉक्टर समय पर उपलब्ध नहीं होते और गुणवत्तापूर्ण इलाज नहीं मिलता। इसका सबसे बड़ा कारण है सरकारी डॉक्टरों को मिली निजी प्रैक्टिस (निजी चिकित्सा सेवा) की छूट।अधिकांश डॉक्टर सुबह अस्पताल में औपचारिकता निभाते हैं और शाम को अपने निजी क्लीनिक पर पूरा ध्यान लगाते हैं। नतीजा यह कि गरीब और ग्रामीण मरीजों को न समय मिलता है, न सही इलाज। कई बार तो उन्हें जांच और दवाइयों के लिए डॉक्टरों के निजी क्लीनिक की ओर भेजा जाता है। यह प्रवृत्ति न केवल जनता के अधिकारों के साथ अन्याय है बल्कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को खोखला कर रही है।
दिल्ली, पंजाब और कई अन्य राज्यों ने इस समस्या को समय रहते पहचाना और सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाई। वहाँ डॉक्टरों को ग़ैर-प्रैक्टिस भत्ता (Non Practicing Allowance) देकर पूरे समय सरकारी सेवा में उपलब्ध कराया जाता है। यही कारण है कि केंद्रीय संस्थानों जैसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIMS) और सफदरजंग अस्पताल में बेहतर सेवाएँ मिलती हैं।
मध्यप्रदेश में चिकित्सकीय महाविद्यालय (मेडिकल कॉलेज) शिक्षकों के लिए तो निजी प्रैक्टिस प्रतिबंधित है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टरों को मिली छूट ने पूरे तंत्र को असंतुलित कर दिया है। यह सवाल टालना अब संभव नहीं कि जब डॉक्टरों को वेतन, भत्ते और सुविधाएं जनता के कर से मिलती हैं, तो वे निजी प्रैक्टिस से अतिरिक्त कमाई क्यों?
जरूरी है कि मध्यप्रदेश सरकार दिल्ली की तर्ज पर कदम उठाते हुए सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए। जो डॉक्टर नियम तोड़ें, उन पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो। साथ ही डॉक्टर- मरीज अनुपात और संसाधनों को मज़बूत किया जाए।
प्रदेश की जनता का डॉक्टर, जनता का सेवक होना चाहिए – क्लीनिक का व्यापारी नहीं। स्वास्थ्य सुधार की दिशा में यह सबसे पहला और सबसे बड़ा कदम होगा।

मो – 8770101903
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