पितृ पक्ष पर विशेष: पितरों का श्राद्ध तभी सार्थक है…. जब जीवित अवस्था में उनकी समुचित सेवा की हो

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पितृ पक्ष पर विशेष: पितरों का श्राद्ध तभी सार्थक है….
जब जीवित अवस्था में उनकी समुचित सेवा की हो

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शिक्षाविद रमेशचंद्र चन्द्र

प्रस्तुति डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर

गणेश विसर्जन और अनंत चतुर्दशी के साथ ही वर्ष का विशेष पखवाड़ा पितृ पक्ष आया है ओर जहां समाज और परिवार जन अपने अपने पितरों को स्मरण कर तिथि पर श्राद्ध करते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं वहीं पुराणों के अनुसार पितरों भी आशा करते हैं और पधार कर प्रसन्नता से आशीष प्रदान करते हैं ।

इस बार पूर्णिमा श्राद्ध चन्द्र ग्रहण सूतक पूर्व में आया है श्राद्ध पक्ष 21 सितंबर तक रहेगा अंतिम दिवस सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध होगा ।

श्राद्ध हमेशा श्रद्धा के साथ करना चाहिए ना कि औपचारिकता अथवा पूर्वजों के डर से।
सनातन परंपरा में पितृपक्ष को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या के दौरान इस पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध, तर्पण आदि का विधान है। मान्यता है कि पितृपक्ष में श्रद्धा के अनुसार श्राद्ध करके हम पितरों के कर्ज को चुकाने का प्रयास करते हैं। मान्यता यह भी है कि श्राद्ध के दौरान किसी ब्राह्मण को कराया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है, लेकिन क्या आपको पता है कि श्राद्ध के दौरान किसी ब्राह्मण को अपने घर में आमंत्रित करने से लेकर भोजन कराकर विदा करने को लेकर भी कुछ नियम बने हुए हैं, यदि नहीं तो आइए इसे विस्तार से जानते हैं।

जिस प्रकार गायों के झुंड में बछड़ा अपनी मां को ढूंढ लेता है तथा जैसे एक प्रेगनेंट मादा या स्त्री स्वयं भोजन खाकर गर्भ में पल रहे अपनी संतान को पोषक आहार का प्रेषण करती है, इसी तरह श्राद्ध पक्ष में अपने पितृ भी अपने संबंधियों को ढूंढ कर उनके द्वारा प्रदत्त भोजन को विभिन्न रूपों में ग्रहण करते हैं।

जब कोई ब्राह्मण श्राद्ध पक्ष में भोजन करने के लिए आमंत्रित किया जाता है तो उसमें अपने माता-पिता का स्वरूप या मृतक के स्वरूप के दर्शन चाहिए।

क्योंकि पितृगण, श्राद्ध पक्ष में तिथि के अनुसार वायु रूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं तथा जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता तब तक वह वहीं भूख प्यास से व्याकुल होकर खड़े रहते हैं एवं सूर्यास्त के पश्चात निराश होकर दुखित मन से अपने वंशजों की निंदा करते हुए लंबी-लंबी सांस खींचते हुए अपने-अपने लोकों में चले जाते हैं। इसलिए श्राद्ध तिथि के दिन प्रयत्न पूर्वक श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि निर्धारित तिथि पर संबंधित पूर्वज का श्राद्ध, पूर्ण श्रद्धा तथा सम्मानपूर्वक किया जाता है तो पितृ अपने संपूर्ण परिवार को सुख तथा समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करके जाते हैं, ऐसे परिवारों को कभी भी पितृ- दोष नहीं लगता।

श्राद्ध पक्ष में जिस ब्राह्मण को अथवा ब्राह्मणी को हम भोजन करने के लिए आमंत्रित करते हैं उनका चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह केवल जाति से ही ब्राह्मण ना हो किंतु वह नियमित कर्मकांड करने वाला पूजा पाठी तथा सात्विक स्वभाव का हो। जो आचरण एवं कर्म से भी ब्राह्मण प्रकट होता हो, ऐसे ही ब्राह्मण को भोजन के लिए आमंत्रित करना चाहिए तो वह श्राद्ध अधिक सार्थक होता है।

श्राद्ध तिथि पर किसी प्रकार का गृह कलेश, क्रोध, तनाव नहीं होना चाहिए तथा प्रसन्नतापूर्वक पवित्रता एवं शांति के साथ भोजन बनाना चाहिए।

श्राद्ध में तामसी वस्तुएं जैसे लहसुन, प्याज, गरम मसाले का उपयोग न करके सब्जियों में भी
बंद गोभी, बैंगन, हरा कद्दू आलू इत्यादि, मांस या मदिरा का उपयोग नहीं करना चाहिए, भले ही वह मृत आत्मा को प्रिय क्यों ना हो।

उड़द की दाल, मसूर की दाल सहित भोजन में एक दूसरे का विपरीत परिणाम देने वाले पकवान नहीं बनाना चाहिए।
श्राद्ध की तिथि के दिन प्रातः काल 11:00 से 12 के बीच एक पाठ पर मृतक का चित्र रखकर तर्पण करना चाहिए और यदि तर्पण विधि ना आती हो तो जलते हुए कंडे पर घी-शक्कर तथा खीर में से चावल निकाल कर धूप ध्यान कर देना चाहिए तथा मृत दिव्य आत्मा का हाथ जोड़कर आवाह्न करते हुए भोजन के लिए सादर आमंत्रित करना चाहिए।

निर्मित भोजन का एक-एक हिस्सा गाय, कुत्ते, चींटी और कौवे के लिए अलग से एक पत्ते पर या दोनें में रखना चाहिए।
क्योंकि शास्त्र के अनुसार कुत्ता जल तत्व का प्रतीक है, चींटी अग्नि तत्व एवं कौवा वायु तत्व का प्रतीक होकर गाय को पृथ्वी तत्व माना गया है एवं ब्राह्मण आकाश के रूप में पूजनीय है।

उक्त सभी प्राणी, पांच तत्वों के प्रतीक माने गए हैं। इसलिए उनको कराया जाने वाला भोजन पंचतत्व में विलीन हो जाता है।

इसी तरह ब्राह्मण (ब्रह्म ऋषि नारद) गाय (कामधेनु) यह स्वर्ग से संबंधित है तथा कुत्ता और कौवा धर्मराज के प्रतिनिधि माने गए हैं।

ब्राह्मण को भोजन कराने के उपरांत वस्त्र और दक्षिणा देकर भावपूर्ण प्रणाम करना चाहिए।
उस दिन संपूर्ण तिथि पर घर में शांति तथा प्रसन्नता का वातावरण हो तथा किसी भी प्रकार का अशास्त्रीय व अखाद्य पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए।

विशेष:-
आपके द्वारा किया गया श्राद्ध तो तब ही सार्थक होगा जब पूर्वज उसको स्वीकार करें और पूर्वज उसे तभी स्वीकार करते हैं जब उनके जीवन काल में आपका व्यवहार उनके प्रति अच्छा रहा हो। यदि उनके जीवन काल में उनकी देखभाल उनके भोजन इत्यादि की व्यवस्था समुचित नहीं की जाती है तो ऐसे पितृ बहुत ही चिढे हुए होते हैं। क्योंकि उनसे हमारा रक्त संबंध होता है इसलिए वे शांत रहते हैं परंतु मृत्यु के बाद यदि उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है तो उन्हें वह सब बातें याद आती है जो उनके साथ जीवित रहने पर घटित हुई हो और वह फिर भला- बुरा आशीर्वाद भी दे सकते हैं। इसलिए अपने पूर्वजों के जीवन काल में भी उनको सुखी रखें तो ही आपका किया हुआ श्राद्ध वह स्वीकार कर सकेंगे। क्योंकि हिंदू धर्म में जीवित अवस्था में रहकर जो प्राणी खतरनाक नहीं होते वह मृत्यु के बाद और भी ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं इसलिए सावधान रहें।
श्रद्धा और विश्वास से श्राद्ध करें ।