काली स्याही और मिथ्या आरोपों से सत्ता हड़पने के प्रयास 

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काली स्याही और मिथ्या आरोपों से सत्ता हड़पने के प्रयास 

आलोक मेहता

अमेरिका में एक सीनेटर ने बहुत पहले ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी जिससे हरेक को शक की निगाह से देखा जाने लगा और सीधे सच्चे लोगों को बहुत परेशान किया गया | उसी तरह आज अपने देश में आलोचकों को हर बात में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की गंध आती है | हर किसी को संस्थाओं को काली स्याही में रंगकर पेश किया जाता है ताकि कम से कम कुछ लोग तो इन आरोपों को सही मान लेंगे | विपक्ष के माननीय सदस्यों के भाषणों में ऐसी अनेक झूठी बातें कही गई हैं या आक्षेप लगाए गए हैं | मुझे अपने बचाव में कुछ कहने की जरुरत नहीं है | अगर देश के लोग चाहेंगें तो वे ही मेरा बचाव करेंगे और मैं उनके निर्णय के आगे सदा नतमस्तक हूँ | यह कहना बड़ी अजीब बात है कि अगर हम चुनाव जीत जाते हैं तो यह काले धन के बल पर होता है लेकिन अगर दूसरे पक्ष का व्यक्ति जीत जाता है तो वह जनता द्वारा प्राप्त वास्तविक और सच्ची विजय है | अगर हम चाहें तो हम भी बहुतों के नाम ले सकते हैं , कौन किसके साथ था ,किसने कितना पैसा जमा किया | हम खरे उतरे हैं या नहीं , इसका फैसला इस बात से होगा कि हमने जनता की सेवा किस ढंग से की है | एक ज़माने से चले आ रहे अन्यायों और असमानताओं के बोझ को कितना कम किया और किस हद तक एक अधिक सार्थक जीवन की खातिर जनता की आंतरिक क्षमताओं को जगा सकते हैं | ‘

 

यह बात क्या प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी या उनके सहयोगी ने कही है ? पहली नज़र में शायद आप यह समझ सकते हैं और सोचेंगे कि मेरे जैसे पत्रकार उनकी बातों को अधिक महत्व दे रहे हैं | जी नहीं | इस तरह की` बात संसद में दिए गए भाषणों के दौरान मुझ जैसे संवाददाता प्रेस गैलेरी में बैठकर सुनते रहे हैं | तब मैं एक समाचार एजेंसी का संवाददाता था | जी हाँ ऊपर दिया गया उद्धरण 25 जुलाई 1974 को लोक सभा में अविश्ववास प्रस्ताव का उत्तर देते हुए तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के भाषण का अंश है | इसका ध्यान इसलिए दिलाना उचित लगा कि राहुल गाँधी और उनके सहयोगी या कांग्रेस गठबंधन के नेता इन दिनों हर संवैधानिक संस्था , केंद्र या राज्यों में बैठे भाजपा के नेताओं पर अनर्गल आरोपों से सम्पूर्ण लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर कालिख पोतने की कोशिश कर रहे हैं |कांग्रेसी नेता सबसे पुरानी पार्टी के नेता अपने ही शीर्ष नेताओं की बातों को पढ़ने ,सुनने का थोड़ा कष्ट उठाएं | राजनीतिक स्वार्थ के लिए घृणित प्रचार के हथकंडों का उपयोग किया जा रहा है |

 

हमेशा यह रटते रहना कि देश को कुछ नहीं मिल रहा , रसातल को जा रहा है , यह तथ्यों से आँखें मूंद लेना है | अनेक कठिनाइयों के बावजूद न देश न तो रसातल की और जा रहा है और न ही बर्बाद हो रहा है | लेकिन अनर्गल दुष्प्रचार से लोगों का अपनी योग्यता क्षमता और भविष्य के प्रति विश्वास डगमगाने लगता है | वास्तव में यह देश के मनोबल गिराने और अराजकता पैदा करने की कोशिश है | दूसरी तरफ एक वर्ग यह महसूस करता है कि अपने लोकतंत्र में ज्यादा ही छूट दी जा रही है और समाज में अनुशासन का कोई स्थान नहीं है | इसमें कोई शक नहीं कि हमारे लोकतंत्र और संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकाधिक अधिकारों का प्रावधान है , लेकिन कर्तव्यों का समावेश नहीं किया गया | महान संविधान निर्माताओं ने यह कल्पना नहीं की होगी कि सत्ता या विपक्ष के लोग अथवा अन्य क्षेत्रों के लोग स्वतंत्रता का दुरुपयोग ही नहीं उश्रृंखलता तक की स्थिति लाएंगे | कई लोकतान्त्रिक देशों ने इस महत्व को समझा और नियंत्रण के उपाय का प्रावधान किया | मैं तीन वर्ष जर्मनी में भी रहा और संसद आदि को देखा सुना | ब्रिटेन , अमेरिका , जापान जैसे देशों की यात्राओं के दौरान अनेक नेताओं और विशेषज्ञों से बात करने के अवसर मिले हैं | सब जगह कुछ सीमाएं मर्यादाएं हैं | जर्मनी के संविधान में संवैधानिक स्वतंत्रता के दुरुपयोग को रोकने का प्रावधान धारा 18 में है | इसमें कहा गया है कि ‘ जब अभिव्यक्ति की और विशेष रुप से प्रेस की स्वतंत्रता , शिक्षण , सभा करने , संगठन बनाने , डाक्टर आदि को गोपनीय रखने या सम्पत्ति तथा शरण लेने के अधिकार का दुरुपयोग स्वतंत्र रुप से बनाई गई लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रहार के लिए किया जाए तो ये मूल अधिकार प्रभावी नहीं माने जाएंगे | ”

 

भारत के ही एक बड़े राजनीतिक चिंतक ने बहुत पहले कहा था – ‘ अतीत में लोकतंत्र का अर्थ मुख्यतः राजनैतिक लोकतंत्र माना जाता था , जिसका आधार मोठे तौर पर एक व्यक्ति का एक वोट था | आप किसीको वोट का अधिकार दिलवा दें तो सिर्फ इसी से व्यक्ति को यह अहसास नहीं होगा कि बहुत बड़ी बात हो गई जो सर्वहारा है और भूख या जीने के लिए आवश्यक सहयोग चाहता है | उसे अपने खाने पहनने रहने की मुलभुत आवश्यकता में जितनी रुचि होगी , उतनी वोट मैं नहीं | ‘ इसलिए राहुल गाँधी एन्ड कंपनी का ‘ वोट ‘ के नाम पर चलाये गए अभियान का कोई असर बिहार या अन्य राज्यों में नहीं होने वाला है | मोदी जनता की नब्ज समझते हैं | इसलिए सामान्य जनता के लिए हर संभव साधन और आत्म निर्भरता के कार्यक्रमों के अभियानों को सर्वाधिक महत्व दे रहे हैं |

 

हाल ही में कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के नेताओं या प्रचार विंग ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध कुत्सित प्रचार में उनकी स्वर्गीय माताजी के नाम और ए आई से बनाए छद्म वीडियो आदि का उपयोग करके सारी मर्यादाएं त्याग दी | विरोध तो महात्मा गाँधी तक का हुआ और राजमोहन गांधी चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ भी खड़े हुए , , लेकिन क्या किसी ने कस्तूरबा गाँधी को अभद्र ढंग से पेश किया ? राजनीति में जो महिला नेता आईं , उनके कार्यों , विचारों या सत्ता के दुरुपयोग पर आरोप लगने की स्थितियां आई हैं , लेकिन मोदीजी की माताजी या अन्य नेताओं की जिन माताओं बहनों का राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं रहा , उन पर अशोभनीय प्रचार के तरीके कभी नहीं अपनाए गए | आश्चर्य इस बात का है कि कुत्तों से लेकर हर छोटे बड़े मुद्दों पर सीधे नोटिस लेने वाली सुप्रीम कोर्ट ऐसे सवेदनशील मुद्दों या संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता ख़त्म करने वाले प्रयासों पर कठोर कार्रवाई के लिए निरंतर सुनवाई कर कानून का प्रावधान क्यों नहीं कर रही है ? इसी तरह संसद में भी प्राथमिकता के साथ पुराने नियम कानून में संशोधन के प्रयास होने चाहिए |