Alirajpur को मिली असली पहचान आदिवासी गौरव और इतिहास को मिला सम्मान

अलीराजपुर अब आधिकारिक रूप से ‘आलीराजपुर’

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Alirajpur को मिली असली पहचान आदिवासी गौरव और इतिहास को मिला सम्मान

✍️ राजेश जयंत

आलीराजपुर। मध्य प्रदेश का पश्चिमी सीमांत जनजातीय बहुल अलीराजपुर जिला लंबे इंतजार के बाद अब आधिकारिक रूप से ‘आलीराजपुर’ हो गया है। राज्य सरकार ने 21 अगस्त 2025 को केंद्र के गृह मंत्रालय से मिली स्वीकृति के बाद यह ऐतिहासिक बदलाव लागू कर दिया। अब सभी सरकारी दस्तावेज, मानचित्र, राजपत्र और राजस्व अभिलेखों में जिले का नाम ‘आलीराजपुर’ ही दर्ज होगा।

यह परिवर्तन मात्र औपचारिक नहीं बल्कि जिले की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पारंपरिक पहचान को पुनः स्थापित करने की पहल है। इतिहासकार बताते हैं कि ‘आलीराजपुर’ नाम रियासत काल के दो प्रमुख गांव- ‘आली’ और ‘राजपुर’- के मेल से बना है। अंग्रेजी शासन के दौरान हिंदी उच्चारण में बदलाव के कारण इसे ‘अलीराजपुर’ लिखा जाने लगा था। झाबुआ से अलग होकर जब अलीराजपुर जिला बना, तब भी यह त्रुटि बनी रही। लेकिन अब कई पीढ़ियों की प्रतिक्षा और अलीराजपुर जिला बनाने के बाद वर्ष 2012 से विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक संगठनो की संघर्षपूर्ण मांग के बाद जिले का मूल और सही नाम वापस लौटा है। उनका कहना है कि ‘आलीराजपुर’ नाम ही जिले की अस्मिता, संस्कृति और गौरव को सही रूप में दर्शाता है।

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सरकार ने इस तर्क को मानते हुए गृह मंत्रालय से एनओसी ली और राजस्व विभाग ने अधिसूचना जारी कर तत्काल बदलाव लागू कर दिया।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और जिले के मंत्री नागरसिंह चौहान ने इसे ऐतिहासिक निर्णय बताते हुए कहा कि यह न केवल जनता की पुरानी मांग का सम्मान है बल्कि जिले के गौरव को नई ऊँचाई देगा।

अब ‘आलीराजपुर’ नाम जिले के सभी सरकारी कार्यालयों, स्कूलों, अस्पतालों, सड़क बोर्डों और आधिकारिक दस्तावेजों में दर्ज होगा।

*झाबुआ से अलग होकर जिला बना*

17 मई 2008 को अलीराजपुर को झाबुआ से अलग कर स्वतंत्र जिला बनाया गया था। यह मध्यप्रदेश का 49 वां जिला बना। आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण अलग जिले की मांग लंबे समय से उठ रही थी।

जिले के गठन से प्रशासनिक कार्यों में आसानी हुई और विकास योजनाओं का लाभ सीधे ग्रामीण और आदिवासी समाज तक पहुंचना सरल हुआ।

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*आदिवासी संस्कृति और पहचान*

जनजातीय बहुल आलीराजपुर क्षेत्र अपनी आदिवासी परंपराओं और संस्कृति का गढ़ है। यहां की भील जनजाति अपने त्योहारों और परंपराओं के लिए जानी जाती है।

भगोरिया उत्सव यहां का प्रमुख आकर्षण है, जो रंग, संगीत और मेल-मिलाप का प्रतीक है। आज भी आदिवासी लोकगीत, नृत्य और पारंपरिक परिधान जिले की पहचान हैं।

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*शिक्षा और विकास की चुनौतियां*

गठन के समय से ही जिले में शिक्षा और स्वास्थ्य बड़ी चुनौतियाँ रही हैं। साक्षरता दर बेहद कम थी और स्वास्थ्य सेवाएँ सीमित थीं।

हालांकि समय के साथ सुधार हुआ है, लेकिन आज भी यह जिला विकास की राह पर संघर्षरत है।

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*ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : रियासतों का संगम*

वरिष्ठ पत्रकार और जनजातीय मामलों के जानकार अनिल तंवर बताते हैं कि आलीराजपुर की ऐतिहासिकता बेहद रोचक है। माना जाता है कि यह क्षेत्र आदिवासी शासक राजा आलिया भील से जुड़ा है, जिन्होंने ‘आली’ नामक रियासत की स्थापना की थी। पास का क्षेत्र ‘राजपुर’ कहलाता था। दोनों के मेल से ‘आलीराजपुर’ नाम पड़ा।

ब्रिटिशकाल में आलीराजपुर एक स्वतंत्र रियासत रही, जो भोपाल एजेंसी के अधीन थी। स्वतंत्रता के बाद यह मध्य भारत और फिर मध्यप्रदेश का हिस्सा बनी। इसी ऐतिहासिकता को ध्यान में रखते हुए जिले के नाम को उसके सही स्वरूप आलीराजपुर में बदला गया है।

*नाम परिवर्तन : संघर्ष से सफलता तक*

काफी समय तक जिला आधिकारिक तौर पर ‘अलीराजपुर’ दर्ज रहा, जबकि स्थानीय समाज और इतिहासकार लगातार ‘आलीराजपुर’ कहने की मांग करते रहे।

करीब 10–13 वर्षों तक चले आंदोलनों, ज्ञापनों और जनप्रतिनिधियों के प्रयासों के बाद 2025 में राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी कर जिले का नाम बदल दिया।

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*आज का आलीराजपुर : इतिहास और संस्कृति का संगम*

आज का आलीराजपुर सिर्फ एक जिला नहीं, बल्कि आदिवासी इतिहास और संस्कृति का प्रतीक है। यहां की नर्मदा घाटी, पहाड़ी वन और आदिवासी धरोहर इसे विशेष पहचान देते हैं।

नाम परिवर्तन के बाद अब यह जिला न केवल प्रशासनिक स्तर पर बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अपनी असली पहचान पा चुका है।