GST 2.0 : सरकार द्वारा देर से उठाया हुआ एक सही कदम

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GST 2.0 : सरकार द्वारा देर से उठाया हुआ एक सही कदम

रंजन श्रीवास्तव

एक पुरानी कहावत है – देर आयद दुरुस्त आयद. केंद्र सरकार द्वारा जीएसटी 2.0 लागू करने पर यह कहावत याद आ गई.

नोटबंदी के आठ महीनों के बाद जब 1 जुलाई, 2017 को जीएसटी (गुड्स और सर्विस टैक्स) देश में “वन नेशन वन टैक्स” के तहत लागू किया गया तो देश को इससे बहुत उम्मीदें थीं. सबसे बड़ी आशा विभिन्न सामानों में टैक्स की एकरूपता तथा युक्तिकरण की थी जिससे जनता और व्यापारी वर्ग को आये दिन लेन देन में परेशानियां कम होतीं तथा मंहगाई भी कम होती पर आये दिन जीएसटी में वृद्धि ने जनता की कमर तोड़ कर रख दी.

खासकर मिडिल क्लास जीएसटी के बोझ तले दिन प्रतिदिन परेशान हो रहा था. रेस्टोरेंट में खाना खाना हो या ट्रेन में यात्रा हर जगह भारी भरकम जीएसटी पीछा कर रही थी. यहाँ तक कि हेल्थ इन्शुरन्स और दवाइयों के खरीदी पर भी भारी भरकम जीएसटी लगा दिया गया. विपक्ष ने तो इसका नाम ही दे दिया- गब्बर सिंह टैक्स.

सबसे ज्यादा दिक्कत तो तब हुयी जब गंभीर बीमारी से ग्रस्त लोगों को दवाइयां खरीदने में पहले से ज्यादा आर्थिक बोझ का सामना करना करना पड़ा.

यह परेशानी जनता शायद सहन भी कर लेती पर वर्ष 2020 में कोविड के विश्वव्यापी हमले ने विश्व भर में लाखों लोगों की सिर्फ जान ही नहीं ली बल्कि जो लोग बच गए उनके रोजगार को भी बुरी तरह प्रभावित किया.

जब इस महामारी ने बड़े बड़े विकसित देशों की अर्थव्यवस्था खराब कर दी तो भारत की अर्थव्यवस्था को इस महामारी से कितना आघात पहुंचा इसका अनुमान लगाया जा सकता है.

सरकार भारी भरकम टैक्स वसूलती रही और जनता कराहती रही. पर इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि सरकार ने पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा. इससे बची खुची कसर राज्य सरकारों के भारी भरकम वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) ने पूरी कर दी.

अगर केंद्र सरकार जीएसटी के जरिये अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए भारी भरकम टैक्स लगाती रही तो राज्य सरकारें जीएसटी के बाद बची हुई वस्तुओं जैसे पेट्रोल और डीजल पर टैक्स लगाकर अपना खजाना भरती रहीं.

राज्य सरकारों को भी शिकायत थी की केंद्र सरकार जीएसटी में राज्य के हिस्से को पूरी तरह से चुकता नहीं कर रही थी.

तो टैक्स लगाने की इस प्रतिस्पर्धा में शिकार किसका हुआ?

वह थी आम जनता, प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोग और रोजाना काम करके कमाने वाले गरीब और मजदूर .

सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को नोटबंदी और जीएसटी से शायद ही कोई नुकसान हुआ हो क्योंकि उनके वेतन और भत्तों में कोई कटौती नहीं की गई जबकि मजदूरी करके पेट पालने वाले लोग मजदूरी में कमी और प्राइवेट सेक्टर में कर्मचारी छंटनी और वेतन में कटौती से बुरी तरह प्रभावित हुए.

देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही थी. वित्त मंत्री को रोजमर्रा के जीवन में लोगों के खाने में प्याज का महत्व इसलिए नहीं पता क्योंकि उनके शब्दों में “मैं प्याज नहीं खाती”.

अच्छा हुआ कि देर ही सही पर सरकार को जनता का दर्द पता चल गया और ये भी पता चल गया कि जीएसटी में कमी से ना सिर्फ लोगों की थाली में भोजन में बढ़ोत्तरी होगी पर इसका फायदा देश की अर्थव्यवस्था को भी होगा.

वर्ल्ड मार्किट में चीन का आधिपत्य बढ़ता ही जा रहा है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नियमित बेतुकों फैसलों के चलते भारत सहित दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है.

जीएसटी-2.0 से अनुमान है कि आम जनता को होने वाली कुल बचत लगभग 2 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष होगी. कम दरों से उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ेगी जिससे आम जनता के घरेलू खर्चों पर 4-13% तक की बचत होगी. यह बचत मुख्य रूप से किराने, दैनिक आवश्यकताओं, इलेक्ट्रॉनिक्स, वाहनों और बीमा पर बचत से होगी.

किराने के बिल पर लगभग 13% की कमी से औसत परिवार को 5000 से लेकर 10000 रुपये तक की सालाना बचत होगी.

जीएसटी की दरों में कमी से सरकार को तत्काल राजस्व हानि तो होगी (लगभग 50000 करोड़ रूपये प्रति वर्ष) लेकिन दीर्घकालिक रूप से देश की आर्थिक वृद्धि दर बढ़ने से और उपभोग बढ़ने से कुल लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष का फायदा भी होगा.

सरकार का कदम सराहनीय है पर अभी भी चुनौतियां बाकी हैं. सबसे बड़ी चुनौती जीएसटी में कमी से विभिन्न वस्तुओं की दामों में कमी का फायदा जनता को पहुँचाना है.

कुछ ऐसे बयान भी सोशल मीडिया पर सामने आये कि व्यापारी वर्ग यह कह रहा है कि जब तक उनके वर्तमान में रखे माल जो कि पहले बढे दरों पर खरीदे गए थे वे नहीं बिक जाते तब तक वे दरों में कमी का फायदा जनता को कैसे पहुंचाएं?

पर इसका हल यह है कि अगर मैन्युफैक्चरर वर्तमान में स्टॉक किये गए सामानों पर दरों में कमी की इजाजत देते हैं और व्यापारी वर्ग को इससे जो नुकसान होगा उसकी भरपाई करते हैं तो व्यापारी वर्ग को अभी से दरों में कमी का फायदा आम उपभोक्ता को देने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी.