
Navratri2025: मां दुर्गा के छठे स्वरूप माता कात्यायनी की आराधना का दिन, पराक्रम, साहस और धर्म की अधिष्ठात्री देवी
– डॉ बिट्टो जोशी
नवरात्रि का छठा दिन मां दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की उपासना के लिए समर्पित है। वे पराक्रम, साहस और विजय की साक्षात अधिष्ठात्री देवी हैं। उनकी पूजा करने से साधक को अदम्य साहस, आत्मबल और धर्मपरायणता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मां कात्यायनी की कृपा से जीवन में शांति, समृद्धि और मनोकामनाओं की सिद्धि भी सहज ही मिल जाती है।
**मां कात्यायनी**
मां कात्यायनी का जन्म ऋषि कात्यायन की कठोर तपस्या का फल माना जाता है। इसी कारण उन्हें कात्यायनी नाम से जाना जाता है। देवी पुराणों के अनुसार, वे महान योद्धा दुर्गा के रूप में अवतरित हुईं और महिषासुर जैसे अत्याचारी दानव का वध कर धर्म की पुनः स्थापना की। उनके पराक्रम और तेज से देवताओं को विजय प्राप्त हुई और धरती पर धर्म का पुनर्जागरण हुआ।

मां कात्यायनी का वाहन सिंह है। सिंह शक्ति, निर्भयता और वीरता का प्रतीक माना जाता है। यह संदेश देता है कि मां का भक्त भी जीवन की हर चुनौती और कठिनाई का सामना निर्भीक होकर कर सकता है। सिंह पर आरूढ़ होकर देवी कात्यायनी धर्म और न्याय की रक्षा का संकल्प लेती हैं, इसलिए वे सदैव न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठा की देवी कही जाती हैं।
**मां कात्यायनी की विशेषताएं**
मां कात्यायनी साहस, बल और विजय की देवी हैं। वे हर प्रकार की बाधाओं और संकटों का नाश कर अपने भक्तों को विजय प्रदान करती हैं। कठिन परिस्थितियों में संयम और धैर्य रखने वालों पर उनका विशेष आशीर्वाद होता है।
उन्होंने अधर्म और अन्याय का अंत कर धर्म की स्थापना की और इसीलिए वे धर्म, नीति और सदाचार की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं।
एक विशेष मान्यता यह भी है कि अविवाहित कन्याएं यदि श्रद्धापूर्वक मां कात्यायनी की आराधना करती हैं तो उन्हें इच्छित वर की प्राप्ति होती है। इस कारण उन्हें मनोकामना पूर्ति की देवी भी कहा गया है।

**पूजा विधि**
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा में पीले रंग की प्रधानता होती है। भक्त प्रातःकाल स्नान कर पीले या स्वर्णिम वस्त्र धारण करते हैं। पूजा स्थल पर शुद्ध घी का दीपक जलाया जाता है और देवी को पीले फूल, हल्दी, गुड़, दूध से बने पकवान और मेवे अर्पित किए जाते हैं।
पूजा के दौरान शुद्ध आचरण और ध्यान का विशेष महत्व है। भक्त पूरे श्रद्धाभाव से उनका ध्यान करते हैं और मंत्र जाप के बाद आरती कर प्रसाद वितरित करते हैं। ऐसा करने से साधक को आत्मिक शांति, शक्ति और शुभ फल की प्राप्ति होती है।

**आराधना मंत्र**
मां कात्यायनी की पूजा के समय यह मंत्र अत्यंत फलदायी माना जाता है-
॥ ॐ कात्यायनाय विद्महे कटिजुष्टमध्याय धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
इस मंत्र का जाप 108 बार या 11 माला करना शुभ माना जाता है। उपवास और संयम के साथ मंत्र उच्चारण करने से साधना और भी प्रभावी होती है।
**मां कात्यायनी का प्रिय भोग**
भोग अर्पित करने का नवरात्रि में विशेष महत्व होता है। माँ कात्यायनी को हल्दी, गुड़, गुड़ के लड्डू, दूध से बने पकवान, मेवे (काजू, बादाम, मूंगफली आदि) और पीले फूल विशेष रूप से प्रिय हैं। इनका भोग चढ़ाने से भक्त के जीवन में मंगलकारी परिणाम आते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का संचार होता है।
**पूजा का फल और लाभ**
मां कात्यायनी की आराधना से साधक को भय, रोग और संकटों से मुक्ति मिलती है। उनके आशीर्वाद से साहस, आत्मविश्वास और धैर्य की वृद्धि होती है। जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
अविवाहित कन्याओं के विवाह में आने वाली बाधाएं भी उनकी कृपा से दूर होती हैं। साथ ही उनकी साधना साधक को आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक संतुलन और आत्मबल प्रदान करती है।
**ध्यान और साधना का महत्व**
नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी का ध्यान और साधना साधक को आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक ले जाती है। उनकी उपासना से न केवल सांसारिक कठिनाइयों का समाधान होता है, बल्कि साधक के भीतर छिपी शक्ति और ऊर्जा भी जाग्रत होती है।
मां कात्यायनी का तेज साधक को हर चुनौती से जूझने की प्रेरणा देता है। वे यह संदेश देती हैं कि जब तक साहस और धर्म का साथ है, तब तक कोई भी विपत्ति भक्त को परास्त नहीं कर सकती।
इस प्रकार नवरात्रि का छठा दिन मां कात्यायनी की उपासना कर धर्म, साहस और विजय के पथ पर आगे बढ़ने का दिव्य अवसर प्रदान करता है।





