
विश्व हृदय दिवस, 29 सितंबर 2025 : दिल धड़कता रहे, जीवन मुस्कुराता रहे
डॉ. तेज प्रकाश व्यास

हृदय ही जीवन का अधिष्ठान
मनुष्य के जीवन में हृदय केवल एक मांसपेशी नहीं है, बल्कि यह जीवन की धड़कन है। जब शिशु गर्भ में पहली बार धड़कता है, तब जीवन का संचार होता है; और जब यह धड़कन रुकती है, तब जीवन का पटाक्षेप हो जाता है। संस्कृत साहित्य में हृदय को “प्राण-धाम” और “भावना का उद्गम-स्थल” कहा गया है। वैदिक ऋषि इसे आत्मा का आसन मानते थे।
आधुनिक विज्ञान भी इस सत्य की पुष्टि करता है कि हृदय मात्र रक्त पंप करने वाला यंत्र नहीं है, बल्कि यह भावनाओं, मानसिक शांति, तनाव, प्रेम और आध्यात्मिकता से गहराई से जुड़ा है। Heart–Brain Axis (हृदय-मस्तिष्क संबंध) पर शोध यह सिद्ध कर चुका है कि हृदय की लय में विकृति केवल शारीरिक बीमारी नहीं, बल्कि मानसिक असंतुलन की भी झलक है।
आज के युग में जब जीवन की गति तीव्र है, काम का बोझ भारी है, और भोजन-पानी तक कृत्रिम हो गए हैं, हृदय-स्वास्थ्य की रक्षा एक वैश्विक चुनौती बन चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार हर वर्ष करोड़ों लोग हृदय रोग से असमय मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
अतः यह केवल रोग और इलाज का विवरण नहीं है, बल्कि एक जीवन-पथ है—जहाँ भोजन, व्यायाम, ध्यान, फल, नट्स, ओमेगा-3, आंत स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन सब मिलकर हृदय को दीर्घायु और आनंदमय बनाते हैं।
आधुनिक जीवनशैली और हृदय पर संकट
आधुनिक युग की सुविधा-संपन्नता ने हमें गति तो दी, परंतु स्वास्थ्य छीन लिया। पहले लोग खेतों में काम करते थे, पैदल चलते थे, भोजन ताज़ा और प्राकृतिक होता था। अब अधिकांश लोग घंटों कुर्सी पर बैठे रहते हैं, तनाव में जीते हैं, और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों पर निर्भर हैं।
1. तनाव और अवसाद
तनाव (Stress) आज का सबसे बड़ा हृदय-विनाशी कारक है। जब व्यक्ति लंबे समय तक मानसिक दबाव में रहता है, तो रक्तचाप बढ़ जाता है, हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं, और हृदय पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
2. जंक फूड और प्रोसेस्ड डाइट
बाजार के चमकीले पैकेट में बंद भोजन स्वाद में भले ही आकर्षक हो, परंतु यह ट्रांस-फैट्स, अतिरिक्त नमक और शक्कर से भरपूर होता है। इससे मोटापा, उच्च रक्तचाप और डायबिटीज़ की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

3. शारीरिक निष्क्रियता (Sedentary Lifestyle)
कार्यालयों की कुर्सी, गाड़ियों की सीट और घर की स्क्रीन—इन तीन जगहों ने मनुष्य को बाँध दिया है। WHO के अनुसार दिनभर बैठने वाले लोगों में हृदयाघात का खतरा 40% अधिक है।
4. प्रदूषण और पर्यावरणीय संकट
धूल, धुआँ और प्रदूषण भी हृदय पर सीधा प्रभाव डालते हैं। फेफड़ों से होकर रक्त में जाने वाले सूक्ष्म कण हृदय की धमनियों में सूजन और अवरोध पैदा करते हैं।
इसीलिए आधुनिक जीवनशैली को संतुलित करना आज सबसे बड़ी आवश्यकता है। बिना जीवनशैली में सुधार किए हृदय-स्वास्थ्य असंभव है।
. हृदय रोगों के प्रमुख कारण – चिकित्सा और आध्यात्मिक दृष्टि
हृदय रोग केवल शरीर की बीमारी नहीं, बल्कि यह असंतुलित जीवन का प्रतिफल है।
1. चिकित्सीय कारण
उच्च रक्तचाप (Hypertension)
मधुमेह (Diabetes Mellitus)
मोटापा (Obesity)
उच्च कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स
धूम्रपान और मद्यपान
वंशानुगत प्रवृत्ति
2. आध्यात्मिक और मानसिक कारण
भारतीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो हृदय रोग केवल भोजन और व्यायाम की कमी से नहीं होता, बल्कि मानसिक अस्थिरता, क्रोध, लोभ और चिंता भी इसका मूल कारण है।
ऋग्वेद में कहा गया है—
“हृदा मनीषा मनसा अभिनद्यते”
अर्थात् हृदय और मन में गहरा संबंध है। यदि मन अस्थिर है, तो हृदय भी अस्वस्थ हो जाएगा।
3. नवीन शोध
आधुनिक शोध यह दिखा रहे हैं कि सूजन (Inflammation) हृदय रोग का मूल कारण है। प्रोसेस्ड भोजन, तनाव और नींद की कमी से शरीर में सूजन बढ़ती है, जिससे धमनियों में प्लाक जमता है और रक्तप्रवाह बाधित होता है।
निष्कर्ष यह कि हृदय-रोग केवल डॉक्टर या दवा से नहीं मिटता। इसके लिए शरीर, मन और आत्मा – तीनों का संतुलन आवश्यक है।
जीवनशैली सुधार : योग, ध्यान और संतुलित दिनचर्या
हृदय को स्वस्थ रखने के लिए केवल दवा पर्याप्त नहीं। जीवनशैली में क्रांतिकारी परिवर्तन ही स्थायी उपाय है।
1. योग और प्राणायाम
योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि यह शरीर-मन-आत्मा का विज्ञान है।
अनुलोम-विलोम से रक्तचाप संतुलित होता है।
कपालभाति से फेफड़े शुद्ध होते हैं और रक्त में ऑक्सीजन बढ़ती है।
भ्रामरी प्राणायाम से तनाव और चिंता कम होकर हृदय की गति नियमित होती है।
2. ध्यान (Meditation)
ध्यान करने से पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय होता है, जो हृदय को शांति और स्थिरता देता है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोध बताते हैं कि ध्यान करने से हृदयाघात की संभावना 40% तक घट जाती है।
3. संतुलित दिनचर्या
सुबह सूर्य उदय के साथ उठना
नंगे पैर हरी घास पर चलना
सूर्य की हल्की धूप लेना (Vitamin D के लिए)
समय पर भोजन और पर्याप्त नींद लेना
“20-20-20 नियम” अपनाना (20 मिनट चलना
विश्राम, और 20मिनट चलना)
4. सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य
हृदय केवल शरीर का नहीं, भावनाओं का भी केंद्र है। परिवार के साथ समय बिताना, संगीत सुनना, प्रकृति से जुड़ना—ये सब हृदय को गहराई से स्वस्थ रखते हैं।
जब जीवनशैली में संतुलन आता है, तो हृदय न केवल रोग-मुक्त होता है, बल्कि व्यक्ति ऊर्जा, आनंद और दीर्घायु का अधिकारी बनता है.
इंद्रधनुषी फल-सब्ज़ियों का चमत्कार
प्रकृति ने हमें रंग-बिरंगे फल और सब्ज़ियाँ केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि जीवन को संतुलित और निरोग रखने के लिए दी हैं। आयुर्वेद कहता है— “रसो वै रसम्” अर्थात् रस ही जीवन है। इंद्रधनुष के रंगों जैसे फल-सब्ज़ियों में छिपे पोषक तत्व हृदय के लिए अमृत के समान हैं।
1. लाल रंग (Red Group)
टमाटर, तरबूज, अनार, स्ट्रॉबेरी
इनमें लाइकोपीन होता है, जो धमनियों की सूजन कम करता है।
रक्त को शुद्ध करके हृदयाघात के जोखिम को घटाता है।
2. नारंगी और पीला (Orange & Yellow Group)
गाजर, संतरा, पपीता, कद्दू
इनमें बीटा-कैरोटीन और विटामिन C भरपूर होता है।
यह कोलेस्ट्रॉल को ऑक्सीकरण से बचाता है और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
3. हरा समूह (Green Group)
पालक, मेथी, ब्रोकली, हरी मटर
इनमें क्लोरोफिल, आयरन, फोलेट और फाइबर होता है।
यह रक्तचाप नियंत्रित करता है और रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता है।
4. नीला और बैंगनी समूह (Blue & Purple Group)
ब्लूबेरी, जामुन, अंगूर, बैंगन
इनमें एंथोसाइनिन्स होते हैं जो धमनियों को लचीला रखते हैं।
मस्तिष्क और हृदय दोनों को युवा बनाए रखते हैं।
5. सफेद और भूरा समूह (White & Brown Group)
लहसुन, प्याज़, अदरक, मशरूम, ओट्स
इनमें एलिसिन और पोटैशियम होता है, जो रक्त का थक्का बनने से रोकते हैं।
हृदयाघात और स्ट्रोक की संभावना को घटाते हैं।
यदि थाली में रोज़ इंद्रधनुषी रंग शामिल हों, तो हृदय पर प्राकृतिक सुरक्षा-कवच बन जाता है।
नट्स और ओमेगा-3 : हृदय का अमृत
नट्स यानी मेवे — बादाम, अखरोट, काजू, पिस्ता, मूँगफली — ये सभी छोटे आकार में बड़े पोषण-भंडार हैं। इनमें पाया जाने वाला ओमेगा-3 फैटी एसिड हृदय के लिए अद्वितीय औषधि है।
1. अखरोट (Walnut)
यह “हृदय का मित्र” कहलाता है।
इसमें ALA (Alpha-Linolenic Acid) नामक ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है।
यह धमनियों की दीवार को चिकना और लचीला बनाए रखता है।
2. बादाम (Almonds)
इसमें विटामिन E और मैग्नीशियम भरपूर है।
यह रक्तचाप नियंत्रित करता है और खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) को घटाता है।
3. मूँगफली और काजू
इनमें प्रोटीन और हेल्दी फैट्स होते हैं।
…
यह ऊर्जा देते हैं और हृदय को स्थिर रखते हैं।
4. ओमेगा-3 का महत्त्व
ओमेगा-3 फैटी एसिड धमनियों में जमा हुए प्लाक को साफ करता है, रक्त को पतला रखता है और धड़कन को नियमित करता है।
यह एंटी-इन्फ्लेमेटरी (सूजन-रोधी) है।
यह ट्राइग्लिसराइड्स को कम करता है।
यह Arrhythmia (अनियमित धड़कन) से सुरक्षा करता है।
सप्ताह में पाँच दिन मुट्ठीभर नट्स खाने से हृदयाघात की संभावना 30% तक घट जाती है (Harvard Study)।
आंत-हृदय संबंध (Gut–Heart Axis) और सूक्ष्मजीवों की भूमिका
आज आधुनिक विज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि हमारी आंत केवल भोजन पचाने का स्थान नहीं, बल्कि यह पूरे शरीर के स्वास्थ्य की जड़ है। Gut Microbiome यानी आंत में रहने वाले लाखों सूक्ष्मजीव सीधे हृदय से जुड़े हैं।
1. आंत के जीवाणु और कोलेस्ट्रॉल
अच्छे बैक्टीरिया (Probiotics) भोजन को इस तरह तोड़ते हैं कि कोलेस्ट्रॉल कम बनता है।
2. TMAO (Trimethylamine N-oxide) का खतरा
जब आंत का संतुलन बिगड़ता है, तो TMAO नामक यौगिक बनता है, जो धमनियों को कठोर करता है और हृदयाघात की संभावना बढ़ाता है।
3. प्रोबायोटिक भोजन का महत्व
दही, छाछ, अचार, कांजी, इडली, डोसा जैसे किण्वित खाद्य पदार्थ आंत को स्वस्थ रखते हैं।
हरे पत्तेदार सब्ज़ियों का फाइबर भी आंत के सूक्ष्मजीवों को पोषण देता है।
जब आंत संतुलित होती है, तो रक्त शुद्ध रहता है और हृदय हल्का और स्वस्थ धड़कता है।
अध्याय 8. मानसिक स्वास्थ्य, नींद और तनाव-नियंत्रण
हृदय केवल शरीर का पंप नहीं है, बल्कि यह हमारी भावनाओं का दर्पण है। क्रोध, चिंता, ईर्ष्या और अवसाद—ये सब हृदय पर सीधा प्रहार करते हैं।
1. तनाव का प्रभाव
तनाव के समय शरीर में कोर्टिसोल और एड्रेनालिन हार्मोन बढ़ जाते हैं। इससे रक्तचाप, धड़कन और थक्के बनने की संभावना बढ़ जाती है।
2. नींद का महत्व
हर दिन 7–8 घंटे की नींद हृदय को मरम्मत का अवसर देती है।
नींद की कमी से हाई ब्लड प्रेश और मोटापा बढ़ता है।
3. ध्यान और संगीत
ध्यान करने से मन शांत होता है और हृदय दर स्थिर होती है।
शास्त्रीय संगीत सुनना, विशेषकर बाँसुरी और वीणा की धुनें, हृदय को सुकून देती हैं।
4. सकारात्मक भावनाएँ
प्रेम, कृतज्ञता और सहानुभूति हृदय को स्वस्थ रखने वाली सबसे बड़ी औषधि हैं।
संस्कृत में कहा गया है—
“हृदयं तु प्रसन्नं यः, स जीवति शतायुषः”
अर्थात् प्रसन्न हृदय ही दीर्घायु देता है।
यदि मन शांत और नींद गहरी है, तो हृदय रोग पास भी नहीं फटकता।
अध्याय 10 : नीति, समाज और सार्वजनिक स्वास्थ्य की भूमिका
हृदय रोग केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं है। यह एक सामाजिक, आर्थिक और नीतिगत चुनौती भी है। यदि सरकारें, समाज और संस्थाएँ संगठित होकर काम करें, तो लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है।
1. सरकारी नीतियों की भूमिका
जनजागरूकता अभियान :
– भारत सरकार का “Fit India Movement” और “Eat Right India” अभियान हृदय रोग की रोकथाम में मदद करते हैं।
– गाँव-गाँव और शहर-शहर में World Heart Day जैसे आयोजन आवश्यक हैं।
स्वास्थ्य बीमा और इलाज की सुविधा :
– आयुष्मान भारत योजना जैसी योजनाएँ गरीब परिवारों को मुफ्त कार्डियक उपचार उपलब्ध कराती हैं।
– प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ECG, BP, शुगर जाँच जैसी सुविधाएँ अनिवार्य की जानी चाहिए।
तंबाकू नियंत्रण नीति :
– भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियाँ हृदय रोग का बड़ा कारण हैं।
– धूम्रपान निषेध कानून, पैकेट पर डरावनी चेतावनी तस्वीरें, और सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान प्रतिबंध प्रभावी कदम हैं।
स्वस्थ खाद्य नीति :
– पैक्ड फूड पर “फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग” अनिवार्य करना चाहिए, जिससे लोग तुरंत पहचान सकें
2. सामाजिक संगठनों की भूमिका
NGO और स्वयंसेवी संगठन :
– “World Heart Federation” जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ हर साल World Heart Day का संदेश देती हैं।
– भारत में “Public Health Foundation of India (PHFI)” हृदय रोग पर रिसर्च और ट्रेनिंग करती है।
कॉर्पोरेट जगत की जिम्मेदारी :
– कंपनियों को अपने कर्मचारियों के लिए नियमित हेल्थ चेकअप, योग सत्र और तनाव प्रबंधन कार्यक्रम शुरू करने चाहिए।
– CSR (Corporate Social Responsibility) के अंतर्गत हृदय स्वास्थ्य शिविर लगाए जा सकते हैं।
3. सामुदायिक स्तर पर पहल
हर मोहल्ले में मुफ़्त हेल्थ चेकअप कैंप।
स्थानीय स्कूलों और मंदिरों में हृदय स्वास्थ्य पर व्याख्यान।
समूह योग और प्राणायाम सत्र।
महिलाएँ और बुज़ुर्ग मिलकर हेल्थ ग्रुप बनाएं, जो एक-दूसरे को प्रेरित करें।
4. आर्थिक प्रभाव और नीति आवश्यकता
भारत में हर साल हृदय रोग से 2.8 करोड़ से अधिक काम के दिन बर्बाद होते हैं।
इससे GDP पर सीधा असर पड़ता है।
सरकार को दीर्घकालिक नीति बनानी चाहिए, जिसमें रोकथाम (Prevention) को इलाज से ज्यादा महत्व मिले।





