रविवारीय गपशप: जब आईजी साहब ने मेरी सलाह मानी और एसपी साहब ने ली राहत की सांस!

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रविवारीय गपशप: जब आईजी साहब ने मेरी सलाह मानी और एसपी साहब ने ली राहत की सांस!

आनंद शर्मा 

हमारे देश में प्रशासनिक और पुलिस के अधिकारियों के लिए कानून केवल किताबों में लिखी भाषा बस नहीं है , उसके पालन करने और करवाने में आने वाले बहुत से दबावों को झेलना भी सीखना होता है । प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों को ट्रेनिंग देने के बहुतेरे संस्थान हैं , जैसे मध्यप्रदेश में राज्य स्तर के प्रशासनिक और राजस्व अधिकारीयों को आर.सी.व्ही.पी. नरोन्हा अकादमी में ट्रेनिंग दी जाती है और पुलिस के अधिकारी जे.एन.पी.ए.सागर और भौरीं स्थित पुलिस अकादमी में ट्रेनिंग पाते हैं । इसी तरह अखिल भारतीय स्तर के प्रशासनिक अधिकारी लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में और आई.पी.एस. सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में प्रशिक्षित किए जाते हैं । लेकिन नौकरी में स्ट्रेस या दबाव को कैसे झेलना है , ये कहीं नहीं सिखाया जाता , ये तो बंदा अपनी परवरिश और गुरुओं से मिली सीख से ही सीख पाता है ।

मैं जब नरसिंहपुर में डिप्टी कलेक्टर के रूप में पदस्थ था तो कलेक्ट्रेट की विभिन्न शाखाओं के साथ भू अभिलेख शाखा का भी प्रभारी था । एक दिन कृषि भूमि की सीलिंग में निकली सरकारी जमीनों के भूमिहीनों आबंटन की समीक्षा के दौरान मैंने पाया कि सौंसर के राजघराने की सीलिंग में निकली और शासकीय घोषित भूमि पर शासन का नाम नहीं है । मैंने जाँच की तो पाया कि सीलिंग में भूमि के अतिशेष घोषित हो जाने के बाद मध्यप्रदेश शासन का नाम तो दर्ज हो गया था पर बाद में रानी साहिबा ने उक्त भूमि दानपत्र के ज़रिए हस्तांतरित कर दी और उस पर दूसरा नाम चढ़ गया । मैंने क़ानून के अनुसार कारण बताओ नोटिस जारी किया कि क्यों न वापस रिकॉर्ड सुधारा जाए । अगले सप्ताह रविवार की छुट्टी के दिन मैं सुबह सुबह घर पर अख़बार पढ़ रहा था तो गोटेगांव से शंकराचार्य जी के प्रतिनिधि एक महंत जी महाराज के प्रतिनिधि के रूप में मेरे आवास में पधारे । मैं ख़ुशी से फूला न समाया , मेरी माँ प्रतिदिन मंदिर जाने वालों में थी और जब से मैं नरसिंहपुर आया था तब से मेरे पीछे पड़ीं थीं कि शंकराचार्य जी के दर्शन करने हैं और आज उनके प्रतिनिधि मेरे घर पधार गए थे । मैंने उनकी ससम्मान आवभगत की और आने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि सीलिंग की सौंसर वाली जमीन तो दान में हमें ही मिली थी इसलिए अब तो वो हमारी हो गई है , और धर्म के लिए दी गई जमीन पर आप विवाद न करो । मैं बहुत देर तक तो सोचता ही रहा । वे प्रमुख धर्माचार्य की ओर से बात कर रहे थे और मेरी माँ उनकी बहुत बड़ी भक्त थीं । फिर मैंने सोच विचार कर कहा रानी साहिबा ने जो जमीन दी वह पहले ही शासन की हो चुकी थी , तो दूसरे की भूमि दान करने का हक तो किसी दानदाता का नहीं है कृपया मेरी ओर से क्षमा माँग लीजिएगा मैं इसमें कुछ नहीं कर पाऊँगा ।

विदिशा में मैं कलेक्टर था तो सिरोंज क्षेत्र में गौ वंश के काटने की शिकायत हुईं । मामला गंभीर होने लगा और पुलिस पर कार्यवाही न करने की खबरें अखबार में प्रकाशित होने लगीं । एक दिन सुबह सुबह मैं एस.ए.टी.आई. से बैडमिंटन खेल कर आया ही था कि एस.पी. साहब मेरे निवास पर आ गए । मैंने घर में चाय बनाने को कहा और पूछा बताइए क्या बात है । उन्होंने एक फ़ाइल मेरे सामने रखते हुए कहा , सिरोंज की घटना को लेकर आई.जी. साहब बहुत नाराज़ हैं । राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत एक संदेही को गिरफ़्तार कर निरोध आदेश करना है इसका यह प्रकरण है । आम तौर पर ऐसे प्रकरण थानेदार लेकर आते थे और यहाँ ख़ुद एस.पी. मेरे समक्ष बैठे थे तो स्थिति की गंभीरता को देख मैंने तुरंत प्रकरण का अध्ययन किया । मैंने पाया कि प्रकरण बड़ी जल्दबाजी में बनाया गया है और इसका गौवध से कोई सीधा कनेक्शन नहीं दिख रहा है । मैंने एस.पी. साहब से कहा पिछले पाँच वर्षों से तो इस पर ऐसे मामलों का कोई अपराध दर्ज नहीं हैं , और अब भी इसने ये किया ऐसी कोई तफ्तीश नहीं है फिर ऐसी जल्दबाजी क्यों ? एस.पी. साहब बोले केस आई.जी.साहब ने देख लिया है , इसका पुराना रिकार्ड है , ये कसाई का काम करता था , और अब आप इंकार न करो , आई.जी. मेरी खबर ले लेंगे । एस. पी. मेरे अभिन्न मित्र थे और उनकी बात को टालना मेरे लिए बड़ा कष्टप्रद हो रहा था , मैंने कहा देखिए चौधरी साहब ये परम्परा नहीं है कि आपके प्रस्तुत इश्तग़ाशे पर डी.एम. का कोई विरोधी रुख़ हो इसलिए मैं कह रहा हूँ आप आई.जी. साहब को बता दो , फिर सही अपराधी के विरुद्ध मजबूत केस लाओ । एस.पी. साहब बोले मैं तो आई.जी. से बात करने की हिम्मत नहीं कर सकता ये बात आप ही उनको समझाओ । मैंने कहा अच्छा मैं ही बात कर लेता हूँ और उनके सामने ही आई जी साहब को फ़ोन लगा मैंने तफ़सील से पूरी स्थिति बयान की और कहा माननीय हाईकोर्ट में ये प्रकरण दो मिनट भी ना टिकेगा आख़िर आदेश की पुष्टि तो वहीं से होगी, पारित करने वाला मैं हूँ तो ऐसी स्थिति में कभी कभी आदेशकर्ता के विरुद्ध भी स्ट्रक्चर पारित हो जाता है , इसलिए मेरी सलाह है कि इसे रहने दें । आई.जी. साहब मान गए और एस.पी. साहब ने भी संतोष की साँस ली ।