
Red Tapism: लाल फ़ीताशाही का कमाल
– एन के त्रिपाठी

प्रत्येक भारतीय इस बात से सहमत होगा कि हमें देश का तेज़ी से विकास करना है। प्रधानमंत्री मोदी ने तो 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने का सपना दिया है। स्वतंत्रता के बाद 40 वर्षों तक वास्तविक विकास अवरुद्ध रह है। 1991 में नरसिम्हा राव के नेतृत्व में मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधार से हम खड़े हुए।अब तेज चलने के लिए हमे दूसरी पीढ़ी के नए आर्थिक सुधार करने पड़ेंगे। लेकिन सुधार का हर क़दम भारी राजनैतिक मूल्य माँगता है। किसी भी सुधार को कोई न कोई प्रबल वर्ग ( या नेता ) उसे ध्वस्त कर सकता है।हमने कृषि सुधारों का हश्र देखा है। लेकिन यदि हम सुधार नहीं कर पाते हैं तो हमें महाशक्ति बनने का सपना भूल जाना चाहिए।
हम सब सरकारी लालफ़ीताशाही ( Red Tapism ) का अर्थ समझते हैं।दुर्भाग्यवश भारत में लाल फ़ीताशाही की प्रक्रिया का जंजाल विकास रथ में पच्चड़ का काम करता है। यह ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस में बड़ा व्यवधान है। सौभाग्यवश बिना पैसा व्यय किए इसका समाधान है। नियमों और प्रक्रियाओं में सुधार कर लाल फ़ीताशाही का शिकंजा समाप्त कर तेज विकास जा सकता है। विकास के लिए उद्योग सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं और उसमें सौर ऊर्जा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। राष्ट्रीय समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ है कि टीमलीज़ रेजटेक ( TeamLease RegTech ) नामक संस्था ने अध्ययन कर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट दी है। इसके अनुसार सौर ऊर्जा का प्लांट लगाने से संबंधित केंद्र और राज्य के 35 क़ानून है। सरकार के 30 विभाग इससे संबंधित है जिनमें पर्यावरण, सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी इत्यादि सम्मिलित हैं। एक मेगावॉट का सोलर प्लांट लगाने के लिए लगभग 100 लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन या अनुमतियां लेनी पड़ती है। हम सब जानते हैं कि इसके लिए क्या-क्या करना पड़ता है।
प्लांट लगा लेने के बाद मासिक, त्रैमासिक एवं वार्षिक पालन प्रतिवेदन ( compliance) का सिलसिला प्रारंभ होता है।अधिकारियों/ कर्मचारियों के भ्रमण होते हैं। रिकॉर्ड रखना पड़ता है। पअविश्वसनीय संख्या 2735 पालन प्रतिवेदन देने पड़ते हैं, जिनमें चालीस प्रतिशत श्रम विभाग से संबंधित हैं। इतनी विशाल संख्या के पालन प्रतिवेदनों में से केवल 40 प्रतिशत ऑनलाइन किए जा सकते हैं। सरकार की एकल खिड़की में झांकिये तो अनगिनत और खिड़कियाँ नज़र आएंगी।
उपरोक्त आंकड़े जिस संस्था ने दिए हैं वे ग़लत हो सकते हैं। परंतु वे देश की दशा और दिशा में लाल फ़ीताशाही के अड़ंगे को प्रस्तुत करते हैं। क्या इस स्थिति में भारत 2030 तक रखे गए टारगेट 500 गीगावाट ग्रीन एनर्जी बना सकता है? यदि यह समस्या सरकार और नीति आयोग के संज्ञान में लाई जाती है तो वे कहीं इस समस्या को हल करने के लिए एक और नया विभाग बना कर नई लाल फ़ीताशाही खड़ी न कर दें।
वन्दे भारत !





