रविवारीय गपशप : जब कमिश्नर साहब ने कहा- मुझे नहीं चाहिए नई कार!

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रविवारीय गपशप : जब कमिश्नर साहब ने कहा- मुझे नहीं चाहिए नई कार!

 

आनंद शर्मा

नई उमर में गाड़ी का शौक किसे नहीं होता ? मैं जब कॉलेज पहुँचा तो दो पहिया वाहन के नाम पर मेरे पास सायकल थी , स्कूटर और मोटरसायकल गिने चुने युवाओं को ही नसीब थीं और मेरे निकट के मित्रों में ऐसा कोई खुशनसीब नहीं था । स्कूटर दो ही ब्रांड की होती थीं , वेस्पा और लैम्ब्रेटा तथा मोटरसायकल भी अमूमन दो ब्रांड की , बुलेट और यामाहा। दो पहिया वाहनों में तभी राजदूत मोटरसायकल ने कदम रखा और युवाओं में इसके लिए एक अलग क्रेज देखने को मिलने लगा । एक दिन शाम की बात है , कटनी के गजानन टॉकीज़ चौराहे पर जब हम मित्र इकट्ठे हुए तो हममें से एक मित्र ओमप्रकाश उर्फ़ पल्लू सोनी राजदूत मोटरसायकल के साथ नमूदार हुए । हम मित्रों की तो बांछें खिल गईं कि हममें से कोई एक मोटरसायकल वाला हो गया है , ये और बात थी कि मोटरसायकल उनकी नहीं बल्कि उनके चाचा की थी और वे शौक में उनसे चलाने के लिए माँग कर लाए थे । पल्लू सोनी ने मुझे और राकेश अग्रवाल को पहली सवारी के लिए चुना और हम सब बाइक पर बैठ एन.के.जे. यानी न्यू कटनी जंक्शन की और चल दिए जहाँ ट्रैफ़िक न के बराबर होता था । हम तीनों में पल्लू ही बाइक चलाना जानता था , सो बाक़ी के दोस्त पीछे बैठ गए । एन.के.जे. के रास्ते पर सड़क बड़ी संकरी और घुमावदार थी और पल्लू सोनी पहली बार बाइक चला रहे थे सो एक मोड़ पर हाथ बहक गया और सड़क छोड़ मोटरसायकल साथ के कच्चे रास्ते पर उतर गई और थोड़ी ही देर में किसी पेड़ से टकरा कर बाइक समेत हम तीनों साथी जमींन पर आ गिरे । संयोग से किसी को मामूली खरोंचोंके अलावा कोई और चोट नहीं थी पर उठ कर पहली चिंता ये हुई कि अब घर में क्या बतायेंगे ? पल्लू के हाथ पैर फूल चुके थे कि मोटरसायकल में हुए नुकसान के बारे में चाचा को क्या कहेगा ? अचानक हमें याद आया कि हममें से एक राकेश अग्रवाल के रिश्ते के एक चाचा तो मोटरसायकल मैकेनिक थे । हम सब मोटरसायकल को घसीटते हुए हीरागंज में चाचा की दुकान तक पहुँचे और उनसे इल्तिजा की कि इसे ऐसा बना दो कि कोई कह न सके की बाइक कहीं एक्सीडेंट हुई है । चाचा भले मानुस थे , उन्होंने कहा ज़्यादा टूटफ़ूट नहीं है , मैं ठीक कर देता हूँ , कल सुबह आकर ले जाना । जैसे तैसे दूसरे दिन बाइक वापस की गई , ये और बात है कि चाचा ने पहली नज़र में ही पहचान लिया कि बाइक कहीं गिरा पड़ा के वापस लाई गई है ।

मुझे राजदूत मोटर सायकल तब नसीब हुई जब नौकरी लगी और मैं डिप्टी कलेक्टर बन गया । राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ अनुविभाग में एस.डी.एम. बनने पर मुझे वाहन के नाम पर राजदूत मोटरसायकल ही मिली जो बी.डी.ओ. साहब के साथ शेयर करनी पड़ती थी । धीमे धीमे नौकरी में पदोन्नति के साथ साथ वाहन और उनकी क़िस्में भी निखरती गईं , पर जिस वाहन का मैं मुरीद था वो थी एम्बेसेडर कार । इंदौर संभाग में मैं जब अपर आयुक्त राजस्व पदस्थ हुआ तो मुझे वाहन के रूप में एम्बेसेडर कार ही मुहैया हुई , और वो मेरे केरियर की आख़िरी एम्बेसेडर कार थी । उन दिनों प्रदेश के मुख्य सचिव बी.पी.सिंह साहब राजस्व मामलों के सुधार की एक अनूठी मुहिम छेड़े हुए थे और ख़ुद जिलों व तहसीलों में पहुँच मामलों की समीक्षा किया करते थे । ज़ाहिर है जनता की तकलीफें भी दूर होनी शुरू हुईं और विभाग की परेशानियों से निज़ात पाने की कोशिशें भी आरंभ हो गईं । इसी कड़ी में ये तय हुआ कि संभाग में पदस्थ अपर आयुक्त खटारा वाहनों के कारण संभाग के दौरे नहीं कर पाते हैं लिहाजा उन्हें नए वाहन दिलाए जाएँगे । निर्णय के तुरंत बाद आदेश और बजट दोनों आ गए । मैं भारी प्रसन्न हुआ की अब नया वाहन मिलने वाला है । मैंने नए वाहन के कोटेशन आदि की प्रक्रियाएं प्रारंभ कीं ही थीं कि एक सुबह ऑफिस में मुझे कमिश्नर साहब ने बुलाया और कहा “ तुम्हारी कार के लिए जो बजट आया है उससे मैं गाड़ी ले लेता हूँ , तुम मेरी पुरानी गाड़ी ले लेना” । मैं हाँ कहने के अलावा कह ही क्या सकता था , पर मैंने एक काम किया , मेरे बैचमेट रजनीश श्रीवास्तव को , जो प्रमुख राजस्व आयुक्त था और चीफ सेक्रेटरी के साथ इन दौरों पर साथ रहता था , को फ़ोन लगाया और अपनी भड़ास उस पर निकाल दी कि चीफ सेक्रेटरी वादे तो कुछ और करते हैं और जमीनी हक़ीक़त कुछ और ही होती है । दूसरे दिन सुबह मैं खंडवा जिले के दौरे पर जा रहा था कि रास्ते में ही कमिश्नर साहब का फ़ोन आ गया । मैंने कार रोकी और फ़ोन सुना तो मोबाइल पर वे कह रहे थे “ आनन्द जो बजट आया है उससे तुम अपने लिए ही कार ले लो , मुझे नई कार नहीं चाहिए “ ।

जब कमिश्नर साहब ने कहा- मुझे नहीं चाहिए नई कार!