जिंदगी में मुझे जो नाम और पैसा मिला है वो मौत के समय किसी काम का नहीं है…

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जिंदगी में मुझे जो नाम और पैसा मिला है वो मौत के समय किसी काम का नहीं है…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

बहुत बड़े दु:खी मन से यह लिखना पड़ रहा है कि लोगों ने जीवन को पैसों का एक पार्ट मान लिया है। जबकि सच्चाई इसके ठीक उलट है, इसका अहसास पैसों के पहाड़ पर चढ़कर दुनिया पर राज करने वालों को भी मौत के समय ही हो पाता है। और जीते जी जिसको इसका अहसास हो गया, वह संत, फकीर हंसते-हंसते इस दुनिया में भी रहे और इस दुनिया से हंसते-हंसते ही विदा हुए। खैर आज हम बात कर रहे हैं दुनिया को ‘एप्पल’ देने वाले स्टीव जॉब्स की।

स्टीव के आखिरी शब्द थे- मैं बिजनेस वर्ल्ड में सफलता की चोटी पर पहुंच चुका हूं। वहीं दूसरों की नजर में मेरी लाइफ सफलता का दूसरा नाम है‌। लेकिन काम को छोड़कर अगर मैं मेरी लाइफ के बारे में बात करता हूं तो मुझे यही समझ आया कि ‘पैसा जीवन का सिर्फ एक पार्ट है और मैं इसमें अभ्यस्त हो चुका हूं। आज इस बेड पर पड़े रहकर अगर मैं अपनी पूरी लाइफ को रिकॉल करता हूं तो मुझे लगता है कि जिंदगी में मुझे जो नाम और पैसा मिला है वो मौत के समय किसी काम का नहीं है।’ आज मैं यहा अंधेरे में लाइफ सर्पोटिंग मशीन की ग्रीन लाइट देख रहा हूं। साथ ही भगवान को भी महसूस कर रहा हूं। मुझे मौत पास आती नजर आ रही है। मैं कहना चहता हूं कि जब आप अपने आखिरी समय के लिए पर्याप्त रुपया इकठ्ठा कर लेते हो तो आपको रिश्तों, अपनी कला और बचपन के सपनों पर ध्यान देना चाहिए। हमेशा और लगातार पैसा कमाने की आदत आपको मेरी तरह ही एक विकृत इंसान बना देगी।

दुनिया में पैसा और नाम कमाने वाले अधिकतर लोग स्टीव जॉब्स की तरह ही एक विकृत इंसान बनकर दुनिया से विदा होने को मजबूर होते हैं और दुर्भाग्य है कि अपने मन की यह सच्चाई भी वह अपने ओठों पर नहीं ला पाते। खैर आज हम स्टीव जॉब्स का जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 14 साल पहले 5 अक्टूबर 2011 को स्टीव जॉब्स ने 56 साल 7 महीने 11 दिन की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा था। तब वह अमेरिका में धनपतियों की सूची में 43वें स्थान पर थे। सन् 2003 में उन्हें पैनक्रियाटिक कैन्सर की बीमारी हुई। उन्होंने इस बीमारी का इलाज ठीक से नहीं करवाया। जॉब्स की 5 अक्टूबर 2011 को 3 बजे के आसपास पालो अल्टो, कैलिफोर्निया के घर में निधन हो गया था। प्रतिष्ठा और नाम की बात करें तो सन् 1982 में टाइम मैगजीन ने उनके द्वारा बनाये गये एप्पल कम्प्यूटर को मशीन ऑफ दि इयर का खिताब दिया था। सन् 1985 में उन्हें अमरीकी राष्ट्रपति द्वारा नेशनल मेडल ऑफ टेक्नलोजी प्राप्त हुआ था। उसी साल उन्हें अपने योगदान के लिये साम्युएल एस बिएर्ड पुरस्कार मिला था। नवम्बर 2007 में फार्चून मैगजीन ने उन्हें उद्योग में सबसे शक्तिशाली पुरुष का खिताब दिया था। उसी साल में उन्हें ‘कैलिफोर्निया हाल ऑफ फेम’ का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। अगस्त 2009 में, वे जूनियर उपलब्धि द्वारा एक सर्वेक्षण में किशोरों के बीच सबसे अधिक प्रशंसा प्राप्त उद्यमी के रूप में चयनित किये गये थे। पहले इंक पत्रिका द्वारा 1989 में ‘दशक के उद्यमी’ नामित किये गये थे। 5 नवम्बर 2009, जाब्स् फॉर्च्यून पत्रिका द्वारा दशक के सीईओ नामित किये गये थे। नवम्बर 2010 में, जाब्स् फोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें अपना ‘पर्सन ऑफ दि इयर’ चुना। 21 दिसम्बर 2011 को बुडापेस्ट में ग्राफिसाफ्ट कंपनी ने उन्हें आधुनिक युग के महानतम व्यक्तित्वों में से एक चुनकर, स्टीव जॉब्स को दुनिया की पहली कांस्य प्रतिमा भेंट की थी। युवा वयस्कों (उम्र 16-25) को जब जनवरी 2012 में, समय की सबसे बड़ी प्रर्वतक पहचान चुनने को कहा गया, स्टीव जॉब्स थॉमस एडीसन के पीछे दूसरे स्थान पर थे। 12 फरवरी 2012 को उन्हें मरणोपरांत ग्रैमी न्यासी पुरस्कार, ‘प्रदर्शन से असंबंधित’ क्षेत्रों में संगीत उद्योग को प्रभावित करने के लिये मिला था। मार्च 2012 में, वैश्विक व्यापार पत्रिका फॉर्चून ने उन्हें ‘शानदार दूरदर्शी, प्रेरक बुलाते हुए हमारी पीढ़ी का सर्वोत्कृष्ट उद्यमी का नाम दिया था। जॉन कार्टर और ब्रेव नामक दो फिल्में जाब्स को समर्पित की गईं हैं।

ऐसे स्टीव जॉब्स का जन्म 24 फरवरी 1955 को सैन फ्रांसिस्को,कैलिफोर्निया में हुआ था। वह नितांत गरीबी और गुमनामी में पले-बढ़े थे तो अमीरी और नाम-प्रतिष्ठा के शिखर को छुआ था। स्टीव जॉब्स का भारत और भारतीय संस्कृति से भी गहरा नाता रहा। जॉब्स ने आध्यात्मिक ज्ञान के लिए भारत की यात्रा की और बौद्ध धर्म को अपनाया। वह कैंची आश्रम नैनीताल अल्मोड़ा के संत नीम करोली बाबा से भी मिले थे जिन्होंने इनके उज्जवल भविष्य की सटीक भविष्यवाणी की थी। मध्य 1974, में आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में जॉब्स अपने कुछ रीड कॉलेज के मित्रों के साथ नीम करोली बाबा से मिलने भारत आए। किंतु जब वे कारोली बाबा के आश्रम पहुँचे तो उन्हें पता चला कि उनकी मृत्यु सितम्बर 1973 को ही हो चुकी तब उन्होंने हेडा खान बाबाजी से मिलने का निर्णय किया। उन्होंने भारत में काफी समय दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में बिताया। सात महीने भारत में रहने के बाद वे वापस अमेरिका चले गऐ। उन्होंने अपनी उपस्थिति बदल डाली, उन्होंने अपना सिर मुंडा दिया और पारंपरिक भारतीय वस्त्र पहनने शुरू कर दिए, साथ ही वे जैन, बौद्ध धर्मों के गंभीर अनुयायी भी बन गये। और इसके बाद ही ‘एप्पल’ की उनकी यात्रा शुरू हुई थी।

तो स्टीव जॉब्स को आधुनिक युग के एक आदर्श व्यक्तित्व और कृतित्व के रूप में अपने दिल-दिमाग में संजोया जा सकता है। एक उत्कृष्ट अविष्कारक, एक महान चिंतक-विचारक और सफलता के शिखर पर राज करने वाले स्टीव जॉब्स अपनी उपलब्धियों के लिए हमेशा जाने जाएंगे। तो उनके अनुभव भी जिंदगियां संवारने का स्रोत हैं। अंतिम समय की उनकी यह पंक्तियां ब्रह्म वाक्य की तरह ही हैं कि ‘जिंदगी में मुझे जो नाम और पैसा मिला है वो मौत के समय किसी काम का नहीं है…।’

 

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।