Importance of 90 Minutes: 90 मिनट की जंग में मानवता का चेहरा

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Importance of 90 Minutes: 90 मिनट की जंग में मानवता का चेहरा

symptoms of heart attack-

महेश बंसल

यह घटना मुंबई निवासी भतीजे की पत्नी की जुबानी है, जिनके हेल्दी फूड के अनेक जगह आउटलेट है –
“परसो हमारे हेड शेफ अमर शेट्टी (31 वर्ष) की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई। बहुत ज्यादा पसीना, सिर एवं पीठ में दर्द होने लगा। वो हमारे दादर आउटलेट से दूसरे आउटलेट पर मोटर बाइक से जा रहा था।”
“तबीयत अचानक बहुत खराब होने से वह निकटतम एक मेडिकल शॉप में अपनी बाइक रोक कर बैठ गया। मेडिकल शॉप का आदमी बहुत अच्छा था। अमर ने अपनी मम्मी एवं पत्नी को अपने फोन से कॉल करवाया, लेकिन दोनों ने ही फोन नहीं उठा पाए। फिर अमर ने मेडिकल वाले को कहा मेरे सर को फ़ोन लगाओ। वो फोन उठा लेंगे, आशीष ने फोन उठा लिया । मेडिकल वाले को कहा कि एसिडिटी की दवा दे दो। मेडिकल वाले ने कहा सर एसिडिटी नहीं दिख रही, हार्ट अटैक लग रहा है।”
“आशीष ने तुरंत हमारे सभी निकट के आउटलेट के लोगो को दादर मेडिकल शॉप पर पहुंचने के निर्देश दिए, और स्कूटर न चलाने की दिनचर्या के बावजूद जल्दी पहुंचने के लिए तुरंत स्कूटर पर दादर के लिए स्वयं निकल गए।”
“आशीष ने मुझे भी फोन किया कि अमर की तबीयत बहुत खराब हो गई है। मेडिकल शॉप वाले के अनुसार हार्ट अटैक लग रहा है। अमर के पापा टैक्सी ड्राइवर थे, मेरे मम्मी पापा का बहुत काम करते थे, मम्मी की उन्होंने बहुत सेवा की थी। हमारे यहाँ भी आते थे. पिछले साल दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।”
“मेरे भाई ने बोला कि मेडिकल वाले को बोल एस्पिरिन और 2 अन्य दवाएं दे दें। मैंने मेडिकल वाले को फोन लगाया और दिल की दवा तुरंत दिलवा दी। मेडिकल शॉप वाले को भी अमर के लक्षण हार्ट अटैक के दिख रहे हैं। उसने कहा मैडम आपके कहने पर दवाई दे रहा हूं। मैने कहा ठीक है, फिर भी उसने समीप के हार्ट हॉस्पिटल के डॉक्टर को फोन किया और दवाइयां कन्फर्म कीं और दवा अमर को खिला दी।”
“हमारे लड़के वहां पहुंच कर अमर को, समीप के उसी हार्ट हॉस्पिटल में ले गए जो मेडिसिन शॉप के पास ही था। वहां डॉक्टर्स को मालूम था, क्योंकि मेडिकल शॉप वाले ने उनसे बात की थी।”
“इतने में आशीष भी अस्पताल पहुंच गए। अमर का ईसीजी हुआ, उसमें गड़बड़ आई। हार्ट अटैक दिखा. आशीष ने डॉ से बात की और दूसरे कार्डियोलॉजिस्ट से कोऑर्डिनेट किया।
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सब डॉक्टर्स बोलने लगे कि 90 मिनट का विंडो है अगर जान बचानी है।
उसकी मम्मी भी अस्पताल में पहुंच गई। उसकी मम्मी ने आशीष को कहा, आप ही फैसला लीजिए। आशीष ने 2-3 डॉक्टरों से बात की, हमारे बाकी स्टाफ ने लोगो से पूछ कर उस अस्पताल के बारे में पता किया और फैसला लिया कि उसी अस्पताल में एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी कराएंगे।”
“हास्पिटल में पैसे जमा करने हेतु अमर की फैमिली सक्षम नहीं थी, ऐसी स्थिति में आशीष ने हास्पिटल में तुरंत पैसे जमा किये। सब कुछ उस सुनहरे 90 मिनट के भीतर हो गया। आज अमर खतरे से बाहर है, आईसीयू से वार्ड में शिफ्ट हो चुका है। उसकी 9 माह की नन्ही बच्ची अब अपने पिता को खोने से बच गई है।”
यह केवल एक घटना नहीं, यह प्रमाण है कि मानवता और नेतृत्व कठिन समय में किस तरह जीवनदायिनी बनते हैं। आशीष ने केवल एक कर्मचारी की नहीं, बल्कि एक पूरे परिवार की ज़िंदगी बचाई है। सच्ची सेवा वही है, जहाँ समय पर लिया गया निर्णय, किसी की साँसें लौटा दे।