
KILLER COUGH SYRUP: शासन, प्रशासन गहरी नींद में था, “मौत का सिरप” बच्चों को मारता रहा
रंजन श्रीवास्तव
मात्र 5 महीने उम्र की पूर्वी, 7 महीने का अहरिश, 1.5 वर्षीया धानी और योगिता, 2 वर्षीया जायुशा, 2.5 साल का गर्मित, 3 वर्षीय विधि और दिव्यांशु, 4 वर्षीया कबीर, शिवम, हितांश, चंचलेश और उसेद, 5 वर्षीया अदनान, ऋषिका और विकास, 6 वर्षीया दिव्यांशु, 7 साल की आतिया, 8 वर्षीय सत्य पवार और एक और बच्चा वेदांश मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा, पांढुर्ना और बैतूल जिलों के वे बच्चे हैं जिनको उनके माता पिता ने बीमारी से बचाने के लिए कोल्ड्रिफ सिरप पिलाया था.
पर माता पिता को यह पता नहीं था वे अपने नौनिहालों को अपने हाथों से ही कफ का सिरप नहीं बल्कि मौत का सिरप पिला रहे हैं.
ना ही बच्चों को पता था कि जो सिरप वे अपने माता पिता के हाथों से पी रहे हैं वह उनके लिए जीवन का अंतिम सिरप सिद्ध होगा.
और ऐसा भी नहीं कि बच्चों के माता पिता को कोई सपना आया था कि उनको अपने बच्चों को खांसी बुखार से बचाने के लिए कोल्ड्रिफ सिरप ही देना है. इनमें से बहुत से बच्चों को जो छिंदवाड़ा और पांढुर्ना के थे, उनके माता पिता ने सर्दी, खांसी, बुखार के बाद डॉक्टर प्रवीण सोनी को उनके प्राइवेट क्लिनिक पर ले जाकर दिखाया था.
ठीक होने के बजाय बच्चों की हालत ख़राब होने पर डॉक्टर प्रवीण सोनी या उनकी अनुपस्थिति में क्लिनिक पर कार्यरत एक और डॉक्टर को फिर से दिखाया गया पर बच्चों की हालत में सुधार होता नहीं देख बच्चों को या तो जिला चिकित्सालय या किसी और बड़े निजी अस्पताल और बाद में नागपुर ले जाया गया.
प्रदेश के उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल जो स्वास्थ्य मंत्री भी हैं उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि अब तक 20 बच्चों की मृत्यु हो चुकी है.
ऐसा नहीं कि औद्योगिक साल्वेंट डाईएथिलीन ग्लाइकॉल मिश्रित कफ सिरप का कहर सिर्फ मध्य प्रदेश में देखने को मिला है. ऐसे ही कफ सिरप से पड़ोसी राज्य राजस्थान में 4 बच्चे और कई बच्चे उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब और कर्नाटक में भी मौत का शिकार हुए हैं.
मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा, पांढुर्ना और बैतूल ऐसे जिले हैं जहाँ गरीबी में बहुतायत लोग जीवन यापन कर रहे हैं. मजदूरी करके दो वक़्त की रोटी जुटा लेने में ही उनका जीवन समाप्त हो जाता है.
बचत करना और इलाज पर अलग से पैसे खर्च करना उनके लिए सपने देखने से कम नहीं है. उनके बीच आदिवासियों की भी संख्या अच्छी खासी है. पर अपने नौनिहालों को बचाने की हर माता पिता ने पूरी कोशिश की.
इन ज़िलों से आ रही मीडिया के ख़बरों के मुताबिक किसी ने अपना गहना बेचा, किसी ने अपना ऑटो रिक्शा बेचा, किसी ने मित्रों और रिश्तेदारों से कर्ज लिया इलाज़ पर खर्च के लिए पर कफ सिरप में जहरीला केमिकल डायएथिलीन ग्लाइकॉल की मिलावट के कारण बच्चों की पहले किडनी ने काम करना बंद कर दिया, पेशाब आना बंद हो गया और बाद में दिल सहित अन्य अंगो ने काम करना बंद कर दिया.
बच्चों के कफ सिरप से प्रभावित होने और मौतों का सिलसिला अगस्त महीने में शुरू हो गया था. पर शासन, प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और यहाँ तक कि स्थानीय जन प्रतिनिधियों तथा विपक्ष को तभी इन मौतों का आभास हुआ जब प्रभावित बच्चों की संख्या तथा मौतें खतरनाक ढंग से बढ़ने लगीं.
सरकार के गहरी नींद में होने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य विभाग में जिम्मेदार पदों पर बैठे वरिष्ठ व्यक्ति दो दिन पहले तक इस बात से इंकार कर रहे थे कि बच्चों के मौतों का कारण कफ सिरप है.
ताजुब है पूरा स्वास्थ्य विभाग सोता रहा और बच्चे कफ सिरप से मरते रहे. स्वास्थ्य मंत्री भी छिंदवाड़ा तभी गए जब मुख्यमंत्री ने इस मामले का देर से ही सही पर संज्ञान लिया और उनके निर्देश के बाद त्वरित कार्रवाई करते हुए पुलिस ने डॉक्टर प्रवीण सोनी को गिरफ्तार किया तथा ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े तीन अधिकारियों को निलंबित किया गया.
राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री तो एक कदम और आगे चले गए. उन्होंने बच्चों के माता पिता को ही बच्चों को दवा पिलाने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जबकि यह प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है कि किसी भी दवा के निर्माण में सारे मानकों का पालन फार्मास्यूटिकल कंपनी द्वारा की जाय.
कोल्ड्रिफ को बनाने वाली फार्मास्यूटिकल कंपनी तमिलनाडु की श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स है. उसकी जांच में पाया गया कि उसकी फैक्ट्री में कम से कम 350 मानकों का उल्लंघन किया जा रहा था जैसे अस्वच्छ वातावरण, मैन्युफैक्चरिंग में जंग लगे उपकरण का उपयोग, कोई एयर हैंडलिंग यूनिट नहीं. यहाँ तक कि कंपनी 16 साल से निष्क्रिय थी अर्थात ना तो कोई बैलेंस शीट था और ना ही वार्षिक आम सभा कि बैठक. कंपनी के खिलाफ विभिन्न धाराओं में एफआईआर दर्ज कर लिया गया है.
फैक्ट्री को सील कर दिया गया है तथा छिंदवाड़ा से एक पुलिस टीम कंपनी के प्रमुख को गिरफ्तार करने तमिलनाडु भेजा गया है.
जाहिर है मध्य प्रदेश में या अन्य सम्बंधित राज्यों में जिन अधिकारियों की यह जिम्मेदारी थी कि ऐसी दवाओं की बिक्री ना हो जिनमें जहरीले केमिकल का इस्तेमाल ज्यादा मात्र में मिलाकर और इस तरह दवा को कम से कम लागत में बनाकर फार्मास्यूटिकल्स कंपनियों द्वारा ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने का था, वो अपने कर्तव्य में असफल ही नहीं हुए बल्कि उनके आपराधिक लापरवाही से अभी तक 20 बच्चों की जान सिर्फ मध्य प्रदेश में जा चुकी है.
क्या इन अधिकारियों को ऐसा दंड मिलेगा कि आने वाले समय में एक नज़ीर बने और क्या स्वास्थ्य मंत्री को इन बच्चों की मौत की नैतिक जिम्मेदारी लेकर अपने पद से त्यागपत्र नहीं देना चाहिए?





