Jhabua की “मोटी आई” पहल बनी कुपोषण मुक्त भारत की मिसाल: Bhopal Conference में झाबुआ मॉडल की सराहना, 1950 बच्चों और 1325 महिलाओं को जोड़ा गया अभियान से

1160

Jhabua की “मोटी आई” पहल बनी कुपोषण मुक्त भारत की मिसाल: Bhopal Conference में झाबुआ मॉडल की सराहना, 1950 बच्चों और 1325 महिलाओं को जोड़ा गया अभियान से

 

– राजेश जयंत

 

Bhopal/Jhabua: मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचल झाबुआ जिले की “मोटी आई” पहल अब पूरे प्रदेश में कुपोषण उन्मूलन का रोल मॉडल बनकर उभरी है। भोपाल में आयोजित Collector- Commissioner Conference में जब झाबुआ Collector Neha Meena ने इस अनोखे नवाचार की प्रस्तुति दी, तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव समेत प्रदेश के आला अधिकारियों ने इसकी खुले दिल से प्रशंसा की।

IMG 20251009 WA0218

यह पहल झाबुआ में बच्चों और माताओं के पोषण स्तर को बेहतर बनाने के लिए समुदाय आधारित भागीदारी पर टिकी है- जिसमें स्थानीय महिलाओं को “मोटी आई” (मां जैसी संरक्षक) के रूप में प्रशिक्षित कर कुपोषित बच्चों की देखभाल और पोषण सुधार की जिम्मेदारी दी गई है।

IMG 20251009 WA0222

 *“मोटी आई” कॉन्सेप्ट क्या है?*

झाबुआ प्रशासन ने यह पहल तब शुरू की जब जिले में कुपोषण दर चिंता जनक स्तर पर थी। इस मॉडल के अंतर्गत

– 1950 गंभीर और मध्यम कुपोषित बच्चों की पहचान की गई,

– 1325 महिलाओं को “मोटी आई” के रूप में चुना गया।

इन महिलाओं को पारंपरिक पोषण विधियों, स्थानीय उपलब्ध अनाजों और घरेलू नुस्खों से बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने का प्रशिक्षण दिया गया। ये “मोटी आई” बच्चे की “दूसरी मां” बनकर रोज़ उसकी पोषण स्थिति पर कड़ी निगरानी रखती हैं- बच्चे का व्यवहार, भोजन का सेवन, वजन में सुधार और स्वास्थ्य में बदलाव की जानकारी रखती हैं।

IMG 20251009 WA0221

*स्थानीय भोजन पर आधारित मॉडल*

इस अभियान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें बाहरी सप्लिमेंट या महंगे फूड पैकेज की बजाय झाबुआ के पारंपरिक और स्थानीय भोजन को प्राथमिकता दी गई है। जैसे:

– मक्का की खिचड़ी,

– बाजरे का दलिया,

– मूंग, चना, उड़द जैसी दालें,

– और क्षेत्रीय स्तर पर मिलने वाले फल-सब्ज़ियां।

इनका मिश्रण कर बच्चों और माताओं को संतुलित और पोषण युक्त आहार उपलब्ध कराया जा रहा है।

IMG 20251009 WA0220

*सामुदायिक सहयोग की शक्ति*

झाबुआ कलेक्टर नेहा मीना ने बताया कि इस अभियान में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा कार्यकर्ताओं, स्व-सहायता समूहों और स्थानीय पंचायतों को भी शामिल किया गया है, जिससे सामूहिक जिम्मेदारी और भागीदारी को मजबूती मिली। कई गांवों में “मोटी आई दिवस” मनाकर ग्रामीण महिलाएं पोषण युक्त भोजन बनाती हैं और अपने अनुभव साझा करती हैं, जिससे अभियान की प्रेरणा और व्यापक होती है।

IMG 20251009 WA0219

*”झाबुआ मॉडल” को मिली राज्यव्यापी पहचान*

भोपाल सम्मेलन में झाबुआ कलेक्टर नेहा मीना की प्रस्तुति के बाद अधिकारियों ने इसे “मॉडल ऑफ कम्युनिटी पार्टिसिपेशन” कहा। मुख्यमंत्री ने इस मॉडल को प्रदेश के अन्य आदिवासी जिलों में भी अपनाए जाने की बात कही। उन्होंने कहा-

“कुपोषण से लड़ाई केवल योजनाओं से नहीं, बल्कि समाज की भागीदारी से जीती जा सकती है। झाबुआ की ‘मोटी आई’ पहल इस बात का सशक्त उदाहरण है। यह केवल पोषण कार्यक्रम नहीं, बल्कि समाज सशक्तिकरण का भी उदाहरण है।”

समीक्षा के दौरान स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव संदीप यादव एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी कहा कि झाबुआ मॉडल स्थानीय संसाधनों और जनभागीदारी के माध्यम से कुपोषण मिटाने की दिशा में एक मजबूत कदम है।

*परिणाम: आंकड़े बताते हैं सफलता*  

अभियान प्रारंभ होने के बाद से आयें महत्वपूर्ण परिवर्तन-

1. 1200 से अधिक बच्चों के वजन और स्वास्थ्य में सुधार

2. 800 परिवारों ने स्थायी पोषण उद्यान (Nutrition Gardens) स्थापित किए

3. कई गांवों में कुपोषण दर में 25% तक गिरावट दर्ज हुई है।

*निष्कर्ष*

झाबुआ की “मोटी आई” पहल अब केवल एक जिले की सफलता नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के लिए प्रेरक और क्रांतिकारी उदाहरण बन चुकी है। आगामी दिनों में इसे अलीराजपुर, धार, बड़वानी जैसे अन्य आदिवासी जिलों में भी तेजी से लागू करने की योजना है।

झाबुआ की ‘मोटी आई’ योजना ने साबित किया है कि जब समाज खुद कदम बढ़ाता है, तो सरकारी योजनाएं कई गुना प्रभावी हो जाती हैं।

यह पहल प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जब माएं, समाज और प्रशासन साथ मिलकर काम करें, तो कुपोषण जैसे गंभीर सामाजिक संकट को भी मात दी जा सकती है।