
मंत्री बने दुकानदार! धनतेरस पर कैलाश विजयवर्गीय 65 वर्ष पुरानी पुश्तैनी दुकान में तराजू संभालते दिखे, याद किए पुराने दिन
इंदौर: इंदौर में धनतेरस पर राजनीति के मैदान के धुरंधर प्रदेश के नगरीय विकास और आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय आज धनतेरस के दिन अलग अंदाज में नजर आए। मंचों पर भाषण देने वाले मंत्री इस बार इंदौर के नंदलालपुरा स्थित अपनी पुश्तैनी दुकान में तराजू संभालते दिखे।
अपनों से स्नेहिल भेंट !!!
हर वर्ष की तरह आज पावन धनतेरस पर इंदौर स्थित अपनी पुश्तैनी किराना दुकान ‘काकी जी की दुकान’ पर सामान की बिक्री करते हुए स्वजनों से भेंट का स्नेहिल अवसर प्राप्त हुआ।
यह दुकान वह पारिवारिक विरासत है, जिसकी दीवारों में अपनापन और हर कोने में स्नेह की… pic.twitter.com/UW5ql1rqmR
— Kailash Vijayvargiya (@KailashOnline) October 18, 2025
इस संबंध में विजयवर्गीय ने अपनी एक्स पोस्ट पर लिखा कि
हर वर्ष की तरह आज पावन त्यौहार धनतेरस पर इंदौर स्थित अपनी पुश्तैनी किराना दुकान ‘काकी जी की दुकान’ पर सामान की बिक्री करते हुए स्वजनों से भेंट का स्नेहिल अवसर प्राप्त हुआ।
यह दुकान वह पारिवारिक विरासत है, जिसकी दीवारों में अपनापन और हर कोने में स्नेह की गर्माहट रची-बसी है।
परंपरा का यह दीपक हमें हर वर्ष अपनी जड़ों की ओर लौटने की प्रेरणा देता है।

इस अवसर पर उन्होंने अपनी किराने की दुकान पर बैठकर उन्होंने ग्राहकों को सामान तौला, हालचाल पूछे और दीपावली की शुभकामनाएं दीं। सत्ता और सेवा के बीच कैलाश जी ने यह जताया कि रिश्ते, परंपरा और मेहनत की महक अब भी उनके हाथों में बसी है।
धनतेरस के अवसर पर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय नंदानगर स्थित अपनी 65 साल पुरानी पुश्तैनी दुकान पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि एक समय पूरा परिवार इसी दुकान पर निर्भर था, इसलिए वे इसे अपना भाग्यस्थल मानते हैं। आज भी इस परंपरा को निभाने हर धनतेरस पर दुकान पर बैठते हैं। बोले — “पहले यही दुकान हमारे घर का सहारा थी, अब भी इसका ऋण चुकाना हमारा कर्तव्य है।”
विजयवर्गीय ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि जब दुकान शुरू हुई थी, तब शक्कर खरीदना भी बड़ी बात होती थी, लोग गुड़ और चाय की पत्ती लेने आते थे। उन्होंने गर्व से बताया कि आज भी दुकान पर सारा सामान स्वदेशी है — “जैसा प्रधानमंत्री मोदी का संदेश है, वैसा ही हमारा व्यवसाय।”
राजनीति की व्यस्तताओं के बीच भी उन्होंने यह साबित किया कि पद चाहे मंत्री का हो, पर जड़ें अब भी दुकानदार की ही हैं।जहां नेता कुर्सी पर बैठना नहीं छोड़ते, वहीं कैलाश जी अब भी तराजू पर हाथ आजमाते हैं — शायद इसलिए राजनीति में उनका वजन थोड़ा ज्यादा रहता है और वह आम आदमी के निकट बने हुए हैं।





