
51 शक्तिपीठों में एक- माता बगलामुखी मंदिर
– एन के त्रिपाठी
माता बगलामुखी का मंदिर पश्चिमी मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले के नलखेड़ा नामक स्थान में लखन्दर नदी के किनारे श्मशान घाट के निकट स्थित है। इस छोटे से स्थान पर स्थित यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। शक्तिपीठ वे पावन तीर्थ स्थान हैं जहाँ देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। मान्यता यह है कि इनकी स्थापना देवी सती के शरीर के उन हिस्सों से हुई जो भगवान शिव के तांडव नृत्य के दौरान गिरे थे। ये स्थान हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माने जाते हैं।
मई 1981, में मैंने इस मंदिर के दर्शन किए थे। इसके निकट स्थित सुसनेर क़स्बे ( तत्कालीन जिला शाजापुर) में 24 बटालियन की कंपनी का एक पोस्ट लगा था। मैं दो वर्षों से इस बटालियन का कमांडेंट था तथा पिछले महीने ही मैं इस बटालियन को आसाम से वापस लाया था। इसके वापस लौटने पर इस बटालियन के मुझसे पूर्व के इतिहास के कारण पुलिस मुख्यालय कुछ भयभीत था तथा इसलिए उसने मेरी पूरी बटालियन की कंपनियों को इन्दौर से रीवा तक फैला दिया था तथा प्रत्येक कंपनी को अनेक पोस्टों में बाँट दिया था। मेरी फ़ोर्स के इस वितरण हो जाने के पश्चात मैंने सभी पोस्टों पर अपने जवानों का उत्साह बढ़ाने तथा वहाँ की सुविधाओं का ध्यान रखने के लिए एक लम्बे भ्रमण करने का निश्चय किया। उसी तारतम्य में सुसनेर से लौटते समय मैं इस मंदिर में आया था। उस समय यह मंदिर बहुत विख्यात नहीं था तथा थोड़े ही लोग यहाँ दर्शन के लिए आते थे।
माता बगलामुखी मंदिर एक तांत्रिक स्थान है जहाँ पर अन्य पूजाओं के साथ एक विशिष्ट शत्रु विनाश का हवन भी किया जाता है। अनेक बड़े राजनीतिक नेता इससे आकृष्ट हुए और अपने राजनीतिक विरोधियों के नाश के लिए यहाँ की तंत्र विद्या का सहारा लेने लगे। मंदिर की ख्याति बढ़ती गई। अब प्रदेश के बाहर के राजनीतिज्ञों के साथ-साथ बाहर के आम तीर्थयात्री भी आने लगे हैं। अभी दो हफ़्ते पूर्व मैं किसी के आग्रह पर लक्ष्मी सहित इस मंदिर में पहुँचा। मेरे साथ अमर सिंह भी थे जो मेरी सेवाकाल के प्रारंभ में मेरे अर्दली के रूप में भर्ती हुए थे। वे कालांतर में निरीक्षक होकर सेवानिवृत्त हुए तथा अपने गाँव के समीप अपनी ज़मीन पर एक पेट्रोल पंप बना कर रहते हैं। वे आज भी मेरे प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं। उन्होंने इस मंदिर में पहुँचने के पूर्व ही कुछ आवश्यक प्रबंध कर लिए थे।
यह मन्दिर तीन मुखों वाली त्रिशक्ति बगलामुखी देवी को समर्पित है। मान्यता है कि द्वापर युग से चला आ रहा यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। इस मन्दिर में अब विभिन्न राज्यों से तथा स्थानीय लोग एवं साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के करने के लिए आते हैं। यहाँ बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी,कृष्ण, हनुमान,भैरव तथा सरस्वती की मूर्तियां भी स्थापित हैं।कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना महाभारत काल में विजय के उद्देश्य से भगवान कृष्ण की प्रेरणा से युधिष्ठिर ने की थी। मान्यता यह भी है कि यहाँ की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है। 1815 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। बगलामुखी माता तंत्र की देवी हैं और यह मान्यता है कि यहाँ की मूर्ति स्वयंभू और जागृत है।
इस मंदिर का भ्रमण ज्ञान वर्धन की दृष्टि से भी इस बार मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा।





