Flashback: दलित बारात पर हमला – मेरा एडिशनल SP का पहला दिन

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Flashback: दलित बारात पर हमला – मेरा एडिशनल SP का पहला दिन

1 मई, 1979 को दो वर्ष इन्दौर में CSP रहने के पश्चात वहीं पर मुझे एडिशनल SP बना दिया गया।इस पदोन्नति से मैं बहुत फूला नहीं समा रहा था।एडिशनल SP इंदौर के रूप में मेरा दायित्व ग्रामीण क्षेत्र का स्वतंत्र प्रभार,शहर का ट्रैफ़िक, SP आफिस का कार्य तथा पुलिस अधीक्षक द्वारा दिया गया शहर का भी कोई काम था।

उसी दिन मैंने चार्ज लिया तथा सायंकाल पूर्व एडिशनल SP श्री रमन Kakkad की विदाई की चाय पार्टी इंदौर पुलिस मैस में आयोजित हुई।

पार्टी के उपरांत लगभग साढ़े सात-आठ बजे शाम को जब मैं घर जा रहा था तब गाड़ी में वॉयरलेस से सूचना मिली कि ग्रामीण थाना सिमरोल में खंडवा रोड से पश्चिम में 2 किमी दूर स्थित ग्राम दातोदा में सवर्णों ने दलितों की एक बारात को गाँव में घुसने से रोकने के लिए हमला कर दिया है तथा उन्हें बारात निकालने नहीं दे रहे हैं।

सवर्णों का कहना था कि दूल्हा घोड़े से उतर कर जूता अपने हाथ में लेकर उनके घरों के सामने से निकले। इस घोर अपमानजनक माँग का विरोध करने पर बारात पर पथराव कर दिया और उन्हें 1 किलोमीटर तक गाँव के बाहर खदेड़ दिया। संयोगवश दूल्हा स्थानीय विधायक राधाकृष्ण मालवीय का अत्यंत निकट रिश्तेदार था।

Flashback: दलित बारात पर हमला - मेरा एडिशनल SP का पहला दिन

वर्तमान में सवर्ण दलितों के बारे में अधिकांश लोग केवल यही जानते हैं कि उन्हें शिक्षा और नौकरी में आरक्षण प्राप्त होता है। भूतकाल में उन पर हुए अत्याचारों की बात तो छोड़ ही दीजिये, आज भी दलितों को शारीरिक हानि के साथ साथ बहुत मानसिक यातनाओं का सामना करना पड़ता है।

पुलिस विभाग में सभी वर्गों की समस्याओं का जो व्यापक अनुभव मिलता है, उसे यदि खुले मस्तिष्क और हृदय की आँखों से देखा जाए तो संवेदना की पराकाष्ठा हो जाती है। स्वतंत्रता के पूर्व महात्मा गांधी और डॉक्टर अंबेडकर के अनवरत जागरूकता अभियान के उपरांत भी स्वतंत्र भारत अभी भी दलित अत्याचार के अभिशाप से मुक्त नहीं हुआ है। संविधान में दिए गए अधिकारों का हनन धरातल पर होता रहता है।

घटना की सूचना मिलने के बाद मैं ग्राम दातोदा के लिए रवाना हो गया। वहाँ पर गाँव से पहले ही सड़क के दोनों ओर दूल्हा और बराती अनमने भाव से अंधेरे में बैठे हुए मिले। बारात में सिर पर लेकर चलने वाली गैस बत्तियाँ टूटी फूटी पड़ी थीं और बहुत सा सामान अस्त व्यस्त बिखरा पड़ा था।

मुझे देखकर उनमें एक दम से चेतना आ गई और उन्होंने सवर्णों की घोर अपमानजनक बात का विवरण दिया और उन पर पथराव कर गाँव के बाहर खदेड़ देने की बात बतायी। यह भी पता चला कि विधायक राधाकृष्ण मालवीय जी ने स्वयं सिमरोल थाने जाकर इंदौर कंट्रोल और पुलिस अधीक्षक को फ़ोन पर सूचना दी थी।

घटनास्थल पर पहले से मौजूद थाना सिमरोल के थोड़े से पुलिसकर्मियों ने बताया कि ग्राम दातोदा एक बड़ी आबादी का गाँव है।बारात को पूरब दिशा से गांव में घुसकर पूरे गाँव को पार करते हुए पश्चिमी किनारे पर बसे दुल्हन के घर जाना था।

यह भी बताया गया कि गाँव के शुरू में ही कुछ ऐसे सवर्णों का घर है जो काफ़ी आक्रामक हो सकते हैं।मैंने वायरलेस पर बोल कर शहर से CSP एस एस शुक्ला और कुछ नगर निरीक्षकों को पर्याप्त बल के साथ घटना स्थल पर बुलाया।डेढ़ दो घंटे के बाद पर्याप्त फ़ोर्स और अधिकारी बारात के पास पहुँच गये।

मेरे काफ़ी अनुरोध करने पर बारात फिर चलने के लिए तैयार हुई।बारात को मैंने चारों तरफ़ से पुलिस के घेरे में ले लिया और मैं सबसे आगे पैदल चलते हुए गाँव की ओर बढ़ने लगा। गांव में घुसते ही मैंने असामाजिक तत्वों को धमकाने के लिए लाउड हेलर पर घोषणा की कि अगर किसी भी घर से एक कंकड़ भी आया तो उस पूरे घर को मैं नेस्तनाबूद कर दूँगा।

एक सामान्य बारात के हिसाब से गाँव के बीचों-बीच से रास्ता बहुत लंबा था। उस परिस्थिति में तो वह मार्ग और भी लम्बा प्रतीत हुआ हुआ। दूल्हा घोड़े पर बैठा था तथा बारात में एक नयी स्फूर्ति आ गई थी।

जवान लड़के, जिनमें से कुछ घायल भी थे, जोर शोर से नाचने लगे। बारात की चाल सामान्य से भी धीमी हो गई थी। बारात नाचते गाते लगभग तीन चार घंटे के बाद गाँव के दूसरे छोर पर अपने गन्तव्य पर पहुँची।बारात के दुल्हन के घर पहुँचने के बाद मैंने राहत की साँस ली।वहाँ पहुँचने के थोड़ी ही देर बाद गर्मियों की सुबह का हल्का प्रकाश आकाश में दिखाई देने लगा।

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दुल्हन बहुत ही सामान्य परिवार की थी।मुझे और CSP शुक्ला को बैठने के लिए बिना बिछौने की खाट लगायी गई और भोर की बेला में चाय प्रस्तुत की गई जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया। घटना के पश्चात पुलिस कार्रवाई में अनेक लोगों को मैंने जेल भिजवाया। ऐसी घटनाओं की ताक में बैठे बड़े-बड़े केंद्रीय और प्रादेशिक नेताओं का बहुत दिनों तक इस गाँव में राजनीतिक पर्यटन चलता रहा। दुर्भाग्यवश ऐसी घटनाएँ आज भी घटित हो रही हैं।

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महात्मा गाँधी और डॉ आम्बेडकर के सपनों को तोड़ता हुआ एक वर्ग विशेष की भावनाओं पर ऐसा अपमानजनक प्रहार आज भी मेरे मस्तिष्क पटल पर कभी-कभी स्पष्ट कौंध जाता है।