
Kissa-A-IAS: IAS Anuradha Pal: दूध बेचने वाले पिता की बेटी आज है इस राज्य की पहली महिला आबकारी आयुक्त
सुरेश तिवारी
हरिद्वार की साधारण गलियों से निकलकर भारतीय प्रशासनिक सेवा तक पहुंचने वाली अनुराधा पाल की कहानी हौसले, अनुशासन और आत्मविश्वास की मिसाल है। पिता दूध बेचकर परिवार चलाते थे, लेकिन बेटी ने हालात को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। आर्थिक संघर्षों और सीमित संसाधनों के बीच भी उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और UPSC परीक्षा न केवल एक बार बल्कि दो बार पास की। उनकी यह सफलता बताती है कि कठिनाइयां केवल इरादों की परीक्षा लेती हैं, मंज़िल उनसे हारती नहीं जो ठान लेते हैं कि “रुकना नहीं है”।

*संघर्षों से भरा बचपन और शिक्षा की शुरुआत*
उत्तराखंड के हरिद्वार ज़िले के एक छोटे से गांव में जन्मीं अनुराधा पाल का बचपन अभावों में गुज़रा। उनके पिता दूध बेचकर परिवार चलाते थे, जबकि मां ने कठिन परिस्थितियों में भी बच्चों की पढ़ाई नहीं रुकने दी। अनुराधा ने प्रारंभिक शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, हरिद्वार से पूरी की। बचपन से ही वे पढ़ाई में तेज और आत्मनिर्भर थीं। आगे उन्होंने जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बी.टेक की डिग्री हासिल की। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद उन्होंने हर मुश्किल को अवसर में बदला।

*UPSC की राह और दोहरी सफलता*
इंजीनियरिंग के बाद अनुराधा ने निजी क्षेत्र में कुछ समय काम किया, लेकिन उनका मन सिविल सेवा की ओर ही था। उन्होंने सीमित संसाधनों में UPSC की तैयारी शुरू की। वर्ष 2012 में पहले प्रयास में उन्हें 451 रैंक के साथ भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में चयन तो हुआ किंतु उनका लक्ष्य भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) था। इसलिए उन्होंने एक बार फिर पूरी लगन से तैयारी की और वर्ष 2015 में ऑल इंडिया रैंक 62 हासिल की। इस तरह उन्होंने दूसरी बार UPSC क्रैक कर IAS बनने का सपना साकार किया। उनकी यह उपलब्धि बताती है कि मजबूत इरादे किसी भी अभाव को हरा सकते हैं।

*प्रशासनिक यात्रा की शुरुआत*
2016 बैच की IAS अधिकारी अनुराधा पाल को उत्तराखंड कैडर आवंटित हुआ। प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद उन्होंने प्रशासनिक करियर की शुरुआत उप जिलाधिकारी (SDM) के रूप में की। कार्यकाल के शुरुआती वर्षों में उन्होंने विकास योजनाओं, कानून-व्यवस्था और जनकल्याण से जुड़े दायित्वों को निष्ठापूर्वक निभाया।
19 फरवरी 2021 को अनुराधा पाल को मुख्य विकास अधिकारी (CDO), पिथौरागढ़ नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने ग्रामीण विकास, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावी पहलें कीं। उनके निर्देशन में स्वयं सहायता समूहों को मज़बूत किया गया, ग्राम पंचायत स्तर पर महिला उद्यमिता को बढ़ावा मिला, और स्वच्छता एवं आजीविका योजनाओं को गति दी गई। उनके कार्यों की सराहना राज्य स्तर पर की गई।

पिथौरागढ़ में उल्लेखनीय कार्य के बाद अनुराधा पाल को सचिवालय में अतिरिक्त सचिव (स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग) के रूप में तैनात किया गया। बाद में उन्होंने ग्रामीण विकास विभाग में अतिरिक्त सचिव एवं आयुक्त (Commissioner, Rural Development) की जिम्मेदारी भी संभाली। यहां उन्होंने मनरेगा, ग्रामीण आजीविका मिशन और स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं को गति दी और डिजिटल निगरानी प्रणाली लागू कर पारदर्शिता बढ़ाई। आबकारी आयुक्त पदस्थ होने के पहले वे बागेश्वर की कलेक्टर और DM भी रही।

जून 2025 में अनुराधा पाल को उत्तराखंड की आबकारी आयुक्त (Excise Commissioner) नियुक्त किया गया। इस पद पर वे राज्य की पहली महिला है। उन्होंने विभाग में पारदर्शिता, राजस्व वृद्धि और अवैध शराब नियंत्रण को प्राथमिकता दी। उनके नेतृत्व में ऑनलाइन परमिट प्रणाली, ई-ट्रैकिंग और डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम को सशक्त बनाया गया, जिससे विभागीय कार्यकुशलता और जनसुविधा में उल्लेखनीय सुधार हुआ।
पूर्व आयुक्त हरीशचंद्र सेमवाल की सेवानिवृत्ति के बाद सरकार ने अनुराधा को विभाग की कमान सौंपी है। उनकी नियुक्ति रणनीतिक तौर पर मानी जा रही है, क्योंकि राज्य में कई जगहों पर शराब की दुकानों को लेकर महिलाओं का संघर्ष सामने आया है, जिसकी वजह से कई नए ठेकों के लाइसेंस भी रद्द करने पड़े।
माना जा रहा है कि आम महिलाओं से उनका संवाद सहज हो सकेगा। अनुराधा डीएम बागेश्वर रह चुकी हैं। उनके पास स्वास्थ्य विभाग समेत अन्य प्रशासनिक कार्यों का अनुभव है। आबकारी विभाग लाइसेंस नवीनीकरण में भी राजस्व लक्ष्य से पिछड़ चुका है। ऐसे में नई आबकारी नीति (2025-26) के तहत 5060 करोड़ का राजस्व लक्ष्य हासिल करना विभाग के सामने बड़ी चुनौती है।
*”कार्यशैली और दृष्टिकोण”*
अनुराधा पाल अपनी जनसमर्पित, दृढ़ और परिणाममुखी कार्यशैली के लिए जानी जाती हैं। वे हमेशा कहती हैं-
“कठिन परिस्थितियां हमारी राह नहीं रोकतीं, वे बस हमें मज़बूत बनाती हैं।”
उनकी नेतृत्व क्षमता और संवेदनशील दृष्टिकोण उन्हें राज्य की प्रेरक महिला प्रशासनिक अधिकारियों में अग्रणी बनाते हैं। वे युवाओं को यह संदेश देती हैं कि-
“सफलता के लिए निरंतरता और आत्मविश्वास सबसे बड़ी पूंजी है।”
अनुराधा पाल की कहानी सिर्फ एक अधिकारी की सफलता नहीं, बल्कि उस पीढ़ी की प्रेरणा है जो कठिनाइयों में भी सपने देखना नहीं छोड़ती।
एक दूध बेचने वाले पिता की बेटी ने यह साबित किया कि मंज़िल चाहे कितनी भी ऊंची क्यों न हो, यदि इरादे सच्चे हों तो रास्ता खुद बन जाता है।
उनकी यात्रा हर युवा के लिए यह संदेश देती है-
“हालात चाहे जैसे हों, अगर मेहनत सच्ची हो तो सपने ज़रूर सच होते हैं।”





