
Satire on Poetry: IAS अफसर ने भिंडी की यह गत क्यों बनाई?
मुकेश नेमा
मेरा लिखा पढ़ने के पहले ये कविता पढ़िए। ये कश्मीर से एक सीनियर आईएएस ने लिखी है।

दरअसल अफसर ने सोचा कि वो कविता लिख सकता है। इतना बड़ा अफ़सर जब कुछ सोच लें तो सारी कायनात उसे पूरा करने में जुट जाती है। ऐसे मे उसने कविता लिखी। वो कविता लिखी तो मेरे बहकावे में आकर अभी अभी पढ़ चुके।अब बताइए। भिंडी भिंडी है ,भात भात है ,दोनों का आपस मे कोई मेल नहीं। पर अफ़सर जब कविता करने पर उतारू होता है तो भिंडी को भात मे घुसेड़ देता है ,ऐसे मे भिंडी की भद्द तो पिटती ही है ,भात अलग मुँह छुपाये घूमता है।
सवाल ये भी है की कश्मीर के इस आईएएस अफ़सर ने भिंडी की ये गत बनाई क्यो ? मुमकिन है उसे बचपन से ही भिंडी पसंद ना हो।उसे उसके स्कूल मास्टर यह बताना भूल गये हो कि भिंडी ही वो तरकारी है जिसे लेडीज़ फ़िंगर जैसा नाम देखकर इज़्ज़त बख्शी गई है।या हो सकता है ये अफ़सर भिंडी खाने की लालसा के साथ बड़ा हुआ हो ,भिंडी कभी खाई ही हो ना उसने या उसकी अम्मा ने उसे भिंडी खाने का क़ायदा सिखाया ही ना हो कभी।यह भी हो सकता है वह खुद भात सा हो और किसी भिंडी सी कमनीय लड़की ने दिल तोड़ दिया हो उसका।वो भिंडी से बदला लेना चाहता हो इसलिये उसने उसे मारे ग़ुस्से के भात मे मिला दिया हो।कुछ गुणीजनों का मानना है कि ये अफ़सर कवि भ शब्द की आवृत्ति करने के मोह मे भिंडी भात पका बैठा है।सोचिये यदि वो चना बना रहे होते तो कविता कहाँ जाकर मुँह छुपाती।
यह भी पता करने जैसी बात है कि कश्मीर मे भिंडी पैदा होती भी है या नहीं ? भिंडी होती भी होगी तो हमारे मैदानी इलाक़ों जैसी हरी छरहरी तो नहीं ही होती होगी।रही बात भात की तो मेरा तो यही मानना है कि बहुत सारा पानी माँगने वाली इस फसल के बारे मे ऊँचाई पर बसे लोग सोचते भी नहीं होंगे।ऐसे मे यह पता जरूरी है कि ऐसी हरी भरी वादी मे सरकारी नौकरी कर रहे इस अफ़सर ने वहाँ के बर्फ से लदे पहाड़ो ,साफ़ सुथरी नदियों ,दिलकश मौसम और ख़ूबसूरत लड़कियों के बजाय भिंडी भात पर कविता क्यो लिखी होगी ?
मुझे तो यह सोच सोच कर अफ़सोस हो रहा है कि इस बेमेल ब्याह से कमसिन ,नाबालिग भिंडी पर क्या बीत रही होगी ? वो अधेड़ उम्र के शराबी भात के साथ कैसे जीवन बितायेंगी।क़श्मीर का यह आईएएस अफ़सर उस क़र्ज़ मे डूबे बाप जैसा लगता है मुझे जो अपनी सुंदर लड़की को किसी अमीर विधुर के हवाले कर तो देता है और फिर ताजिदगी पछताता है।

ये अफ़सर ,अफसर होने के बावजूद भोला है।नादान है। वो जानता नहीं कि वो क्या कर बैठा है ? भिंडी और भात का आपस मे ऐसा घालमेल ख़तरनाक है।मानवता के प्रति अपराध जैसा मामला है ये।भिंडी और भात आपस मे मिल जाना और फिर इन दोनो को किसी कविता मे डाल देने से जो चीज तैयार हो सकती है वो परमाणु बम से भी ज़्यादा तबाही मचा सकती है।कविता करना ख़ानसामा होने की तरह ही है वैसे।मसालों का सही अनुपात ,वाजिब आँच और उसका अपना जन्मजात कौशल ही खाने और कविता को हज़म करने जैसा बनाता है।पर इस कश्मीरी साहब का कविता करना कुछ ऐसा ही है जैसे किसी देहाती घसियारे को शाही हज्जाम का काम सौंप दिया गया हो।

भिंडी प्रणय गीत गाती किसी रूपसी कवियत्री सी ,भात गली गली उपलब्ध सस्ते शायर सा। भिंडी स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभप्रद सुंदर डॉक्टरनी सी जबकि भात बीमार बना देने वाले सरकारी अस्पताल जैसा। भात आसानी से हासिल रूपयो की तरह गिरा हुआ जबकि भिंडी डॉलर की तरह देवदुर्लभ। इनकी जोड़ी बनना नामुमकिन। ऐसे में कश्मीर के इस अफ़सर से इस गंभीर गलती बाबत स्पष्टीकरण माँगा जाना चाहिए।
मेरी तो सलाह यही है आप सभी को कि कश्मीर के इस अफ़सर की बातो मे ना आएं।भिंडी और भात जब भी खाने का मन हो ,दोनो अलग अलग ही खाएँ।यदि आप भिंडी भात खाने के लिये मरे ही जा रहे हों तो कम से कम कविता मे मिला कर तो हरगिज़ ना खाएँ।

मुकेश नेमा
व्यंग: जूतों में आपस मे जूते चले ,जूतों मे दाल बटने लगी,फिर क्या हुआ ?





