राजनीतिक मतभेदों और स्थानीय विरोध के बाद अंततः इंदौर मेट्रो के दूसरे चरण को मिली दिशा: खजराना से पलासिया होते हुए बड़ा गणपति तक अंडरग्राउंड रूट को मंजूरी

नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की अध्यक्षता में संपन्न बैठक में इंदौर शहर के विकास को लेकर हुए कई निर्णय 

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राजनीतिक मतभेदों और स्थानीय विरोध के बाद अंततः इंदौर मेट्रो के दूसरे चरण को मिली दिशा: खजराना से पलासिया होते हुए बड़ा गणपति तक अंडरग्राउंड रूट को मंजूरी

वरिष्ठ पत्रकार के. के. झा की विशेष रिपोर्ट

इंदौर। महीनों की अनिश्चितता, राजनीतिक मतभेदों और स्थानीय विरोध के बाद अंततः इंदौर मेट्रो के दूसरे चरण को लेकर निर्णय की स्थिति साफ हो गई है। मध्यप्रदेश शासन, जिला प्रशासन और मेट्रो रेल प्रबंधन के सामूहिक निर्णय के अनुसार अब खजराना से पलासिया होते हुए बड़ा गणपति तक मेट्रो को अंडरग्राउंड बनाया जाएगा। सोमवार को नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की अध्यक्षता में हुई उच्च स्तरीय बैठक में इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से मंजूरी दी गई। बैठक में नगर निगम इंदौर, इंदौर विकास प्राधिकरण, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।

मंत्री विजयवर्गीय ने कहा, “यह निर्णय इंदौर की आर्थिक प्रगति और ट्रैफिक प्रबंधन दोनों के लिए ऐतिहासिक साबित होगा। शहर की जरूरतों और नागरिकों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए ही इस रूट को अंडरग्राउंड बनाने का फैसला लिया गया है।”

*वर्तमान स्थिति: पहले चरण में प्रगति, दूसरे में पुनर्विचार* 

इंदौर मेट्रो का पहला चरण, यानी सुपर कॉरिडोर से एअरपोर्ट और आईटी पार्क तक का लगभग 6 किलोमीटर का भाग आंशिक रूप से परिचालन में आ चुका है। इस रूट पर मई 2024 से ट्रायल रन भी शुरू हो गया था। वहीं, दूसरे चरण का प्रस्तावित मार्ग — जो शहर के सबसे भीड़भाड़ वाले और पुराने इलाकों से होकर गुजरता है — महीनों से विवादों में घिरा था। अब इस रूट के खजराना–पलासिया–राजवाड़ा–बड़ा गणपति खंड को अंडरग्राउंड बनाने पर सहमति बनी है।

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परियोजना की कुल लंबाई 31.32 किलोमीटर तय की गई है, जिसकी अनुमानित लागत करीब ₹7,500.8 करोड़ आंकी गई है। एसियन डेवलपमेंट बैंक ने इसके लिए 190 मिलियन डॉलर (लगभग ₹1,668 करोड़) का ऋण स्वीकृत किया है।

*देरी के मुख्य कारण: राजनीति, असहमति और विरोध की जमीनी हकीकत* 

राजनीतिक असहमति और अभिरुचि का टकराव: मेट्रो के दूसरे चरण को लेकर लंबे समय तक जनप्रतिनिधियों और विभिन्न दलों के बीच एकराय नहीं बन सकी। मार्ग निर्धारण को लेकर अलग-अलग सुझावों के चलते निर्णय बार-बार टलता रहा। राजनीतिक असहमति के कारण बजट स्वीकृति और ठेका प्रक्रियाओं में भी देरी हुई।

पुराने शहर में विरोध और जनभावनाएं: मल्हारगंज, राजवाड़ा और छोटा गणपति जैसे पुराने बाजार क्षेत्रों में जब मेट्रो स्टेशन और सबस्टेशन के लिए भूमि अधिग्रहण का प्रस्ताव आया, तो स्थानीय निवासियों और व्यापारियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। छोटा गणपति क्षेत्र में लगभग 45 संपत्तियों के अधिग्रहण की योजना ने विरोध को और भड़का दिया। नागरिकों का कहना था कि इन इलाकों में अंडरग्राउंड निर्माण से ऐतिहासिक संरचनाओं और स्थानीय व्यवसायों पर असर पड़ेगा। परिणामस्वरूप परियोजना को बार-बार संशोधित करना पड़ा।

भूगर्भीय और तकनीकी जटिलताएं: पुराने शहर के संकरे रास्तों, घनी आबादी और ऐतिहासिक इमारतों के कारण अंडरग्राउंड निर्माण की योजना बनाना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण साबित हुआ। इसने भी इंजीनियरिंग अध्ययन और डिज़ाइन स्वीकृति में महीनों की देरी की।

 *वित्तीय असर: बढ़ता खर्च, घटती आय* 

इंदौर मेट्रो की अनुमानित लागत ₹7,500 करोड़ से अधिक पहुँच चुकी है। देरी और डिजाइन में बदलाव के कारण परियोजना की लागत में करीब 12–15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की संभावना जताई जा रही है। ADB से मिले अंतरराष्ट्रीय ऋण से अस्थायी राहत जरूर मिली है, परंतु स्थानीय राजस्व स्रोत और राज्य अंशदान पर दबाव बढ़ा है।

पहले चरण के परिचालन में भी वित्तीय चुनौती सामने आई है। मेट्रो के नि:शुल्क ट्रायल रन के दौरान जहाँ प्रतिदिन 25,000 यात्री यात्रा कर रहे थे, वहीं किराया लागू होते ही यह संख्या घटकर 500 से भी कम रह गई। यह स्थिति परिचालन लागत और आय के बीच संतुलन के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है।

क्या समय पर पूरी होगी परियोजना?

मध्य प्रदेश मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड (MPMRCL) ने वाणिज्यिक संचालन का लक्ष्य जनवरी 2026 तय किया है, परंतु विशेषज्ञों का मानना है कि अंडरग्राउंड खंड की नई योजना के चलते यह समयसीमा आगे बढ़ सकती है। पुराने शहर में निर्माण कार्य शुरू होने से पहले भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण अनुमति और डिज़ाइन मंजूरी जैसे कई औपचारिक चरण अभी बाकी हैं। फिलहाल मेट्रो के सुपर प्रायोरिटी कॉरिडोर पर काम जारी है, लेकिन दूसरे चरण की प्रगति को लेकर समय-सीमा पर सवाल बने हुए हैं।

*उम्मीदों और चुनौतियों के बीच दौड़ती इंदौर मेट्रो*

इंदौर मेट्रो शहर के विकास और आधुनिक परिवहन का प्रतीक मानी जा रही है। खजराना से बड़ा गणपति तक अंडरग्राउंड रूट का निर्णय नागरिकों की सुरक्षा और सुविधा दोनों दृष्टि से स्वागतयोग्य है, परंतु इसके साथ वित्तीय अनुशासन, समयसीमा पालन और सार्वजनिक समर्थन की सबसे बड़ी परीक्षा भी जुड़ी है।

इंदौर, जो पहले से ही स्वच्छता और सुशासन के मॉडल के रूप में देश में अग्रणी है, अब एक और पहचान जोड़ने की दिशा में बढ़ चला है — भारत के सबसे व्यवस्थित और तकनीक-सक्षम शहरी ट्रांजिट शहर के रूप में।