प्रसंगवश : आस्था के केंद्र ‘महाकाल मंदिर’ से हटाए जाएं कुत्ते, जो अंदर मंदिर परिसर में गंदगी भी करते हैं…

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प्रसंगवश : आस्था के केंद्र ‘महाकाल मंदिर’ से हटाए जाएं कुत्ते, जो अंदर मंदिर परिसर में गंदगी भी करते हैं…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों से हटाने और आश्रय स्थलों में ले जाने का निर्देश दिया है।सुप्रीम कोर्ट 28 जुलाई को एक मीडिया रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई कर रहा है, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में आवारा कुत्तों के काटने से विशेषकर बच्चों में रेबीज फैलने की बात कही गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षणिक केंद्रों और अस्पतालों जैसे संस्थागत क्षेत्रों में कुत्तों द्वारा काटे जाने के मामलों में ‘खतरनाक वृद्धि’ पर गौर करते हुए निर्देश दिया है कि ऐसे कुत्तों को निर्दिष्ट आश्रय स्थलों में भेजा जाना चाहिए। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की विशेष पीठ ने आवारा कुत्तों के मामले में कई निर्देश पारित किए हैं। विशेष पीठ ने प्राधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए कि राजमार्गों और एक्सप्रेसवे से मवेशियों और अन्य आवारा पशुओं को हटाना एवं उनका निर्दिष्ट आश्रय स्थलों में स्थानांतरण सुनिश्चित किया जाए।

पीठ ने प्राधिकारियों को सरकारी एवं निजी शैक्षणिक संस्थानों और अस्पतालों आदि के परिसरों में आवारा कुत्तों का प्रवेश रोकने का निर्देश दिया ताकि कुत्तों द्वारा काटे जाने की घटनाओं को रोका जा सके।

पीठ ने निर्देश दिया कि ऐसे संस्थानों से हटाए गए आवारा कुत्तों को वापस उन्हीं स्थानों पर नहीं छोड़ा जाए।

आवारा कुत्तों को लेकर या मवेशियों और अन्य आवारा पशुओं को लेकर यह कोई नई बात नहीं है। सरकारी बार-बार यह दावा करती हैं कि सड़कों को मवेशियों और आवारा पशुओं से मुक्त किया जा रहा है। आवारा कुत्तों को लेकर चिंता करना सरकारों की प्राथमिकता में है, लेकिन सरकारों के दावे समय-समय पर खोखले ही नजर आते हैं। सार्वजनिक स्थानों की बात को अगर हम छोड़ भी दें तो अस्पतालों, शैक्षणिक स्थलों और यहां तक कि आस्था के केंद्र धार्मिक स्थलों से तो कुत्तों को बाहर कर आश्रय स्थलों पर पहुंचाना ही चाहिए। हाल ही में जब मैं भी आस्था के महाकेंद्र, 12 ज्योतिर्लिंगों में तीसरे स्थान पर आने वाले और एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में भस्म आरती दर्शन करने पहुंचा तो यहां की स्थिति भी कुत्तों के मामले में बदतर ही नजर आई। भस्म आरती के समय भी पुलिस का रवैया श्रद्धालुओं को लेकर बहुत सख्त सुरक्षा के मद्देनजर ठीक कहा जा सकता है, लेकिन वास्तव में यह पुलिसकर्मी सुरक्षा के नाम पर श्रद्धालुओं के साथ अशिष्ट, अशोभनीय और असभ्य व्यवहार करते हैं। बड़ी-बड़ी सिफारिशें लगाकर श्रद्धालु भस्म आरती के समय नंदी हॉल में बैठकर भगवान महाकाल के दर्शन करने की व्यवस्था करते हैं। यहां भी जो पुलिस के माध्यम से आते हैं उन श्रद्धालुओं को सुरक्षा व्यवस्था में लगे पुलिसकर्मी अलग नजरिए से देखते हैं और बाकी सभी श्रद्धालु पुलिस के असंवेदनशील व्यवहार के शिकार होने को मजबूर रहते हैं। भस्म आरती के समय भी नंदी हाल में बैठने की व्यवस्था में पुलिस और प्रशासन का दोहरा व्यवहार साफ नजर आता है। पर मामला आस्था और श्रद्धा का है इसलिए कोई भी श्रद्धालु कुछ विरोध करने से भी बचता ही है। पुलिस अफसर या कोई भी वीआईपी, सामान्य व्यक्ति के रूप में जाकर इसका अनुभव खुद भी कर सकते हैं। पर हास्यास्पद बात यह है कि अंदर बैठे कुत्तों पर पुलिस, प्रशासन और आउटसोर्स कर्मचारी सभी जैसे विशेष मेहरबान रहते हैं। तो चाहे आउटसोर्स के कर्मचारी हो या पुलिस व्यवस्था में लगे लोग, महाकाल मंदिर में अंदर बैठे कुत्तों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता या कोई ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं करता। यहां तक कि, अपनी आदत के मुताबिक यह कुत्ते अंदर दीवारों पर पेशाब भी करते हैं और कारपेट भी गंदा करते हैं लेकिन मजबूर श्रद्धालु कई बार पैर गंदा होने पर उन्हें साफ करते नजर आते हैं या फिर लाइन में लगकर गंदगी के पास खड़े होने को मजबूर रहते हैं। दर्शन के बाद उज्जैन के कलेक्टर और एसपी को महाकाल मंदिर में हमारे अनुभवों को लेकर एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमने अवगत भी कराया था। हालांकि किसी तरह की कार्रवाई की उम्मीद ना ही मुझे थी और ना ही मुझे है। और अगर इस तरफ उनका ध्यान आकर्षित हो गया हो, तब बहुत आभार जताया जा सकता है।

चूंकि मध्य प्रदेश सरकार 2028 में महाकुंभ को लेकर विशेष तैयारी में जुटी है। और जब मुख्यमंत्री या कोई अन्य वीवीआईपी दर्शन करने पहुंचता है, तब पुलिस और प्रशासन के आला अफसर उन्हें विशेष व्यवस्था में ले जाकर दर्शन कराते हैं और ऐसी स्थितियां उनके सामने नहीं आ पातीं। चूंकि हमारा मध्यप्रदेश है, इसलिए हमारी चिंता बस इतनी है कि पुलिस के अशिष्ट बर्ताव और मंदिर में कुत्तों की मौजूदगी और गंदगी की छवि मन में बसाकर श्रद्धालु प्रदेश से बाहर न जाएं। खास तौर पर महाकाल जैसे विशेष आस्था के केंद्र को कम से कम कुत्तों से मुक्त कर मंदिर और श्रद्धालुओं को गंदगी से तो बचाया ही जाना चाहिए और अन्य व्यवस्थाएं भी चाक चौबंद होना ही चाहिए…।

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।