अपने घर गाँव से पलायन के मुद्दे को अभिशाप मानें या वरदान 

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अपने घर गाँव से पलायन के मुद्दे को अभिशाप मानें या वरदान 

आलोक मेहता 

बिहार विधान सभा चुनाव में रोजगार और बिहारियों के पलायन का मुद्दा महत्वपूर्ण बन गया | निश्चित रुप से यह किसी भी राज्य या देश के लिए जनता और सत्ता से जुड़ा मुद्दा है | अपेक्षा होती है कि सरकारें इस समस्या का समाधान करे | लेकिन क्या पलायन केवल मज़बूरी में होता है ? घर गाँव , शहर , प्रदेश , देश से बाहर जाने के लिए हर व्यक्ति और परिवार की आवश्यकता , महत्वाकांक्षा , सपनों पर निर्भर होती है | फिर यह कैसे भुलाया जा सकता है कि बाहर जाकर नौकरी , मजदूरी , शिक्षा , अपना काम धंधा , तरक्की , सुख सुविधा के साथ अपने परिजनों को भेजी जाने वाली धनराशि से न केवल परिवार बल्कि उस क्षेत्र राज्य के सामाजिक आर्थिक बदलाव का कितना लाभ मिलता है |

यह सवाल केवल राजनीति और चुनाव के लिए नहीं है | बिहार में बंद उद्योग चालू हों , बाहरी निवेश आए , अपराध नियंत्रित हो | भ्रष्टाचार को रोकने के कदम उठाए जाएं | इससे कोई असहमत नहीं हो सकता हैं | लेकिन जो लोग अपने जीवन में सुधार के लिए बाहर जाते हैं , उन्हें कमजोर और मजबूर कहना कैसा न्याय है ? वे नए स्थानों पर विकास में बड़ी भूमिका निभाते हैं | बिहार या जिस क्षेत्र के हों , उनका गौरव बढ़ाते हैं | भारत के डॉक्टर ,इंजीनियर , वैज्ञानिक ही नहीं बैंकर्स , प्रबंधक , व्यापारी , औद्योगिक समूह दूरगामी लाभ भारत को देते हैं |

बिहार में माइग्रेशन यानी बाहर जाकर काम करने या बसने वालों का एक लंबी-चलने वाली परम्परा रही है। यह प्रवासन सिर्फ देश के अंदर नहीं, बल्कि विदेशों तक फैला है।यदि बाहर से आने वाली कुल धनराशि करीब 9,88,000 करोड़ रूपये है और बिहार का हिस्सा 14.8 हजार करोड़ रूपये बनता है |ग्रामीण बिहार में अधिकांश परिवार आज भी कृषि या सीमित स्वरूप की असंगठित मजदूरी पर निर्भर हैं। खेती का आकार बहुत छोटा-मोटा है और औद्योगिक अवसर काफी कम रहे हैं। इससे युवाओं को बाहर जाकर काम की तलाश करनी पड़ी है। एक अध्ययन में पाया गया कि प्रवासी परिवारों में लगभग 80 % लोग भूमिहीन या 1 एकड़ से कम जमीन वाले थे।अध्ययन से यह भी पता चला कि 85 % प्रवासी कम-से-कम 10वीं पास थे — यह संकेत है कि युवा-शिक्षित लोगों ने भी बाहर जाकर अस्थायी या स्थाई रोजगार की ओर रुख किया। काम के लिए वे पंजाब, महाराष्ट्र, दिल्ली, खाड़ी देशों तक जाते हैं , जहाँ निर्माण, सेवा-उद्योग, कारखाने इत्यादि में काम मिलता था।एक अध्ययन के अनुसार लगभग 50 % से अधिक बिहार-ग्रामीण परिवारों में कम-से-कम एक सदस्य प्रवासी हैं। बिहार से बाहर जाकर काम कर रहे प्रवासी-कर्मी/पेशेवरों द्वारा भेजी गई रकम ने राज्य-अर्थव्यवस्था और घरेलू-घरेलू जीवन दोनों पर असर डाला है।परिवारों ने इन रकमों का उपयोग मुख्यतः दैनिक खर्च (खाना-पीना, बिजली-पानी), शिक्षा-स्वास्थ्य में किया है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि रेमिटेंस प्राप्त परिवारों में शिक्षा-उपस्थिति, पोषण-स्थिति और स्वास्थ्य-खर्च में सुधार देखने को मिला है। सर्वे में बताया गया कि प्रवासी (माइग्रेंट) के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति, बच्चों की शिक्षा तथा सामाजिक स्थिति सुधरी है |ग्रामीण श्रम-बाज़ार में भी बदलाव आए हैं — प्रवासी मजदूरों के बाहर जाने से स्थानीय मजदूरी थोड़ी-बहुत बढ़ी, काम करने वालों की समस्या-स्थिति बदली। सामाजिक संरचना और जीवनशैली में कई तरह के बदलाव देखने को मिले हैं। -जैसे रेमिटेंस आय मिली, बच्चों की स्कूल शिक्षा का खर्च उठाना आसान हुआ। शिक्षा-उपस्थिति में सुधार हुआ। रिपोर्ट में यह पाया गया कि रेमिटेंस-वाले परिवारों में बच्चों की शिक्षा-उपस्थिति बेहतर है। स्वास्थ्य-सेवाओं तक पहुँच बेहतर हुई; परिवारों ने अस्पताल-दवा के खर्च को वहन करने की क्षमता पाई।रेमिटेंस की मदद से गांवों में कच्चे मकानों से पक्का घर बनने लगे हैं। जैसे गोपालगंज और सीवान में यह प्रवृत्ति स्पष्ट है 80 % से अधिक स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रवासी रेमिटेंस पर आधारित है । परिवारों की सामाजिक स्थिति और आत्म-विश्वास बढ़ा। गृहिणियो को नए अवसर मिले | रिपोर्ट में यह भी है कि “महिलाओं ने महसूस किया कि आर्थिक स्तर, जीवनशैली, बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य में सुधार हुआ”। उपभोग-शैली में परिवर्तन हुआ — जैसे मोबाइल-फोन, बैंक-खाता, परिवार के सदस्य से दूर-दराज काम कर रहे हों तो मोबाइल से संवाद, बैंकिंग का उपयोग बढ़ा। उदाहरण: 80 % महिलाओं ने बैंक खाता बना लिया था। प्रवासी होने के कारण परिवार में “न्यूक्लियर” (एक-घर) संरचना बढ़ी। अध्ययन में पाया गया कि गाँवों में रहने वाली महिलाएँ पिछले पारम्परिक संयुक्त-परिवार से अलग न्यूक्लियर परिवार में रहने लगी थीं।महिला-सशक्तिकरण के संकेत मिले — जहाँ पति बाहर थे, वहाँ महिलाएँ आर्थिक/सामाजिक फैसलों में सक्रिय हुईं। कुछ प्रवासी बाहर से अनुभव लेकर लौटे और अपने गांवों-शहरों में नए काम पर उनको नियुक्त किया गया। भारत में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के प्रवासन का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव गहरा है। प्रवासी मजदूर, पेशेवर और व्यापारी न सिर्फ परिवारों का सहारा बनते हैं बल्कि उनकी भेजी गई धनराशि भी संबंधित राज्यों की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालती है।

रिज़र्व बैंक कि एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2023–24 में कुल 9,88,000 करोड़ रूपये की धनराशि विदेशों से आई |बिहार सरकार ने कहा है कि लगभग 57 लाख लोग राज्य के बाहर रह रहे/काम कर रहे हैं, जिनमें से लगभग 52 लाख रोजगार-वश पलायन वाले बताए गए हैं यह संख्या घरेलू और कुछ अंतर्राष्ट्रीय दोनों प्रकार के प्रवास को मिलाकर बताई जाती है |

अन्य प्रदेशों के नमूने लिजिएं तो केरल का दीर्घकालीन रिकॉर्ड बताता है कि विदेशों में (विशेषकर खाड़ी देशों व एडवांस इकनॉमी) केरल के बहुत बड़े प्रवासी समुदाय हैं।।केरल को अनुमानित रेमिटेंस 1.95 लाख करोड़ रुपए सालाना है |तमिलनाडु में घरेलू-अंतरराष्ट्रीय दोनों प्रकार के प्रवासी हैं; दक्षिण भारत के अन्य राज्यों की तरह तमिलों का भी बाहरी देशों में बड़ा प्रतिनिधित्व है — खासकर ब्रिटैन , सिंगापुर, मलेशिया, अमेरिका व खाड़ी देशों में हैं | तमिलनाडु को अनुमानित रेमिटेंस 1,02,752 रूपये करोड़ सालाना। मुंबई/महाराष्ट्र में भारी आंतरिक-माइग्रेशन (देशभर से) के साथ-साथ विदेशी-रहने वाले पेशेवरों की भी बड़ी संख्या है | महाराष्ट्र को अनुमानित रेमिटेंस ₹2,02,540 करोड़ सालाना। गुजरात को अनुमानित रेमिटेंस ₹34,580 करोड़ रूपये है ।

इस पृष्ठभूमि में पलायन को केवल अभिशाप कहना अनुचित लगता है | सामान्य रिक्शे वाला या टैक्सी चालक भी अपने घर परिवार को कुछ सहयोग देता है | देर सबेर उन्हें अपने पास बुलाता है , अच्छी शिक्षा और सुविधाएं भी देता है | यही नहीं अच्छी स्थिति के बाद वापस अपने गाँव शहर भी जाता है | बिहार में अब 22 मेडिकल कॉलेज और आधुनिक अस्पताल हो गए | सड़कें सुधरी | रेल हवाई यात्रा सुगम होने लगी तो क्या इसे आर्थिक प्रगति नहीं कहेंगे | पटना , मुजफ्फरपुर , भागलपुर , गया में सुन्दर बड़े घर बिल्डिंग , कारें दिखने लगी , वह किसकी देन है ? सरकार के साथ वहीँ के लोगों की है |