
रविवारीय गपशप: संविदा कर्मचारियों की भर्ती: 48 घंटे में ऐसे घोषित हुए परीक्षा परिणाम
सरकारी संस्थानों में लिपिक वर्गीय संवर्ग के कर्मचारियों का अभाव है , कारण कई बरसों से बाबू और भृत्य के पदों पर नियुक्तियां नहीं हुई हैं । दफ्तरों में कम्प्यूटर तो आ गए पर मानव श्रम से होने वाले कामों में ज़्यादा कमी नहीं आई । कम्प्यूटर आने के बाद लगने लगा था कि शायद अब लिपिक वर्गीय कर्मचारियों की उतनी जरूरत न होगी क्योंकि बहुतेरे काम ऑनलाइन होने लगेंगे पर हम बढ़ती आबादी के लिहाज से कर्मचारियों का आनुपातिक अमला तय करना भूल गए सो नतीजा ये हुआ कि लोग रिटायर तो हुए पर नए लोग भर्ती नहीं हो पाए ।
राजगढ़ जिले में जब मैं कलेक्टर था तो वहाँ भी कर्मचारियों की कमी ही थी , तभी राज्य शासन के राजस्व विभाग ने एक अवसर दिया । दरअसल शासन ने लोकसेवा प्रबंधन के अंतर्गत जिले की विभिन्न तहसीलों और अनुविभागों में कंप्यूटर आपरेटर सह कार्यालय सहायक के कुछ पद संविदा आधार पर भर्ती के लिए हर जिले को दिए थे और इसकी भर्ती जिले स्तर पर ही की जानी थी । तहसीलों में स्टाफ की कमी हमेशा रहती थी और ये बड़ा मददगार आदेश था पर वही बात थी कि इसे कैसे साफ सुथरे ढंग से संपन्न किया जाये ? स्थानीय स्तर पर नौकरी में ऐसे संवर्ग की भर्ती करना एक बड़ा पेचीदा काम माना जाता था । स्थानीय और बाहरी तमाम सिफारिशों से जूझना , उम्मीदवारों के विश्वास और शंकाओं का ध्यान रखना और बिना भेदभाव , लोभ-लालच के सही लोगों को भर्ती करना ये कुल मिला कर ये काम बड़ा चुनौती पूर्ण था ।
मैंने इस भर्ती के लिए एक टीम बनाई जिसमे श्री रामप्रकाश मुख्यालय एसडीएम , परिवीक्षाधीन डिप्टी कलेक्टर श्रीमती अंजलि , लोक सेवा प्रबंधक अभिनव और ई गवर्नेंस के प्रबंधक निजामुद्दीन सम्मिलित थे । कुल 13 पदों की भर्ती की कार्यवाही की जानी थी , तो शुरुवात ऐसे की कि विज्ञापन में आये आवेदनों में जो कमियां थी उसके आधार पर उन्हें रिजेक्ट न कर के वेबसाइट में अपलोड कर ऐसे आवेदकों को सूचित किया की वे आकर कमी पूरी कर दें । इससे छोटी मोटी गलती से फॉर्म निरस्त होने से बच गए । लगभग बीस आवेदक ऐसी सूचना पाकर आये और उनके फॉर्म दुरुस्त किये गए । फिर एक के विरुद्ध दस के अनुपात में मेरिट निकल कर उनकी सूचि भी वेबसाइट पर डाल दी कि देखो ये कट ऑफ लिस्ट है , किसी को कुछ आपत्ति हो तो बताओ ? कुछ लोग इसमें भी आये और उन्हें सुन कर उनके संशयों को निराकृत किया पर अब असली परीक्षा की घड़ी थी । मुख्य परीक्षा के तीन भाग थे , पहला लिखित परीक्षा फिर कंप्यूटर योग्यता परीक्षण और फिर साक्षात्कार , तो किया ये कि सबसे पहले तो लिखित परीक्षा के लिए बनाये गए गोपनीय पर्चे को सुबह ही खोल कर प्रिंट आउट लिये गए और फिर परीक्षा देने आए आवेदकों को वितरित किया गया । परीक्षा वस्तुनिष्ठ किस्म की थी जिसमें एक प्रश्न के चार उत्तरों में से एक सही विकल्प का चयन करना था । परीक्षा संपन्न होने के बाद आवेदकों को उसी कक्षा में रुकने को कहा गया । थोड़ी ही देर में परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कक्षा में लगे ब्लैक बोर्ड पर लिख दिए गए । हर कक्ष में परीक्षार्थियों के सामने ही टीचर की डेस्क पे दो दो परीक्षक बैठा कर कापियां जांचने का काम शुरू किया , दो इसलिए की एक जांचे और दूसरा परखे कि कंही गलत नंबर न दे दिए जायें । कापी जांचने के बाद जब सभी संतुष्टि पा ली गई तो बैठे परीक्षार्थियों को बताया गया कि उनके कितने नंबर आये हैं । जिन परीक्षार्थियों को कुछ पूछना था या अपनी कापी देखने थी उन्हें उनकी उत्तर पुस्तिका भी दिखा दी । इसके बाद कम्प्यूटर योग्यता की परीक्षा कंप्यूटर लेब में ली और ऐसी ही प्रक्रिया से पुनः सबके समक्ष ही उसे भी जांचा और शाम होते होते उसी दिन में इसके परिणाम परीक्षा स्थल और कलेक्ट्रेट में चस्पा करने के साथ साथ जिले की वेबसाइट पर भी दे दिए । दुसरे ही दिन दस बजे से साक्षात्कार शुरू हो गया और दिन भर साक्षात्कार के बाद इसके परिणाम यानि चयनित उम्मीदवारों की सूचि शाम को घोषित कर उसकी सूची भी पुनः चस्पा कर दी गई और साथ ही जिले की वेबसाइट पे डाल दी । इस तरह 48 घंटे के अन्दर परीक्षा आयोजित कर परिणाम भी घोषित कर दिए , मज़े की बात ये थी की जिनका चयन हुआ वे तो खुश थे ही जिनका नहीं हुआ वे भी कह रहे थे की इतनी पारदर्शिता से परीक्षा उन्होंने कभी देखी नही और बढ़िया चयन हुआ है |





