
Forest Department U-turn: आलीराजपुर से उठी आवाज का असर- वन विभाग ने लिया यू-टर्न
– राजेश जयंत
BHOPAL: नर्मदा किनारे से अतिक्रमण हटाने के आदेश के खिलाफ उठे आदिवासी समुदाय के जबरदस्त विरोध ने आखिरकार असर दिखा दिया। आलीराजपुर से शुरू हुआ यह आंदोलन अब प्रदेश मुख्यालय तक पहुंच गया, जिसके बाद Madhya Pradesh Forest Department ने अपना रुख बदलते हुए बड़ा निर्णय लिया है। अब जिन आदिवासी परिवारों के वन अधिकार पत्र के आवेदन लंबित हैं, उन्हें जंगल से बेदखल नहीं किया जाएगा।
दरअसल, कुछ सप्ताह पहले वन विभाग की ओर से नर्मदा नदी के किनारों से पांच किलोमीटर दायरे में अतिक्रमण हटाने का आदेश जारी हुआ था। इससे आदिवासी समाज में गहरा असंतोष फैल गया। नर्मदा किनारे बसे दर्जनों गांवों में पंचायतें और चौपालें लगीं, लोग सड़कों पर उतरने को तैयार थे। आलीराजपुर के सोंडवा क्षेत्र में तो 15 नवंबर को बिरसा मुंडा जयंती यानी जनजातीय गौरव दिवस पर विशाल आंदोलन की घोषणा भी कर दी गई थी – और उसी दिन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का भी जिला प्रवास प्रस्तावित है।
*आंदोलन से डरी सरकार, मुख्यालय ने बदली रणनीति*
जैसे-जैसे विरोध की लहर सोंडवा से पूरे नर्मदा अंचल में फैलने लगी, भोपाल तक हलचल मच गई। वन मुख्यालय ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तत्काल समीक्षा की और एक नया आदेश जारी किया। इस आदेश पर प्रधान मुख्य वन संरक्षक बिभाष कुमार ठाकुर के हस्ताक्षर हैं। इसमें साफ कहा गया है कि जिन परिवारों के वन अधिकार संबंधी आवेदन विचाराधीन हैं, उन्हें किसी भी स्थिति में बेदखल नहीं किया जाएगा। यानी अब तक जारी किए गए 18 अगस्त, 9 सितंबर और 19 सितंबर के पुराने आदेश, जिनमें सीधी कार्रवाई का उल्लेख था, प्रभावहीन माने जाएंगे। अधिकारियों को चेताया गया है कि वे किसी भी लंबित आवेदनकर्ता पर कार्यवाही न करें।

*सोंडवा बना आंदोलन की चेतावनी का केंद्र*
ALIRAJPUR जिले में आदिवासी समुदाय की इस मुहिम ने प्रशासन और सरकार दोनों के लिए चुनौती खड़ी कर दी थी। आदिवासी विकास परिषद के प्रदेश उपाध्यक्ष Mahesh Patel ने इसे “अस्तित्व और अधिकार की लड़ाई” बताते हुए सोंडवा में जनसभा का आह्वान किया था। इस आंदोलन को प्रमुख जनजाति संगठन जयस प्रमुख डॉ. हीरालाल अलावा का भी समर्थन मिल गया, जिससे सरकार के लिए स्थिति और संवेदनशील हो गई। सूत्रों के अनुसार, CM डॉ. मोहन यादव के प्रस्तावित दौरे से पहले ही भोपाल मुख्यालय में लगातार समीक्षा बैठकों का दौर चला। वरिष्ठ अधिकारियों को साफ निर्देश दिए गए कि आंदोलन को शांतिपूर्ण ढंग से खत्म कराया जाए और “बेदखली” जैसे शब्दों से दूरी बनाई जाए।

*अब “बेदखली नहीं, संवाद” पर जोर*
Forest Department ने अपने नवीन आदेश में कहा है कि विभाग की प्राथमिकता अब नर्मदा किनारे पौधरोपण, भूमि संरक्षण और समुदाय आधारित वन प्रबंधन पर होगी। इसके साथ ही DFO स्तर पर जांच की जा रही है कि किन क्षेत्रों में वास्तविक अतिक्रमण है और कहां लोग वर्षों से रह रहे हैं तथा जिनके अधिकार दावे प्रक्रिया में हैं। आलीराजपुर, डिंडौरी, मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर और खंडवा जैसे जिलों के डीएफओ को स्पष्ट निर्देश मिले हैं कि कोई भी कार्यवाही बिना आवेदन निराकरण के नहीं की जाए।
*यू-टर्न से शांत हुआ विवाद, पर सतर्क है प्रशासन*
वन विभाग का यह फैसला आदिवासी समुदाय के लिए बड़ी राहत है। आंदोलन की चेतावनी और मुख्यमंत्री के आगामी दौरे से पहले विभाग का “यू-टर्न” सरकार के लिए राजनीतिक और सामाजिक रूप से समझदारी भरा कदम माना जा रहा है। हालांकि, स्थानीय संगठनों का कहना है कि वे इस आदेश का स्वागत करते हैं, लेकिन तब तक आश्वस्त नहीं होंगे जब तक इसे जमीनी स्तर पर लागू होते नहीं देख लेते। आंदोलन को वापस नहीं दिया गया है इसलिए प्रशासन भी alert है
आलीराजपुर से उठी यह आवाज अब पूरे प्रदेश की नीतियों को प्रभावित करने वाली बन गई है। सरकार ने आखिरकार यह मान लिया है कि “अतिक्रमण हटाने” की प्रक्रिया में अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। अब देखना यह होगा कि 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस पर मुख्यमंत्री की मौजूदगी में यह संवाद कितना भरोसेमंद साबित होता है और क्या यह फैसला आदिवासी विश्वास को फिर से बहाल कर पाता है।




