आदिवासी अस्मिता का स्वर: ‘आदिवासी अधिकार यात्रा’ बनी जनाक्रोश की आवाज, नर्मदा किनारे के आदेश पर गरजी कांग्रेस

293

आदिवासी अस्मिता का स्वर: ‘आदिवासी अधिकार यात्रा’ बनी जनाक्रोश की आवाज, नर्मदा किनारे के आदेश पर गरजी कांग्रेस

®️ajesh jayant

Alirajpur: मध्यप्रदेश के जनजातीय अंचल में आदिवासी अस्मिता और अधिकारों की नई गूंज जोबट के ग्राम डाबरी से उठी है। बुधवार को संपन्न कांग्रेस की “आदिवासी अधिकार यात्रा” अब पूरे नर्मदा अंचल में राजनीतिक हलचल का केंद्र बन चुकी है। वन विभाग के हालिया आदेश से भड़के जनाक्रोश के बीच यह यात्रा सियासी मंच नहीं, बल्कि जनजातीय चेतना का प्रतीक बन गई है, जहां जल, जंगल और जमीन के अधिकार की पुकार एकजुट होकर उठी।

IMG 20251113 WA0060

▪️पटवारी, सिंघार और भूरिया के निशाने पर सरकार

डाबरी में आयोजित विशाल सभा में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया, वरिष्ठ नेता महेश पटेल और अनेक विधायक शामिल हुए। सभा में वक्ताओं ने वन विभाग के अतिक्रमण हटाने संबंधी आदेश को “जनविरोधी” और “संविधान की भावना के विपरीत” बताते हुए सरकार पर तीखा प्रहार किया।

▫️उमंग सिंघार ने कहा- “आदिवासी अपनी जमीन नहीं छोड़ेगा। हमारी धरती, जंगल और नदियां सिर्फ हमारे अस्तित्व की नहीं, हमारी आत्मा की पहचान हैं। यदि सरकार ने यह आदेश वापस नहीं लिया, तो कांग्रेस सड़कों पर उतरकर आदिवासी समाज के साथ संघर्ष करेगी।”

▫️कांतिलाल भूरिया ने कहा- “यह केवल जमीन का नहीं, संविधान और स्वाभिमान का मुद्दा है। सरकार को तुरंत आदेश रद्द कर ग्राम सभाओं से अनुमति लिए बिना कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।”

▫️जीतू पटवारी ने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा- “आदिवासी इलाकों में ‘विकास’ के नाम पर विस्थापन की साजिश चल रही है। कांग्रेस हर पंचायत, हर गांव में यह आवाज बुलंद करेगी।”

▪️वन विभाग का आदेश बना आंदोलन की चिंगारी

दरअसल, अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में वन विभाग ने नर्मदा किनारे के गांवों में अतिक्रमण जांच और हटाने का आदेश जारी किया था।

पत्र क्रमांक FOR/0667/2025/10-3 (भोपाल) और तकनीकी/25/5505 (इंदौर) के हवाले से जारी इस आदेश ने आदिवासी इलाकों में असंतोष भड़का दिया। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह उनकी पुश्तैनी जमीनों पर कब्जे की तैयारी है। विभाग ने बाद में “यू-टर्न” लेते हुए सफाई दी कि “किसी को उजाड़ने की योजना नहीं”, मगर भरोसा टूट चुका था।

▫️महेश पटेल ने इसे “अस्मिता और अस्तित्व की लड़ाई” बताते हुए ऐलान किया कि 15 नवंबर भगवान बिरसा मुंडा जयंती पर सोंडवा में आदिवासी समाज विशाल आंदोलन करेगा।

गांव-गांव चौपालें हो रही हैं, महिलाएं और युवा आंदोलन की तैयारी में हैं। लोगों को आशंका है कि नर्मदा किनारे की उपजाऊ भूमि खनिज कंपनियों और निजी परियोजनाओं के हवाले की जा सकती है।

IMG 20251113 WA0063

▪️विपक्ष को मिला जनभावना का मुद्दा

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस आदेश ने विपक्ष को बैठे-बिठाए जनजातीय तबके के बीच पैठ बनाने का अवसर दे दिया है।

कांग्रेस अब इस पूरे मुद्दे को “आदिवासी अस्मिता बनाम सत्ता की संवेदनहीनता” के रूप में पेश कर रही है, जबकि भाजपा इसे “भ्रम फैलाने की राजनीति” बता रही है। मनावर विधायक और जयस (JAYS) संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा ने भी आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा कि “यह सिर्फ सोंडवा नहीं, पूरे नर्मदा अंचल की आवाज है।”

▪️15 नवंबर की सभा पर टिकी निगाहें

जनजातीय गौरव दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रस्तावित अलीराजपुर दौरे ने प्रशासन को सतर्क कर दिया है। अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी कीमत पर माहौल न बिगड़े।

लेकिन सोंडवा में 15 नवंबर को होने वाली प्रस्तावित रैली अब जनभावना बनाम सरकारी नीति की टकराहट का केंद्र बनने जा रही है। वन विभाग के एक आदेश से शुरू हुआ विवाद अब आदिवासी अस्मिता, शासन की संवेदनशीलता और राजनीतिक रणनीति तीनों की कसौटी बन गया है। सोंडवा-जोबट से उठी यह आवाज अब केवल नर्मदा किनारे की नहीं, बल्कि पूरे मध्यप्रदेश के जनजातीय समाज की पहचान और हक की पुकार बन चुकी है।