
RJD में परिवार-कलह भड़क उठा: रोहिणी आचार्य ने राजनीति और यादव वंश से बनाई दूरी
Patna-Bihar: RJD और लालू यादव के परिवार में हाल-फिलहाल बड़ी उथल-पुथल मची हुई है। बिहार के चुनाव में पार्टी की हार के तुरंत बाद उनकी बेटी रोहिणी आचार्य ने सोशल मीडिया पर ऐलान कर दिया है कि वे राजनीति छोड़ रही हैं और अपने परिवार से नाता तोड़ रही हैं। उनके इस कदम ने सिर्फ पार्टी को हिला नहीं दिया, बल्कि महागठबंधन में भी गहरे अंदरूनी मतभेदों की झलक दी है।
▫️रोहिणी की घोषणा एक दिन बाद आई, जब RJD की बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ी हार सामने आई और पार्टी महागठबंधन में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर सकी। उन्होंने अपने X (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर लिखा, “मैं राजनीति छोड़ रही हूं और अपने परिवार को ‘डिसऑन’ कर रही हूं। यह वही फैसला है जिसे राज्यसभा सांसद संजय यादव और उनके पति रमीज़ आलम ने मुझसे कहने को कहा था, और मैं सारी ज़िम्मेदारी ले रही हूं।”
▫️इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है। रोहिणी आरोप लगाती हैं कि संजय यादव, जो तेजस्वी यादव के भरोसेमंद सलाहकार माने जाते हैं, उनमें बहुत बड़ा असर रखते हैं। इसके चलते उन्होंने अपने रिश्तों और अपने आत्म-सम्मान को सवालों के दायरे में पाया। उनकी इस प्रतिक्रिया को केवल व्यक्तिगत संघर्ष के रूप में नहीं देखा जा सकता – यह RJD के नेतृत्व और उत्तराधिकारी रणनीति पर उठाया गया एक बड़ा बयान भी माना जा रहा है।
▫️परिवार के अंदर पहले से तनाव के संकेत मिल रहे थे। रोहिणी पहले भी सोशल मीडिया पर चुपचाप दूरी बना रही थीं। उन्होंने कुछ नाम और पहचान unfollow करना शुरू किया था, जिससे साफ था कि पक्षपात और विभाजन की हवा भीतर शुरू हो चुकी थी। विशेष रूप से, पार्टी में तेज प्रताप यादव की विद्रोह भरी गतिविधियां और उनके अलग रुख ने पहले ही पारिवारिक अस्थिरता की झलक दी थी।
▫️रोहिणी की पृष्ठभूमि भी कम विवादित नहीं है। वह
डॉक्टर हैं और उन्होंने पिछली लोकसभा चुनाव में सारण से चुनाव लड़ कर उतनी सफलता नहीं पाई थी। उनकी छवि पारंपरिक RJD समर्थकों के बीच “समर्पित बेटी” की रही है- खासकर उस घटना के बाद जब उन्होंने अपने पिता को किडनी दान की थी। लेकिन उनका हाल-फिलहाल का कदम बताता है कि उनकी राजनीति सिर्फ़ नाम और विरासत तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसमें गहरी भावनात्मक और नैतिक जद्दोजहद थी।

▫️उनकी पोस्ट में दिए गए शब्दों से यह स्पष्ट है कि वे केवल अपमान या हार का शिकार नहीं बनना चाहती थीं, बल्कि उन्होंने जानबूझकर परिवार के भीतर उन ताकतों को सामने लाया है, जो उनकी राय में RJD के राजनीतिक और पारिवारिक मूल्यों को मोड़ रही थीं। उनका कहना है कि उन्हें दबाव में यह आज़ादी चुनी गयी ‘डिसऑनिंग’ की यह कार्रवाई किसी ताना-तनी या भावुक बिगड़ते रिश्ते से कहीं अधिक जटिल सियासी और व्यक्तिगत रणनीति का हिस्सा हो सकती है।
▫️राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रोहिणी का यह कदम महज एक विदाई नहीं, बल्कि RJD के भीतर शक्ति समीकरण और उत्तराधिकार नीति पर एक स्पष्ट विद्रोह संकेत है। संजय यादव जैसे नेताओं की बढ़ती भूमिका, तेजस्वी- परिवारी खेमे की पकड़, और लालू परिवार के भीतर एकता का टूटना- ये सभी मसले अब खुलकर सामने आए हैं।

▫️यदि इस कलह की आग और बढ़ी, तो यह न केवल RJD की छवि और भविष्य पर असर डालेगा, बल्कि बिहार की राजनीति के समीकरणों को भी सख़्त झटके दे सकता है। रोहिणी आचार्य की यह प्रतिक्रिया उन सियासी कहानियों में सबसे व्यक्तिगत लेकिन सबसे निर्णायक घड़ी बनकर उभर सकती है, जिनमें सत्ता, विरासत और आत्म-सम्मान एक साथ टकराते हैं।




