
अमित शाह: भारतीय राजनीति का ‘चाणक्य’ क्यों कहा जाता है? कैसे एक लाइन ने बिहार चुनाव की हवा बदल दी!
कीर्ति कापसे की विशेष रिपोर्ट
भारतीय राजनीति में रणनीति, समय और नैरेटिव ये तीन तत्व चुनावों का पूरा चरित्र बदल सकते हैं। भाजपा के शीर्ष नेता और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को अक्सर “भारतीय राजनीति का चाणक्य” कहा जाता है, और बिहार चुनाव के शुरुआती दौर में कही गई उनकी एक साधारण-सी लाइन ने इस उपाधि को फिर साबित कर दिया।
*वो लाइन क्या थी?*
“हमारा मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं है। मुख्यमंत्री का फैसला विधायक दल करेगा।”
राजनीति जानने वाला कोई भी व्यक्ति समझ सकता है कि एक वाक्य कभी-कभी पूरे चुनाव का एजेंडा बदल देता है। ठीक यही हुआ।
जब चुनावी मैदान में विपक्ष नीतीश कुमार को घेरने की रणनीति बना चुका था, अमित शाह ने उस रणनीति की दिशा ही बदल दी। विपक्ष जो अब तक नीतीश के “जंगलराज की याद”, “थकान”, “अवसरवाद” जैसे मुद्दों पर हमला कर रहा था, वही अचानक उन्हें “सम्माननीय”, “अनुभवी”, “स्थिर नेतृत्व” बताने लगा।
यह परिवर्तन किसी सामान्य घटना का परिणाम नहीं था; यह नैरेटिव शिफ्ट था और यह अमित शाह की पहचान है।
*कैसे एक लाइन ने चुनाव की हवा बदल दी*
जैसे ही भाजपा ने कहा कि उसका कोई सीएम चेहरा नहीं है, चुनाव अचानक “तेजस्वी बनाम नीतीश” नहीं रहा। अब यह हो गया:
“क्या नीतीश को हटाना सही होगा? क्या स्थिरता जरूरी है? क्या बिहार को अनुभव चाहिए?”
विपक्ष खुद वह बात दोहराने लगा, जिसे भाजपा चुपचाप चाहती थी।
१)नाराज़ मतदाता नरम पड़ने लगे
२)एंटी-इनकंबेंसी हवा हो गई
३)सर्वे बदलने लगे
४)महागठबंधन में भी भ्रम फैल गया
ऐन चुनाव के समय, जनता के “बदलाव बनाम स्थिरता” के संतुलन को सिर्फ एक वाक्य ने हिला दिया। और यह राजनीतिक शतरंज की वही बिसात है, जिसे अमित शाह वर्षों से साधते आए हैं।
महागठबंधन की अनदेखी भविष्य की दरारें
यह भी ध्यान देने की बात है कि राहुल गांधी को प्रचार से दूर रखना कांग्रेस के भीतर खदबदाहट पैदा करेगा। कांग्रेस में व्यक्तिगत राजनीतिक रणनीतियों से ज्यादा संवेदनशील मुद्दा है नेतृत्व का सम्मान।
लालू-तेजस्वी गठबंधन की चुनावी प्राथमिकताएँ, कांग्रेस के आंतरिक समीकरणों से टकराती हैं। यह टकराव मतदान बाद अपनी पूरी तीव्रता के साथ उभरने वाला है।
*क्या अमित शाह ने सिर्फ चुनाव जीता, या भविष्य भी लिख दिया?*
राजनीति सिर्फ वोट जीतने का खेल नहीं; यह भविष्य के गठबंधनों, विरोधों और आंतरिक समीकरणों को समझने का विज्ञान है। शाह की रणनीति ने,विपक्ष का नैरेटिव ध्वस्त किया
1)जनता की धारणा बदली
2)नीतीश को पुनः प्रासंगिक बनाया
3)कांग्रेस राजद के रिश्तों में नई दरार की बुनियाद रख दी।
यही वह क्षमता है
बिसात बिछाना, मोहरे चुपचाप चलवाना और आख़िरी चाल से खेल पलट देना,जो अमित शाह को आधुनिक भारतीय राजनीति का ‘चाणक्य’ बनाती है।
भारतीय राजनीति में समय-समय पर बड़े रणनीतिकार उभरते रहे हैं। लेकिन जिस शैली में अमित शाह चुनावी युद्धक्षेत्र को मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और राजनीतिक तीनों स्तरों पर प्रभावित करते हैं, वह उन्हें समकालीन नेताओं से अलग खड़ा करती है।
राजनीति में ‘चाणक्य’ का अर्थ सिर्फ जीतने वाले नेता से नहीं, बल्कि वो नेता जो दूसरों की चाल चलते हुए भी अपनी रणनीति छुपाए रखे और समय आने पर एक वाक्य से पूरी दिशा बदल दे। बिहार चुनाव में भाजपा का वह एक बयान उसी कला का जीवंत उदाहरण है।




