युद्ध की वजहें और परिणाम कुछ भी हों, पर जनसंहार अवश्यम्भावी और पीड़ादाई है…

चाहे राम-रावण युद्ध हो या महाभारत का पांडव-कौरव युद्ध हो…चाहे राजाओं-महाराजाओं के बीच साम्राज्य विस्तार और आर्थिक हितों के लिए लड़े गए युद्ध हों या फिर लोकतांत्रिक दौर में लड़े जाने वाले युद्ध। सभी युद्ध पीड़ादाई और कष्टकारी होते हैं। युद्धों की वजहें कुछ भी रही हों और परिणाम भी कुछ भी रहे लेकिन सारे युद्धों में जनसंहार अवश्यंभावी रहा है। और यह मानवता के माथे पर कलंक बना है। बीसवीं सदी के दो विश्व युद्धों की आग अब भी पूरी दुनिया में डरावने अवशेषों के रूप में जिंदा है। हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम के हमले के बाद के दृश्य इतिहास पढ़ने वालों की आंखों में कौंधकर अब भी अंधा कर देते हैं। तब हिटलर भी आत्महत्या करने को मजबूर होते हैं लेकिन यह युद्ध उन बेकसूरों के प्रति बड़े निर्मम होते हैं जो राष्ट्राध्यक्षों के फैसलों पर बेवजह ही जान गंवाने को मजबूर होते हैं। इसमें युद्धों का हिस्सा बनने वाले सैन्य अफसर और सैनिक जहां युद्ध लड़ते हुए शहादत देते हैं तो आम नागरिक भी जान गंवाने को बेवजह ही अभिशप्त हो जाते हैं। फरवरी 2022 में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन युद्ध भी इसका अपवाद नहीं है। अगर इस युद्ध का असर पूरी दुनिया को अपने घेरे में लेता है तो तीसरा विश्व युद्ध परमाणु बमों के तांडव से दहले बिना नहीं रहेगा और दुष्परिणाम अभी तक के सारे युद्धों से भयावह होंगे। तीसरा विश्व युद्ध नहीं भी होता है, तब भी तय है कि वैश्विक स्थितियां सामान्य नहीं रहेंगीं।
एक बार फिर दुनिया में दो खेमे बनने का दौर शुरु हो चुका है। चीन खुद को रूस के करीब पा रहा है और पाकिस्तान रूस में मौजूद है। तो अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, नाटो, ब्रिटेन रूस के खिलाफ सैन्य और आर्थिक हमलों की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। वहीं भारत गुटनिरपेक्ष रहने की मंशा के साथ नजर आ रहा है, लेकिन आग फैलती है तो युद्ध करने और एक खेमा चुने बिना नहीं रह पाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यूक्रेन के राजदूत ने गुहार लगाई और मोदी ने पुतिन से बात करने का मन भी बना लिया है लेकिन यह मन की बात पुतिन को रास आएगी, यह कतई नहीं कहा जा सकता। और यहां से रूस और भारत के पुराने संबंधों के जारी रहने या जारी न रहने का नया दौर शुरू होने के आसार बन सकते हैं। अच्छा तो यही है कि मोदी-पुतिन वार्ता सार्थक परिणाम के साथ दोनों देशों के संबंधों को मजबूत बनाने वाली रहे। पर अब पुतिन किसी तरह बैकफुट पर आने को कतई तैयार नहीं होंगे, जिसका वह ऐलान कर चुके हैं। रूस और यूक्रेन के बीच किसी ने दखल दिया तो परिणाम बहुत बुरे होंगे। इशारा भले ही अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, नाटो की तरफ हो, लेकिन दखल देने वाले किसी भी देश के लिए यह इशारा काफी है। युद्ध के पहले दिन मौतों का आंकड़ा सौ पार बताया जा रहा है, जिसमें सैन्यकर्मी और आम नागरिक शामिल हैं। आगे यह आंकड़े भयावह होना तय है, यदि युद्ध जारी रहता है तो। इमरान की प्रतिक्रिया कि मैं कितने सही समय पर आया हूं, मैं बहुत उत्सुक हूं…यह बयां कर रही है कि आर्थिक बर्बादी के मोहाने पर बैठे देश का प्रधानमंत्री युद्ध के लिए आखिर इतना उत्सुक क्यों है? रूस की जमीं पर पैर हैं और निगाहों में चीन बसा है, क्या यह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की उत्सुकता की खास वजह तो नहीं है? और उत्सुकता की वजह कहीं यह तो नहीं कि जिस तरह पुतिन का यूक्रेन के प्रति रवैया है, कल इसी तरह का रवैया मोदी का पीओके के प्रति होकर उन्हें कल इसी तरह का दिन देखने को मजबूर तो नहीं करेगा?
 खैर हम बात कर रहे थे कि हर युद्ध जनसंहारक और पीड़ादाई होता है। तो राम-रावण युद्ध में दोनों दलों के लाखों योद्धाओं के मारे जाने और चीत्कार के दृश्य रामायण सीरियल में देखकर ही मन दहल जाता था। तुलसीकृत रामचरित मानस का वर्णन तो युद्ध को और ज्यादा भयावह बताता है। महाभारत में युद्धभूमि में योद्धाओं के मारे जाने से जीतने वाले दल के योद्धा भी आंसू बहाने को मजबूर रहते हैं। युद्धभूमि में असंख्य लाशों को गिद्ध नौंचकर खाते हैं और इंसानियत रोती बिलखती सी नजर आती है। तो प्रथम विश्व युद्ध यूरोप में होने वाला यह एक वैश्विक युद्ध था जो 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चला था। इसे महान युद्ध या “सभी युद्धों को समाप्त करने वाला युद्ध” के रूप में जाना जाता है। यह इतिहास में सबसे घातक संघर्षों में से एक था, जिसमें अनुमानित 9 करोड़ लड़ाकों की मौत और युद्ध के प्रत्यक्ष परिणाम के स्वरूप में 1.3 करोड़ नागरिकों की मृत्यु की बात कही जाती है।
द्वितीय विश्वयुद्ध 1939 से 1945 तक चलने वाला विश्व-स्तरीय युद्ध था। लगभग 70 देशों की थल-जल-वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मलित थीं। इस युद्ध में विश्व दो भागों मे बँटा हुआ था – मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। इस युद्ध के दौरान पूर्ण युद्ध का मनोभाव प्रचलन में आया क्योंकि इस युद्ध में लिप्त सारी महाशक्तियों ने अपनी आर्थिक, औद्योगिक तथा वैज्ञानिक क्षमता इस युद्ध में झोंक दी थी। इस युद्ध में विभिन्न राष्ट्रों के लगभग 10 करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया, तथा यह मानव इतिहास का सबसे ज़्यादा घातक युद्ध साबित हुआ। इस महायुद्ध में 5 से 7 करोड़ व्यक्तियों की जानें गईं क्योंकि इसके महत्वपूर्ण घटनाक्रम में असैनिक नागरिकों का नरसंहार, जिसमें होलोकॉस्ट भी शामिल है तथा परमाणु हथियारों का एकमात्र इस्तेमाल शामिल है। जिसकी वजह से युद्ध के अंत मे मित्र राष्ट्रों की जीत हुई।
इन युद्धों की वजहें और परिणाम कुछ भी रहे हों लेकिन नरसंहार के आंकड़े रूह को कंपाने वाले थे। दूसरे विश्व युद्ध में परमाणु हथियारों का सीमित इस्तेमाल हुआ था, लेकिन तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो परमाणु शक्ति का नंगा नाच दुनिया को दहलाकर धरती को कब्र में बदलकर ही दम लेगा। जो अब तक का सर्वाधिक घातक युद्ध साबित होगा। अच्छा यही है कि वह दिन कभी न आए, जब विनाश तांडव करने का मन बना सके और “समय” मौन रहकर वीभत्सतम दृश्यों का साक्षी बनने को मजबूर हो।
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कौशल किशोर चतुर्वेदी

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के जाने-माने पत्रकार हैं। इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में लंबा अनुभव है। फिलहाल भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र एलएन स्टार में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले एसीएन भारत न्यूज चैनल के स्टेट हेड रहे हैं।

इससे पहले स्वराज एक्सप्रेस (नेशनल चैनल) में विशेष संवाददाता, ईटीवी में संवाददाता,न्यूज 360 में पॉलिटिकल एडीटर, पत्रिका में राजनैतिक संवाददाता, दैनिक भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ, एलएन स्टार में विशेष संवाददाता के बतौर कार्य कर चुके हैं। इनके अलावा भी नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित विभिन्न समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन किया है।