मेरे संघर्ष का सबसे उज्ज्वल सितारा बुझ गया: डॉ कैलाश सत्यार्थी की कामरेड चौरसिया को भावपूर्ण श्रद्धांजलि

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मेरे संघर्ष का सबसे उज्ज्वल सितारा बुझ गया: डॉ कैलाश सत्यार्थी की कामरेड चौरसिया को भावपूर्ण श्रद्धांजलि

New Delhi: नोबेल शांति पुरस्कार विजेता डॉ कैलाश सत्यार्थी ने अपने संघर्ष और जीवन के सबसे प्रिय, विश्वसनीय और तपस्वी साथी कामरेड रमाशंकर चौरसिया के निधन पर गहरी पीड़ा और श्रद्धा से भरा यह लेख लिखा है। 96 वर्ष की आयु में चौरसिया जी के चले जाने ने सत्यार्थी के भीतर एक ऐसा खालीपन छोड़ दिया है, जिसे वे सिर्फ किसी साथी का खोना नहीं, बल्कि अपने ही संघर्ष की आत्मा का बिछुड़ना मानते हैं। चार दशक तक बाल दासता के खिलाफ लड़ाई में पिता जैसी छाया, ढाल और प्रेरणा बने रहने वाले चौरसिया जी के प्रति सत्यार्थी की यह श्रद्धांजलि उनके जीवन, व्यक्तित्व और अमर समर्पण को प्रणाम है।

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▫️कॉमरेड रमाशंकर चौरसिया के अंतिम संस्कार के बाद मिर्ज़ापुर (उप्र) से लौट रहा हूं। कल उनका देहांत हुआ था। वे लगभग 40 साल से हमारे आंदोलनों में मेरे सबसे विश्वसनीय साथी और व्यक्तिगत तौर पर बड़े भाई या पिता की तरह थे।

▫️वे 96 साल के थे और कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें तो जाना ही था, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरे हाथों से कुछ फिसल गया है। दिल का कोई हिस्सा खाली हो गया है। बाल दासता के खिलाफ हमारे संघर्ष का सबसे जाज्वल्यमान सितारा टूट गया है।

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▫️जो हाथ से फिसला, वह गर्व और गौरव से भरी एक गठरी थी, जिसमें सादगी, सरलता, विनम्रता, दृढ़ता, करुणा, संकल्प, समर्पण और समाज परिवर्तन की आग से भरे हुए एक जिंदा इंसान का उदाहरण था। तब मैं गर्व से कहता था कि ये आदर्श की बातें नहीं, मेरे साथी चौरसिया जी हैं।

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▫️दिल का खाली हो गया हिस्सा, किसी आदमी के लिए आंख मूंद कर किया जा सकने वाला मेरा अटूट भरोसा था, एक गहरी आत्मीयता और सौम्यता भरी मुस्कुराहट थी, एक संत जैसी वाणी थी, जो मेरी असंभव लगने वाली योजनाओं के समर्थन में जोर से कहती थी, ‘भाईसाहब, आपने सोच लिया है, तो वह होकर ही रहेगा। चिंता मत कीजिए हम कर लेंगे।’ यह मुझसे लगभग 25 साल बड़े कामरेड चौरसिया की आवाज होती थी।

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▫️वे अस्सी के दशक की शुरुआत में हमारे आन्दोलन से जुड़े और उसी के होकर रह गए। शुरुआती दस-बारह सालों तक हम लोगों ने मिर्ज़ापुर और उत्तर प्रदेश के बाल मजदूरी ग्रस्त इलाकों में जोर शोर से काम किया। फिर एक दिन मैंने उनसे कहा कि चलिए कॉमरेड, अब आप दिल्ली चलिए वहाँ मुझे आपकी जरूरत है। इसे उनका पागलपन कहें या मानव मुक्ति के लिए आत्मा की गहराइयों में बसा जुनून, उन्होंने हां कर दी। पत्नी, बेटे, बहुएं और छोटे-छोटे पोते-पोतियों को मिर्जापुर छोड़कर वे दिल्ली आ गए और लगभग पच्चीस साल तक हमने मिलकर काम किया।

▫️वे बाल दासता के विरुद्ध आंदोलन के सबसे संघर्षशील और समर्पित योद्धा और नायक थे। उनके बगैर मेरी किसी भी व्यक्तिगत या संगठनात्मक उपलब्धि की बात करना बेमानी होगा।

▫️सबसे जोखिम भरी अनगिनत छापामार कार्रवाइयों के दौरान मेरी ढाल की तरह, आर्थिक संकटों के दिनों में आशा और प्रोत्साहन की तरह, संगठन की उठापटक में एक शीतल फुहार की तरह, नॉर्वे में नोबेल शांति पुरस्कार लेते वक्त मेरी खुशी को अपनी आंखों के आंसुओं में ढालने वाले चौरसिया जी जैसा कोई दूसरा नहीं हो सकता।

▫️कामरेड चौरसिया, एक बात तो तय है कि आप जहां भी रहेंगे, महानता आपका पीछा नहीं छोड़ेगी! और उसकी सुगंध, संगीत और रोशनी का फ़ायदा दुनिया को मिलता ही रहेगा। आपने केवल अपना शरीर छोड़ा और हम भी उसे चिता पर छोड़ आए, लेकिन न तो आप कभी मरेंगे, और न ही हम आपको मरने देंगे। आपका व्यक्तित्व और कृतित्व अमर है, और अमर ही रहेगा।

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▪️कामरेड रमाशंकर चौरसिया का जाना किसी देह के अंत भर नहीं, बल्कि एक ऐसे जीवन-संकल्प का विराम है, जिसने हजारों बच्चों को आजादी की सांस दी और अनगिनत लोगों को मानवता का अर्थ समझाया। डॉ कैलाश सत्यार्थी की स्मृतियों में चौरसिया जी केवल एक साथी नहीं, बल्कि वह सहारा हैं जिसने हर कठिन मोड़ पर संघर्ष को दिशा दी, हिम्मत दी और असंभव को संभव बनाने का विश्वास जगाया।

▪️उनकी मुस्कान, उनकी सरलता, उनका तप और उनका अडिग समर्पण—यह सब सत्यार्थी के भीतर, आंदोलन की आत्मा में और हर उस बच्चे की मुक्त हंसी में जीवित रहेगा, जिसके लिए वे पूरी जिंदगी लड़े।

▪️एक इंसान का जाना कभी उसके आदर्शों का अंत नहीं होता। कामरेड चौरसिया जी भी उसी रोशनी की तरह हैं—शरीर से दूर हो सकते हैं, पर आने वाली पीढ़ियों के मार्ग को हमेशा उजाला देते रहेंगे।

डॉ कैलाश सत्यार्थी की यह श्रद्धांजलि उसी अमर रोशनी को प्रणाम है।