
फैसल की हिम्मत ने थामा डूबता हाथ: पीलीभीत तालाब में इंसानियत की जीत
Pilibhit : उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में गौहनिया चौराहे के पास गुरुवार की सुबह एक भयावह हादसा हुआ जिसे सैकड़ों लोगों ने अपनी आंखों से देखा लेकिन बहुत कम लोगों ने दिल से महसूस किया। एक कार तेज रफ्तार में तालाब में समा गई। अंदर फंसा था शुभम तिवारी और किनारे पर खड़े थे सैकड़ों लोग जो घटना का वीडियो तो बना रहे थे लेकिन मदद करने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई। ऐसे में तालाब के दूसरे छोर पर मछली पकड़ रहे फैसल और उसके साथी दिनेश कुशवाहा ने बिना सोचे समझे पानी में छलांग लगा दी। फैसल ने शुभम का हाथ थाम लिया। बेसुध शुभम को कांच तोड़कर बाहर निकालने की मशक्कत में नाव पलट, कार डूबने लगी फिर भी फैसल ने हाथ नहीं छोड़ा। इंसानियत और हिम्मत ने मिलकर एक जान की जंग जीत ली।
▪️हादसा कैसे हुआ
▫️27 नवम्बर की सुबह करीब दस बजकर तीस मिनट पर शुभम तिवारी अपनी कार से टनकपुर हाईवे पर गुजर रहा था। अचानक सड़क किनारे खेल रहे एक बच्चे को बचाने के प्रयास में कार अनियंत्रित हो गई। कार सीधे तालाब की ओर मुड़ी और तेज रफ्तार की वजह से पानी में गहराई तक जा घुसी। कार कुछ ही सेकंड में आधी डूब गई और उसके अंदर पानी भरना शुरू हो गया। शुभम कार के भीतर फंस कर बेसुध हो चुका था।
तालाब की गहराई लगभग पचास फीट के आसपास बताई जाती है और पानी में खिंचाव भी था। इस स्थिति में शुभम का बचना बेहद मुश्किल था।
▪️ 100 से अधिक लोग बने तमाशाबिन
▫️कार पानी में गिरते ही इलाके में भगदड़ की स्थिति बन गई। गौहनिया चौराहे के पास उस समय सौ से अधिक लोग मौजूद थे। कई लोग दौड़कर तालाब के किनारे पहुंचे और अपने मोबाइल कैमरों से वीडियो बनाने लगे। कुछ लोगों ने एक दूसरे को सावधान रहने को कहा लेकिन किसी ने भी पानी में उतरकर जीवन बचाने का जोखिम नहीं लिया।
हादसे का वीडियो अब वायरल है और इसमें साफ दिखता है कि लोगों की भीड़ बस एक तमाशबीन की तरह खड़ी रही। ठीक उसी समय तालाब की दूसरी तरफ बैठा एक युवक यह दृश्य देख चुका था और उसकी पहली प्रतिक्रिया थी मदद करना।
▪️फैसल असली हीरो बनकर सामने आया
▫️फैसल नाव लेकर तालाब में मछली पकड़ रहा था। उसने कार को डूबते देखा तो बिना एक पल गवाए नाव को तेजी से कार की ओर मोड़ा। उसके साथ स्थानीय युवक दिनेश कुशवाहा भी बचाव में शामिल हो गया। शुभम अंदर फंसा था और दरवाजा जाम हो चुका था। समय बेहद कम था।

फैसल ने कार के पास पहुंचकर शुभम को बाहर निकालने की कोशिश की लेकिन तभी तेज लहर में उसकी नाव उलट गई और वह भी गहरे पानी में गिर पड़ा। इसके बावजूद उसने शुभम को नहीं छोड़ा। गहरी सांसें टूट रही थीं, कार तेजी से नीचे जा रही थी लेकिन फैसल पानी में तैरते हुए शुभम को पकड़े रहा।
▫️दिनेश ने भी सहायता करते हुए शुभम के हाथ को ऊपर की ओर खींचा। लगभग बीस मिनट की जद्दोजहद के बाद दोनों ने शुभम को ऊपर उठाकर किनारे की ओर खींच लिया। शुभम बेहोशी की हालत में था लेकिन उसकी धड़कनें चल रही थीं। यह इंसानियत की सबसे बड़ी जीत थी।
▪️प्रशासन की लापरवाही उजागर
▫️स्थानीय लोगों ने प्रशासन पर गंभीर सवाल उठाए हैं। तालाब के चारों ओर कोई फेंसिंग, बैरिकेडिंग या चेतावनी बोर्ड तक नहीं लगा है। यह वही तालाब है जहां पहले भी छोटे हादसे होते रहे हैं लेकिन सुधार कभी नहीं किया गया।
अगर तालाब की परिधि सुरक्षित होती तो शायद कार सीधे पानी तक नहीं पहुंचती या दुर्घटना की गंभीरता इतनी गहरी नहीं होती। हादसे के बाद जब पुलिस और दमकल टीम पहुंची तो कार को क्रेन से बाहर निकाला गया।
▪️अस्पताल में भर्ती शुभम की हालत स्थिर
▫️घटना के तुरंत बाद एंबुलेंस से शुभम को जिला अस्पताल पहुंचाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे खतरे से बाहर बताया। शुभम ने होश में आने पर बताया कि कार के अंदर पानी पिघलती बर्फ की तरह भर रहा था और उसे लगा था कि वह अब बच नहीं पाएगा। उसने फैसल को अपना जीवनदाता कहा।
▪️भीड़ की संवेदनहीनता पर बड़ा सवाल
▫️सबसे बड़ा सवाल यही है कि हादसे के समय वहां मौजूद भीड़ में से कोई भी व्यक्ति मदद के लिए आगे क्यों नहीं आया। लोग चेहरा बचाते रहे, रायचंद बने रहे, वीडियो बनाते रहे लेकिन संकट में फंसे एक व्यक्ति की सहायता करने की हिम्मत नहीं जुटा सके।
▫️हालांकि सोशल मीडिया पर लोग लगातार फैसल और दिनेश की बहादुरी को सलाम कर रहे हैं और प्रशासन से इन्हें सम्मानित करने की मांग कर रहे हैं।
फैसल और दिनेश ने यह साबित कर दिया कि इंसानियत केवल भाषणों से नहीं बल्कि हिम्मत से जीवित रहती है।
📍पीलीभीत की यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं बल्कि एक सबक है। भीड़, कैमरा और सोशल मीडिया पर शोर से ज्यादा जरूरी है इंसानियत, साहस और त्वरित मदद। फैसल और दिनेश ने यह साबित कर दिया कि धर्म, जाति, राजनीतिक पहचानों से ऊपर उठकर जब इंसानियत आगे आती है तो जिंदगी बच जाती है।
यह कहानी सिर्फ शुभम की नहीं बल्कि उस समाज की भी है जहां एक ही नजारे में संवेदनहीनता भी दिखती है और बहादुरी भी। यह उम्मीद भी है और चेतावनी भी कि आगे ऐसी घटनाएं न हों इसके लिए प्रशासनिक सुरक्षा सुधार और समाजिक चेतना दोनों जरूरी हैं।




