Arvind Chaturvedi: दिखते कठोर थे और हकीकत में थे कोमल अरविंद जी

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4 दिसंबर पुण्य तिथि पर विशेष –

Arvind Chaturvedi: दिखते कठोर थे और हकीकत में थे कोमल अरविंद जी

मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग को विशिष्ट पहचान देने वाले सक्रिय अधिकारियों में से एक रहे श्री अरविंद चतुर्वेदी का दो वर्ष पूर्व आज ही के दिन भोपाल में अवसान हो गया। दादा माखनलाल चतुर्वेदी जी के परिवार से संबंध रखने वाले अरविंद जी पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा के साडू भाई भी थे। श्री चतुर्वेदी ने पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस विश्वविद्यालय के महानिदेशक भी रहे।इसके साथ ही अरविंद जी ने केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न संस्थानों में कार्य करने वाले जनसंपर्क अधिकारियों के प्रतिनिधि संगठन पी आर एस आई में अहम पदों को संभाला। उन्होंने देश के विभिन्न स्थानों पर संस्था के अधिवेशन भी आयोजित किए।

मप्र शासन के मुख पत्र के रूप में प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका “मध्य प्रदेश संदेश” के संपादक के रूप में और जनसंपर्क मुख्यालय में प्रशासन शाखा के प्रभारी के रूप में उन्होंने कार्य कुशलता का परिचय दिया। श्री चतुर्वेदी अपने मातहत अधिकारियों और कर्मचारियों का विशेष ध्यान रखते थे। वे मध्य प्रदेश माध्यम द्वारा प्रारंभ किए गए साप्ताहिक रोजगार और निर्माण के नियमित प्रकाशन की जिम्मेदारी भी निभाते थे। टैबलॉयड साइज के इस लोकप्रिय अखबार के लिए मुद्रण का कार्य रायपुर में होता था। तब प्रति सप्ताह भोपाल से विशेष वाहक द्वारा प्रकाशन सामग्री भेज कर अखबार के मैटर को अंतिम रूप देने और प्रकाशित प्रतियां बुलवाकर संपूर्ण मध्य प्रदेश में वितरित करवाने की जिम्मेदारी का चतुर्वेदी जी ने बखूबी निर्वहन किया। उन वर्षों में ईमेल, फैक्स और अन्य साधन काफी सीमित थे।

मानव संसाधन ही सर्वाधिक भूमिका निभाते थे। प्रकाशन शाखा में कार्य कुशल अमले को विकसित करने में चतुर्वेदी जी ने अहम भूमिका का निर्वहन किया। वे कम बोलते थे और एक कठोर प्रशासक की छवि लिए हुए थे लेकिन हृदय से कोमल थे।देहावसान के पहले कुछ वर्ष तक वे अस्वस्थ थे फिर भी मेल मुलाकात का क्रम चलता रहता था। चतुर्वेदी जी साहित्यिक अभिरुचि भी रखते थे। यह उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण हुआ। एक समय था जब वे क्रिकेट और बैडमिंटन में गहरी रुचि रखते थे। जब जनसंपर्क मुख्यालय भोपाल के प्राचीन स्मारक गोलघर में लगता था तब वे अक्सर दफ्तर के पास ही बने बैडमिंटन कोर्ट में कुछ देर खेल आते थे।बढ़ती उम्र के कारण उनकी खेल गतिविधियों में सक्रियता कम होती गई। लेकिन अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते थे। अरविंद जी बीते दिनों के संस्करण सबसे साझा करते थे। वे अनुभव की पूंजी से समृद्ध थे और उसका लाभ अपने कनिष्ठ साथियों को निरंतर देते रहे।
उस दौर के जनसंपर्क अधिकारी पारंपरिक प्रचार माध्यमों का काफी उपयोग करते थे। विकास कार्यों की चित्र प्रदर्शनियां लगती थीं और मेलों में सरकारी प्रकाशन के स्टॉल लगते थे, ग्रामों में फिल्म प्रदर्शन,कठपुतली खेल और शहरों में भी शहरी नागरिकों की रुचि के अनुरूप मनोरंजन देने वाली फिल्मों का प्रदर्शन होता था। दो फिल्मों के बीच सरकारी योजनाओं पर बनी लघु फिल्में दिखा दी जाती थीं। बड़ी संख्या में दर्शक मिलते थे ऐसी फिल्मों को और जनसंपर्क अधिकारी कोशिश करके पूरा समय खुद भी वहां उपस्थित रहते थे। उस दौर में सोशल मीडिया का यह पुराना स्वरूप प्रचलित था। चतुर्वेदी जी के मित्रों में श्री भगवती प्रसाद व्यास ,श्री जेपी कौशल , भाऊ खिरवड़कर जी,श्री संतोष कुमार शुक्ला श्री काली दत्त झा,के जी सारस्वत, रघुनाथ प्रसाद तिवारी,अंबा प्रसाद श्रीवास्तव, धगट साहब आदि शामिल थे।
मेरी सरकारी नौकरी की पारी 1987 में शुरू हुई। जब विभाग में आया तो करीब तीन चार बरस ही चतुर्वेदी जी के साथ कार्य का अवसर मिला। वर्ष 1989 में मुख्यमंत्री प्रेस प्रकोष्ठ में तत्कालीन संयुक्त संचालक श्री श्याम बिहारी पटेल ने जब मेरी सेवाएं मांगी तो अरविंद जी ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। उनका मानना था युवा लोगों को कुछ  वर्ष फील्ड में सेवाएं देना चाहिए। इसलिए इन्हें हम इंदौर भेज रहे हैं। आप किसी अन्य अधिकारी को ले लीजिए। उस समय मैंने दो वरिष्ठ अधिकारियों को परस्पर विचार विमर्श कर ही निर्णय लेने का उदाहरण जनसंपर्क विभाग में देखा। उनके सभी निर्णय सुविचारित होते थे।
पुरानी पीढ़ी के अधिकारियों के परिवार के सदस्य भी परस्पर पारिवारिक रूप से जुड़े होते थे। इसका उदाहरण उस दिन भी देखने को मिला जब स्व चतुर्वेदी जी के निवास पर डॉ.के डी झा और श्री बीपी व्यास जी के परिजन दिखाई दिए।
उनके निधन से जनसंपर्क क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व को हमने खो दिया है।
आदर सहित नमन और श्रद्धांजलि।
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अशोक मनवाणी ,संयुक्त संचालक जनसंपर्क