Films Review : इस ‘धुरंधर’ को झेल सको तो झेल लो.

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Films Review : इस ‘धुरंधर’ को झेल सको तो झेल लो.

-डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी

‘धुरंधर’ फिल्म के 214 मिनट को मैं मेरी जिंदगी के सबसे कठिन पल मानता हूँ। 214 मिनट यानी तीन घंटे 34 मिनट ! लगभग दो घंटे तक जब इंटरवल नहीं हुआ तब मुझे लगा कि शायद फिल्म बनानेवाले इंटरवल करना भूल गए हैं! फिर इंटरवल के बाद अगले डेढ़ घंटे तक लगा कि फिल्म खत्म करना भी भूल गए हैं, बस खींचे चले जा रहे हैं। बीच-बीच में ख्याल आया कि मैं सिनेमा हॉल में नहीं, घर पर किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर 8-10 एपिसोड वाली सीरीज देख रहा हूँ।

मैं सोच रहा हूँ कि सीधे मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज करा दूँ कि ऐसे निर्माता-निर्देशक पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जो इतनी लंबी और बोर फिल्म बनाते हैं, फिर भी अंत में स्क्रीन पर लिखते हैं – “To be continued”!

कुल मिलाकर इस फिल्म को देखना करीब-ब-ब-बोर चार घंटे की सजा जैसा अनुभव है (इंटरवल, ट्रेलर, विज्ञापन सब मिलाकर)। अगर किसी से सच्ची दुश्मनी निकालनी हो तो उसको ‘धुरंधर’ का टिकट गिफ्ट कर दो – बस, काम तमाम!

इतनी लंबी और पकाऊ फिल्म बनाने के बाद भी निर्माता को लगता है कि पार्ट-2 भी बनना चाहिए। जासूसी + एक्शन + देशप्रेम की शैली में पहले 3 तरह की टाइगर आ चुकी हैं, 2 वॉर आ चुकी हैं , पठान, बेल बॉटम बेबी आदि आ चुकी हैं। अब ‘धुरंधर’ भी पार्ट-2 लेकर आएगा। तौबा तौबा !

फिल्म में एक्शन है, देशभक्ति का तड़का है, दावा है कि सच्ची घटनाओं पर आधारित है – लेकिन भिया , पाकिस्तान के गैंगवार और कराची की लोकल पॉलिटिक्स में हमारी क्या रुचि? मुंबई के गैंगवार में भी हमारी खास दिलचस्पी नहीं है, फिर कराची की गली-मोहल्ले की राजनीति?

हिंसा का ऐसा अतिरेक है कि समझ नहीं आता – हमारे सुपर जासूस के पास बंदूक है, मैगजीन भरी हुई है, फिर भी वो एक भी गोली सही निशाने पर क्यों नहीं मारता? सारी गोलियाँ हवा में उड़ा देता है और आखिर में जाकर हाथ से ढिशूम – ढिशूम करता है – उल्लू का पट्ठा! इतनी लम्बी फिल्म में मैंने पॉपकॉर्न खत्म कर लिए, कोल्ड ड्रिंक पी ली, वॉशरूम भी हो आया, फिर भी फिल्म चल रही थी।

यह फ़िल्म फ्यूज बल्ब जैसे एक्टरों की दुकान है! जैसे राशन की दुकान पर लाइन लगती है, वैसे ही इस फिल्म में कलाकारों की लंबी लाइन है – रणवीर सिंह, संजय दत्त, अक्षय खन्ना, आर माधवन, अर्जुन रामपाल, राकेश बेदी, सारा अर्जुन, वगैरह-वगैरह। कंधार विमान अपहरण, संसद हमला, 26/11 मुंबई हमला – सारी सच्ची घटनाएँ जबरदस्ती ठूँस दी गई हैं।

रणवीर सिंह को सुपर कॉप दिखाया गया है और उनकी बड़ी-बड़ी जुल्फें बार-बार चेहरे पर आती हैं जैसे किसी नई-नवेली दुल्हन का घूंघट। जब वो बड़ी अदा से घूंघट (बाल) हटाते हैं तो सचमुच क्यूट लगते हैं। दक्षिण की सारा अर्जुन महज 20 साल की हैं और उन्होंने बहुत अच्छी एक्टिंग की है।

सबको पता है कि भारत में आतंकवाद के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, अंडरवर्ल्ड और आतंकवादियों की सांठगांठ है, राजनीति इसमें लिप्त है – लेकिन कराची के एक छोटे से इलाके की लोकल राजनीति में हमारा हिंदी सिनेमा क्या कर रहा है भाई? फिल्म को हाई-ऑक्टेन स्पाई थ्रिलर बताया गया है, कहा गया कि देशभक्ति, हिंसा, सस्पेंस, हॉलीवुड लेवल एक्शन और ढेर सारे ट्विस्ट हैं।

हाँ, ट्विस्ट तो सचमुच भरे पड़े हैं, पर कहानी में आगे कुछबढ़ता ही नहीं। बस स्टंट, वीएफएक्स और सिनेमैटोग्राफी। हर सीन के बाद दर्शक सोचता है – “अब तो मजा आएगा” – लेकिन कुछ होता नहीं।

आर माधवन का रोल अजीत डोभाल से प्रेरित है। कुछ डायलॉग मौजूदा सरकार की नीतियों से मिलते-जुलते हैं – “घर में घुसकर मारेंगे”, “आज घर में घुसे हैं, कल छाती पर बैठेंगे”, “पाकिस्तान नकली नोट और हथियार भेज रहा है”, “यूपी में अपना घर बनाए हुए हैं” वगैरह।

कुछ डायलॉग सचमुच दमदार हैं, जैसे:

“मुक्का मारना है तो मुट्ठी भींचनी पड़ेगी”

“अगर शैतान को मारना हो तो चिराग तो घिसना ही जाना पड़ेगा”

“घायल हूँ, इसलिए खतरनाक हूँ”

जब हीरो को इश्क होता है तब पाकिस्तानी बॉस पूछता है -‘इश्क या अय्याशी?’

जब हीरो पाकिस्तान में शादी करता है तो फोटोग्राफर कहता है – “मुस्कुराइए , आपकी पहली शादी जो है!”

बोरियत का आलम ये था कि मेरी घड़ी भी बोर होकर धीरे-धीरे चलने लगी थी। थिएटर के मच्छर मेरे आसपास मँडरा रहे थे, लेकिन वो भी इतने बोर हो चुके थे कि काटना तक भूल गए।अगर आपको सचमुच कोई सजा देनी हो – तो ‘धुरंधर’ दिखा दो। बस।

इस ‘धुरंधर’ को झेल सको तो झेलो ! मेरी कोई ज़िम्मेदारी नहीं। अपनी रिस्क पर देखें।