Unique Wish Fulfilling Tree : विलक्षण कल्पवृक्ष का पता चलने पर उसे संरक्षित करने, जिला प्रशासन, महापौर, निगम आयुक्त व महापौर से अपिल!

रतलाम में सोनी परिवार के खेत में 400 वर्ष प्राचीन अद्भुत कल्प वृक्ष भी मौजूद! जानिए कल्प वृक्ष के बारे में विस्तृत जानकारी!

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Unique Wish Fulfilling Tree : विलक्षण कल्पवृक्ष का पता चलने पर उसे संरक्षित करने, जिला प्रशासन, महापौर, निगम आयुक्त व महापौर से अपिल!

Ratlam : जिले में इस अद्भुत प्रजाति के चुनिंदा वृक्ष मौजूद हैं। जिनमें कल्प वृक्ष को दुर्लभ माना जाता हैं। बीते कल यानी गुरुवार को शहर के 2 वरिष्ठ पत्रकारों ने शहर की 80 फीट रोड पर हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के आगे सड़क किनारे हनुमान ताल की और यह कल्पवृक्ष की सूचना मिलने पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पाटनी ने पर्यावरणविद् खुशाल सिंह पुरोहित से संपर्क किया फिर दोनों मुकाम पर पहुंचे और वृक्ष को देखकर खुशाल सिंह पुरोहित ने उसे कल्प वृक्ष होने की पुष्टि की। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पाटनी ने बताया कि अभी तक इस अद्भुत कल्पवृक्ष की और किसी का ध्यान नहीं गया था इसे लेकर गुरुवार को पर्यावरणविद् डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित को मैंने अपने साथ ले जाकर यह अद्भुत वृक्ष दिखाया। डॉ. पुरोहित ने भी इसे कल्पवृक्ष प्रजाति का होना प्रमाणित किया। डॉ.खुशाल सिंह पुरोहित ने और दिलीप पाटनी ने जिला प्रशासन, नगर निगम आयुक्त, महापौर से मांग की है की इस अद्भुत बिरले कल्पवृक्ष जो कि अभी प्रारंभिक अवस्था में इसे सुरक्षित एवं संरक्षित किया जाए!

 

आपको बता दें कि रतलाम शहर के आस-पास क्षेत्रों में तकरीबन 7 से 8 कल्प वृक्ष मौजूद हैं जिनमें मुख्य रूप से शिवगढ़ रोड़ पर स्थित वरोठ माताजी मंदिर के पीछे रिंग रोड पर हॉस्टल से तकरीबन आधा किमी दूर स्थित है जहां 2 कल्प वृक्ष मौजूद हैं जिसे जोड़ा कहा जाता हैं जिनमें से एक कल्प वृक्ष 51 फीट चोड़ा होकर 17 मीटर में फैला हुआ है। यह रतलाम निवासी विजय कुमार सोनी, स्वर्गीय जुगल किशोर सोनी, ओमप्रकाश सोनी एवं संजय (अप्पू) सोनी के खेत में विद्यमान हैं।

 

कल्प वृक्ष की मान्यता!

कल्पवृक्ष हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित एक दिव्य, मनोकामना पूरी करने वाला वृक्ष है, जिसे ‘कल्पतरु’, ‘कल्पपदम’, ‘कल्पद्रुम’ या ‘बाओबाब वृक्ष’ (वैज्ञानिक रूप से Adansonia digitata) के नाम से भी जाना जाता हैं। इसे वेदों और पुराणों में स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष माना गया है।

पौराणिक उत्पत्ति और महत्व!

▫️समुद्र मंथन: हिंदू शास्त्रों के अनुसार, कल्पवृक्ष की उत्पत्ति देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। यह कामधेनु गाय और देवी लक्ष्मी जैसे 14 रत्नों में से एक के रूप में क्षीर सागर से निकला था।

▫️स्वर्ग में स्थापना: समुद्र मंथन के बाद, देवताओं के राजा इंद्र इस वृक्ष को स्वर्गलोक ले गए और अपने बगीचे में स्थापित किया।

▫️इच्छा पूर्ति की मान्यता: ऐसी मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है।

धार्मिक प्रतीकवाद: हिंदू धर्म के अलावा, यह जैन धर्म और बौद्ध धर्म में भी प्रचुरता, समृद्धि, और दिव्य आशीर्वाद का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।

▫️वैज्ञानिक तथ्य (बाओबाब वृक्ष)

आधुनिक युग में, ‘कल्पवृक्ष’ के नाम से पहचाने जाने वाले वास्तविक पेड़ को आमतौर पर बाओबाब (Adansonia digitata) वृक्ष माना जाता है।

▫️औषधीय महत्व: आयुर्वेद की दृष्टि से इस वृक्ष का बहुत औषधीय महत्व है। इसके फल में संतरे से 6 गुना अधिक विटामिन ‘सी’ होता है।

▫️संरचना: इसकी लकड़ी में पानी की मात्रा लगभग 79 प्रतिशत होती है, जिससे यह सीधे खड़ा रहता है।

▫️भौगोलिक उपस्थिति: माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति अफ्रीका के जंगलों में हुई, लेकिन यह भारत में कुछ स्थानों पर पाया जाता है।

▫️भारत में स्थान: भारत में उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले और बाराबंकी जिले के किंतूर गांव में प्राचीन कल्पवृक्ष मौजूद हैं, जिन्हें लोग पूजते हैं।

▫️स्वरूप!

कल्पवृक्ष का फल आम, नारियल और बिल्व के संयोजन जैसा दिखता है। कच्चा होने पर यह आम या बिल्व जैसा और पकने पर नारियल जैसा लगता है, सूखने पर यह सूखे खजूर जैसा हो जाता है। सितंबर के महीने में इसमें सफेद रंग के बड़े फूल लगते हैं।

यह वृक्ष भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं में एक विशेष और पूजनीय स्थान रखता है, जो असीमित जीवन, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक हैं!