JHABUA-ALIRAJPUR में अवैध लैब और एक्स-रे से स्वास्थ्य पर बढ़ता खतरा: झोलाछाप चिकित्सकों के बाद दूसरी बड़ी चुनौती

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JHABUA-ALIRAJPUR में अवैध लैब और एक्स-रे से स्वास्थ्य पर बढ़ता खतरा: झोलाछाप चिकित्सकों के बाद दूसरी बड़ी चुनौती

▪️राजेश जयंत▪️

JHABUA-ALIRAJPUR: मध्य प्रदेश के पश्चिम सीमांत जनजातीय बहुल जिले झाबुआ और अलीराजपुर में पहले से कमजोर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था अब एक और गंभीर संकट से घिर गई है। झोलाछाप डॉक्टरों के बाद बिना लाइसेंस चल रही पैथोलॉजी प्रयोगशालाएं और अवैध एक्स-रे मशीनें आदिवासी समाज के स्वास्थ्य के लिए एक साइलेंट खतरे के रूप में उभर रही हैं। गरीबी, कम शिक्षा और अंधविश्वास से जूझ रही आबादी इस गैरकानूनी स्वास्थ्य कारोबार की सबसे बड़ी शिकार बन रही है, जहां गलत जांच, गलत इलाज और अनियंत्रित विकिरण सीधे जीवन पर भारी पड़ रहा है।

▪️अवैध जांच केंद्रों का फैलता जाल

▫️झाबुआ और अलीराजपुर जिलों के जिला मुख्यालयों से लेकर दूरस्थ ग्रामीण अंचलों तक बड़ी संख्या में निजी जांच केंद्र संचालित हो रहे हैं। इनमें से अधिकांश पैथोलॉजी प्रयोगशालाओं में न तो योग्य पैथोलॉजिस्ट उपलब्ध हैं और न ही विधिवत पंजीकृत लैब तकनीशियन। इसके बावजूद रक्त परीक्षण सहित अन्य जांच खुलेआम की जा रही हैं। कई मामलों में जांच रिपोर्टें संदिग्ध या पूरी तरह गलत पाई गई हैं, जिनके आधार पर मरीजों का इलाज शुरू कर दिया जाता है।

▫️इसी तरह अनेक स्थानों पर बिना किसी वैधानिक अनुमति के एक्स-रे मशीनें संचालित हो रही हैं। इन केंद्रों पर न विकिरण सुरक्षा मानकों का पालन होता है और न ही प्रशिक्षित स्टाफ की तैनाती रहती है। परिणामस्वरूप मरीजों को न केवल गलत निदान झेलना पड़ता है, बल्कि अनावश्यक और खतरनाक विकिरण का जोखिम भी उठाना पड़ता है।

▪️झोलाछाप और अवैध लैब की सांठगांठ

▫️पड़ताल में ग्रामीणों ने बताया कि कई निजी क्लीनिक संचालक, विशेषकर झोलाछाप डॉक्टर, इन अवैध पैथोलॉजी प्रयोगशालाओं और एक्स-रे केंद्रों से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। बिना किसी वैध पंजीकरण के चल रहे ये क्लीनिक बीमारी की पहचान और जांच के नाम पर मरीजों को अपनी ही तरह गैरकानूनी तरीके से संचालित जांच केंद्रों पर भेजते हैं। इससे एक ओर झोलाछाप डॉक्टर और अवैध जांच केंद्र संचालक डबल मुनाफा कमाते हैं, वहीं दूसरी ओर गरीब आदिवासी परिवार आर्थिक शोषण और स्वास्थ्य नुकसान दोनों झेलते हैं। हैरानी की बात यह है कि प्रशासनिक कार्रवाई बेहद सीमित दिखाई देती है।

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▪️यह हैं सरकारी नियम

▫️सरकारी प्रावधानों के अनुसार एक्स-रे मशीन जैसे विकिरण उत्पन्न करने वाले उपकरणों का संचालन परमाणु ऊर्जा विकिरण सुरक्षा नियम 2004 के अंतर्गत परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड से लाइसेंस या पंजीकरण प्राप्त किए बिना नहीं किया जा सकता। बिना वैधानिक अनुमति के किसी भी प्रकार का निदानात्मक एक्स-रे कराना कानूनन अपराध है। नियमों में प्रशिक्षित मानव संसाधन, सुरक्षा ढाल और तकनीकी मानकों का पालन अनिवार्य किया गया है। उल्लंघन की स्थिति में परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को संबंधित इकाई को सील करने और लाइसेंस निरस्त करने का अधिकार है।

▪️लाइसेंस क्यों है अनिवार्य

▫️एक्स-रे के लिए वैध लाइसेंस इसलिए जरूरी है क्योंकि असुरक्षित विकिरण का दुष्प्रभाव केवल मरीज तक सीमित नहीं रहता। वहां कार्यरत स्टाफ और आसपास मौजूद लोगों के लिए भी यह दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है। लाइसेंस प्राप्त केंद्रों में सुरक्षा दीवारें, प्रशिक्षित ऑपरेटर और नियमित गुणवत्ता परीक्षण की व्यवस्था होती है, जबकि बिना लाइसेंस केंद्रों में यह सब लगभग नदारद रहता है।

▫️इसी प्रकार पैथोलॉजी प्रयोगशालाओं के लिए नैदानिक प्रतिष्ठान पंजीकरण और विनियमन अधिनियम 2010 के तहत पंजीकरण और न्यूनतम मानकों का पालन अनिवार्य है। बिना योग्य पैथोलॉजिस्ट के जांच कार्य करना इस कानून का सीधा उल्लंघन है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रभावी क्रियान्वयन आज भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।

▪️गलत रिपोर्ट से बिगड़ता इलाज

▫️ ग्रामीणों का कहना है कि अवैध प्रयोगशालाओं और एक्स-रे मशीनों से मिलने वाली रिपोर्टों के आधार पर कई बार गलत इलाज शुरू कर दिया जाता है। इससे मरीजों की हालत सुधरने के बजाय और बिगड़ जाती है। अनेक मामलों में गलत जांच और अत्यधिक विकिरण के कारण गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं सामने आई हैं, जो पहले से ही कमजोर सामाजिक और आर्थिक स्थिति वाले परिवारों के लिए जानलेवा साबित हो रही हैं।

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▪️जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी

▫️नियमों के अनुसार जिला प्रशासन और जिला स्वास्थ्य विभाग को अपने क्षेत्र में संचालित सभी निजी चिकित्सालयों, पैथोलॉजी प्रयोगशालाओं और रेडियोलॉजी इकाइयों की नियमित जांच करना अनिवार्य है। बिना पंजीकरण या बिना लाइसेंस संचालित संस्थानों को सील करना, जुर्माना लगाना और आपराधिक प्रकरण दर्ज करना इन्हीं विभागों के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसके बावजूद झाबुआ और अलीराजपुर जैसे जिलों में निगरानी की कमी के कारण अवैध स्वास्थ्य कारोबार खुलेआम फलता-फूलता दिखाई दे रहा है।

विशेषज्ञों का मत

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि सीमावर्ती जनजातीय अंचलों में राज्य स्वास्थ्य विभाग, जिला प्रशासन और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के समन्वय से सघन और नियमित निरीक्षण अभियान चलाया जाना चाहिए। साथ ही ग्रामीण जनता को यह स्पष्ट जानकारी दी जानी चाहिए कि कौन-सी प्रयोगशालाएं और एक्स-रे केंद्र वैध हैं और कौन-से अवैध, ताकि अज्ञानता और अंधविश्वास के कारण लोग अपनी जान जोखिम में न डालें।

▪️और अंत में•••••

▫️झाबुआ और अलीराजपुर जैसे सामाजिक और आर्थिक रूप से अत्यंत पिछड़े जिलों में बिना लाइसेंस चिकित्सा, पैथोलॉजी और रेडियोलॉजी सेवाओं का फैलाव केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि आदिवासी समाज के स्वास्थ्य पर सीधा हमला है। यदि समय रहते कठोर और प्रभावी प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की गई, तो यह साइलेंट खतरा आने वाले समय में एक बड़े स्वास्थ्य संकट का रूप ले सकता है।