Heritage Walk : सर सेठ हुकमचंद मार्ग इंदौर

47

अपना शहर

Heritage Walk : सर सेठ हुकमचंद मार्ग इंदौर

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी

तीन घंटे में केवल एक-डेढ़ किलोमीटर वॉक, पुरानी हवेलियां, इंदौर के व्यस्ततम बाज़ार और खानपान का लुत्फ़!
कारवाँ हेरिरेज वॉक ग्रुप के साथ इंदौर के सबसे व्यस्ततम बाजारों का दौरा किया. सर सेठ हुकमचंद मार्ग, शीतला माता बाजार, कपड़ा मार्केट… ये वे इलाके हैं जहाँ पैदल चलने की जगह मुश्किल से मिलती है. छुट्टी के दिन रविवार को भी भीड़ थी, पर चल पा रहे थे.
शीश महल देखा जहाँ इंदौर के एलीट लोग बसाये गये थे. कांच मंदिर देखा, पुराने इलाकों की पुरानी हवेलियां देखीं, हेरिटेज होटल आँचल महल में चाय – कचोरी का भोग लगाया.
temple की फ़ोटो हो सकती है
पता चला कि कांच मंदिर से सटे ‘आँचल महल’ की फाइव स्टार डॉर्मेटरी में 600 रूपये में 24 घंटे रुका जा सकता है और महल के आलीशान कमरों का किराया भी मात्र दो हजार, तीन हजार और चार हजार ही है लेकिन यह केवल बाहर के लोगों के लिए है इंदौर का कोई भी व्यक्ति यहां नहीं रुक सकता!
सर सेठ हुकमचंद के नाम पर यह मार्ग है, जिन्हें भारत का कॉटन प्रिंस और मर्चेंट किंग कहा जाता था. वे ख्यात सटोरिये भी थे. अफीम और कपास के बाजार पर उनका अच्छा कंट्रोल रहा. वे अफीम (काला सोना) और कपास (सफेद सोना) के वैश्विक भाव तय करते थे। वे कमोडिटी बाजार में बड़े स्तर पर ‘सट्टा’ (Speculative trade) करते थे।
कहा जाता था कि ‘आज को भाव तो यो है, कल को भाव हुकमचंद जाने।’ उन्होंने चीन को भारी मात्रा में अफीम निर्यात करके मोटा मुनाफा कमाया था। वे भारत के पहले ऐसे व्यापारी थे जिनका प्रभाव वैश्विक स्टॉक एक्सचेंजों पर था।
उनके निधन पर न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज को दो दिनों के लिए बंद रखा गया था. वे जिस कंपनी के शेयर खरीदते थे, अन्य निवेशक भी उसी में पैसा लगाने लगते थे, जिससे कीमतों में भारी उछाल आता था और वे उसका लाभ उठाते थे। उनकी तीसरी पीढ़ी के सदस्यों से मेरा मामूली परिचय है.
Sheesh Mahal: Heritage of Indore - YouTube
वे कलकत्ता में जूट मिल (1917) स्थापित करने वाले पहले भारतीय थे। उन्होंने इंदौर में हुकमचंद मिल, राजकुमार मिल और कल्याणमल मिल जैसी बड़ी टेक्सटाइल मिलें स्थापित की थी.उनके पास सोने की परत वाली ‘रॉयल रोल्स’ कार थी और उन्होंने जैन मंदिरों (जैसे इंदौर का प्रसिद्ध कांच मंदिर) के निर्माण में करोड़ों खर्च किए। महात्मा गांधी ने ‘स्वदेशी आंदोलन’ का समर्थक होने के कारण उनकी मेजबानी में भोजन किया था. इंदौर होल्कर शासन में भी वे वैसे ही प्रिय रहे जैसे आजकल अडानी हैं.
मधुरम सेंडविच : इस यात्रा के दौरान कांच मंदिर के सामने मधुरम का 150 रुपये का फेमस सेंडविच खाया. कहते हैं कि यह दुकान बहुत फेमस है और इसका सेल एक महीने में करीब एक करोड़ का है! यहां हमेशा भीड़ रहती है और बारी के लिए तीस चालीस मिनट खड़े रहना आम है. संडे होने पर भी दस – बारह मिनट तो मुझे भी लगे. खाया तो मुझे यह ओवररेटेड लगा. पनीर के टुकड़े, मेयोनीज, सॉस, चटनी और भी न जाने क्या क्या था. न ढंग से बैठने की जगह, न मुफ़्त में साफ पीने का पानी. वाश बेसिन को वाश करने की ज़रूरत लगी.