
Aravalli Hills: अरावली पर्वत हम लोगों से कुछ कहना चाहता है
रंजन श्रीवास्तव
अरावली पर्वत हमसे कुछ कहना चाहता है. दशकों से अवैध खनन माफिया और अतिक्रमण का शिकार यह पर्वत श्रृंखला अभी तक राजस्थान के थार रेगिस्तान के क्षेत्र को आगे बढ़ने से रोके हुए है. देश के एक विशाल क्षेत्र और थार रेगिस्तान के बीच यह पर्वत श्रृंखला अडिग चट्टान की तरह लाखों सालों से खड़ी हुई है.
मानव सभ्यता, अगर इसे वाकई सभ्यता कहें तो, विश्व में हर जगह जंगलों, पहाड़ों, नदियों, झीलों और तालाबों को लील लेना चाहती है और लील रही है. आधुनिक विकास की परिभाषा में प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की भावना का कोई स्थान ही नहीं जान पड़ता.
अरावली को लेकर वर्तमान विवाद इसलिए है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई यूनिफॉर्म परिभाषा स्वीकार की है जिसके अनुसार अरावली हिल आसपास की जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊंची कोई भी भूमि रूप है जबकि अरावली रेंज वह है जहां दो या ज्यादा ऐसी हिल्स जो 500 मीटर के दायरे में हैं, उनके बीच की जमीन सहित.
अरावली पर्वत श्रृंखला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जो लगभग 2 अरब वर्ष पुरानी है. यह दुनिया की सबसे पुरानी फोल्ड माउंटेन सिस्टम में गिनी जाती है. यह श्रृंखला गुजरात से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई है, कुल लंबाई करीब 690-800 किलोमीटर है. यह उत्तर-पश्चिमी भारत की पर्यावरणीय ढाल है. अरावली दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व दिशा में फैली है. यह गुजरात के पालनपुर से शुरू होकर राजस्थान से गुजरती हुई हरियाणा और दिल्ली रिज तक पहुंचती है. इस पर्वत श्रृंखला का उच्चतम शिखर गुरु शिखर (माउंट आबू, राजस्थान) है जो समुद्री तल से 1722 मीटर ऊंचाई पर है.
जहां तक खनिज संपदा का सवाल है तो इस पर्वत में तांबा, जस्ता, सीसा, मार्बल, ग्रेनाइट आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. कहा जाता है कि ताज महल का संगमरमर भी मकराना (राजस्थान) से ले जाया गया था.
पर्यावरणविदों के अनुसार अरावली सिर्फ पहाड़ ही नहीं बल्कि उत्तर भारत की ‘लाइफलाइन’ है क्योंकि यह थार के रेत को इंडो-गैंजेटिक मैदानों जैसे दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में फैलने से रोकती है और यह भी मत है कि अगर यह टूट गई तो दिल्ली तक रेगिस्तानीकरण हो सकता है. इसके अतिरिक्त यह पर्वत श्रृंखला बारिश के पानी को सोखकर भूजल स्तर को ऊपर बनाए रखती है और कई नदियों जैसे चंबल, लूनी और साबरमती को यह जीवन प्रदान करती है. साथ ही इसके जंगल वाइल्डलाइफ कॉरिडोर की तरह काम करते हैं और हवा की गुणवत्ता सुधारते हैं. दिल्ली के लिए ‘ग्रीन लंग्स’ की तरह काम करती है, धूल भरी हवाओं को रोकती है और जाहिर है यह इस तरह प्रदूषण भी कम करती है.
अरावली की पहाड़ियों में संगमरमर, पत्थर और रेत के लिए अवैध खनन 1990 के दशक से बेतहाशा बढ़ा है. जंगल खत्म हो रहे हैं, भूजल नीचे जा रहा है और प्रदूषण बढ़ रहा है. जाहिर है इसके लिए किसी खास एक पार्टी की सरकार जिम्मेदार नहीं है चाहे वह सरकार केंद्र में हो या राज्य में, बल्कि सभी जिम्मेदार हैं.
बेतहाशा अवैध खनन पर सुप्रीम कोर्ट के तहत सेंट्रल एम्पावर्ड कमिटी ने हरियाणा-राजस्थान में खनन पर वर्ष 2002 में रोक लगा दी. 2009 में हरियाणा के कुछ जिलों में खनन पर पूरी तरह बैन लगा दिया गया. पर यह कहना कि इससे अवैध खनन रुक गया, गलत होगा.
यही कारण है कि केंद्र सरकार का स्टैंड है कि सुप्रीम कोर्ट के 20 नवंबर 2025 के फैसले से अरावली की सुरक्षा और मजबूत हुई है, न कि कमजोर.
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि नई परिभाषा (100 मीटर ऊंचाई वाली पहाड़ी और 500 मीटर के दायरे में रेंज) सिर्फ खनन नियमन के लिए है, न कि रियल एस्टेट या अन्य विकास के लिए. उनका यह भी कहना है कि अरावली के कुल क्षेत्र का 90% से ज्यादा हिस्सा अभी भी पूरी तरह सुरक्षित है और केवल 0.19% क्षेत्र (करीब 278 वर्ग किमी) में ही सख्त शर्तों के साथ खनन संभव है.
केंद्रीय मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया है कि कोई नई माइनिंग लीज नहीं दी जाएगी जब तक कि सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान पूरा नहीं होता.
पर पर्यावरणविदों का अपना तर्क है. उनका कहना है कि अरावली की 80-90% पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंची हैं. ये कम ऊंची पहाड़ियां भी महत्वपूर्ण हैं. यह ना सिर्फ थार के रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकती हैं बल्कि ये महत्वपूर्ण हैं भूजल और वन्यजीव को बचाने के लिए और साथ ही प्रदूषण को रोकने के लिए. उनका मानना है कि नई परिभाषा से ये सुरक्षा से बाहर हो जाएंगी, खनन बढ़ेगा.
यही वजह है कि सोशल मीडिया पर #SaveAravalli कैंपेन चलाया जा रहा है और सड़कों पर प्रदर्शन हो रहा है. राजस्थान और हरियाणा दोनों जगह ज्यादा विरोध देखने को मिल रहा है. कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने यहां तक कहा है कि इन नियमों से 90% अरावली नष्ट हो जाएगी.
विरोध का परिणाम आगे देखने को मिलेगा पर यह सत्य है कि पिछले कुछ दशकों में माइनिंग माफिया ने अवैध खनन रोकने के लिए कड़े नियमों और कानूनों के बावजूद भी देश में प्राकृतिक संपदा को बेतहाशा नुकसान पहुंचाया है. यह भी आम बात है कि जहां वैध खनन की मंजूरी है चाहे वे नदियां हों, जंगल हों या पहाड़ वहां भी माइनिंग माफिया अवैध खनन से प्राकृतिक संपदा को भारी नुकसान पहुंचाता है. इसलिए केंद्र सरकार की यह दलील कि नए नियमों से अवैध खनन रुकेगा एक लचर दलील लगती है.
खैर आगे जो भी हो यह सुखद संदेश है कि अरावली के बहाने देश में पर्यावरण को लेकर एक मुखर बहस शुरू हो गई है मानो अरावली पर्वत हमसे कुछ कहना चाहता हो. पर क्या हम इसे सुनना और समझना चाहेंगे?





