मद्रास हाई कोर्ट के सुझाव पर पूरा अमल होना ही चाहिए…

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मद्रास हाई कोर्ट के सुझाव पर पूरा अमल होना ही चाहिए…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

शायद यह बात सभी अभिभावकों के मन में होगी और बच्चों में सोशल मीडिया एडिक्शन के बीच मानसिक और स्वास्थ्य जनित समस्याओं को देखते हुए शायद अबयह अनिवार्य हो गया है कि सरकार के स्तर पर बच्चों को सोशल मीडिया देखने पर पाबंदी लगाई जाए। ऐसे में मद्रास हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस संदर्भ में सुझाव देकर एक जिम्मेदारी भरा कदम उठाया है।

मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि वह ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने से जुड़ा कानून लाने की संभावना पर विचार करे। अदालत ने यह टिप्पणी बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा और इंटरनेट पर अश्लील सामग्री की आसान उपलब्धता को लेकर जताई गई चिंता के बीच की है। न्यायमूर्ति जी. जयचंद्रन और न्यायमूर्ति के. के. रामकृष्णन की पीठ ने यह टिप्पणी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की। याचिका में इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को पैरेंटल कंट्रोल या ‘पैरेंटल विंडो’ सेवा उपलब्ध कराने के निर्देश देने की मांग की गई थी, ताकि बच्चों को पोर्नोग्राफिक कंटेंट से बचाया जा सके। यह जनहित याचिका मदुरै जिले के एस. विजयकुमार ने वर्ष 2018 में दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि अश्लील सामग्री इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध है और छोटे बच्चे भी इसे बिना किसी रोक-टोक के देख पा रहे हैं।

अदालत ने माना कि इंटरनेट का उपयोग करने वाले बच्चे बेहद संवेदनशील और असुरक्षित स्थिति में हैं। ऐसे में माता-पिता की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। पीठ ने कहा, “जब तक इस तरह का कानून नहीं बनता, तब तक संबंधित प्राधिकरणों को जागरूकता अभियानों को और तेज करना चाहिए और सभी उपलब्ध माध्यमों से संवेदनशील वर्ग तक संदेश पहुंचाना चाहिए।” हालांकि हाईकोर्ट ने सात साल बाद यह सुझाव दिया है लेकिन देर आए दुरुस्त आए की तर्ज पर मुद्रास हाईकोर्ट का यह सुझाव साधुवाद का हकदार है। जब जनहित याचिका दायर की गई थी तब बच्चों की मानसिक स्थिति पर दुष्प्रभाव की शुरुआत हुई थी और अब सात साल बाद बच्चे सोशल मीडिया की लत के चलते मानसिक दुर्दशा का शिकार हो चुके हैं। यह जनहित याचिका मदुरै जिले के एस.विजयकुमार ने वर्ष 2018 में दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि अश्लील सामग्री इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध है और छोटे बच्चे भी इसे बिना किसी रोक-टोक के देख पा रहे हैं। याचिकाकर्ता ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और तमिलनाडु बाल अधिकार संरक्षण आयोग से आग्रह किया था कि वे अपने वैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए सर्विस प्रोवाइडर्स को पैरेंटल कंट्रोल सिस्टम लागू करने और आम लोगों में जागरूकता फैलाने के निर्देश दें।याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की सरकार द्वारा पारित उस कानून का हवाला दिया, जिसमें 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के इंटरनेट और सोशल मीडिया इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत में भी ऐसा ही कानून बनाया जा सकता है। इस पर अदालत ने सहमति जताई।

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि अंततः किसी सामग्री तक पहुंचना या उससे बचना व्यक्ति का अधिकार और चुनाव है, लेकिन बच्चों के मामले में समाज और सरकार की जिम्मेदारी कहीं अधिक है। अंत में अदालत ने उम्मीद जताई कि केंद्र और राज्य स्तर के बाल अधिकार संरक्षण आयोग इस दिशा में एक ठोस कार्ययोजना तैयार करेंगे और उसे पूरी गंभीरता से लागू करेंगे। इसके साथ ही अदालत ने जनहित याचिका का निपटारा कर दिया।

केंद्र सरकार को अब मद्रास हाईकोर्ट के सुझाव पर पूरे देश के लिए कानून बनाकर अमल कर देना चाहिए। भारतीय सेना में तैनात जवानों के सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने पर पाबंदी थी। सेना ने अब अपनी सख्त सोशल मीडिया पॉलिसी में बदलाव किया है। सेना ने अपनी सोशल मीडिया पॉलिसी में बदलाव करते हुए जवानों को इंस्टाग्राम का उपयोग करने की अनुमति दे दी है। सेना ने जवानों को इंस्टाग्राम का उपयोग केवल देखने और निगरानी के उद्देश्य से करने की अनुमति दे दी है। मीडिया पॉलिसी को लेकर सेना ने कहा है कि इंस्टाग्राम को औपचारिक रूप से सीमित उपयोग वाले सोशल मीडिया ऐप की लिस्ट में शामिल कर लिया गया है। यानी सरकार चाहे तो राष्ट्रहित में हर फैसला लेने को स्वतंत्र है। ऐसे में बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाकर सरकार राष्ट्रहित का सबसे बड़ा काम करने का श्रेय ले सकती है। उम्मीद यही है कि मद्रास हाई कोर्ट की उम्मीदों पर केंद्र सरकार खरी उतरेगी…।

 

 

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।