रविवारीय गपशप : उस दिन गोपनीयता और जन सेवक का द्वंद्व मेरे मन में हुआ समाप्त

97

रविवारीय गपशप : उस दिन गोपनीयता और जन सेवक का द्वंद्व मेरे मन में हुआ समाप्त

आनंद शर्मा

ऐसा नहीं है कि प्रशासनिक अफसर भर्ती के समय अकादमी में ही सब कुछ सीख लेते हैं , कई सबक जिंदगी के अनुभवों के साथ आते हैं । मैं परिवहन विभाग में उपायुक्त प्रशासन के पद पर पदस्थ था और हमारे आयुक्त हुआ करते थे श्री एनके त्रिपाठी । एक बार हम एक बैठक में भाग लेने भोपाल आये, जिसमें विभाग के मंत्री जी और प्रमुख सचिव के साथ यात्रीवाहनों पर विभिन्न मार्गों में लगने वाले करों पर चर्चा हुई । इस बात पर सहमति बनी कि यात्री बसों पर राष्ट्रीयकृत राजमार्गों और ग़ैर राष्ट्रीयकृत मार्गों के लिए अलग अलग कर लगने चाहिए , साथ ही सुदूर ग्रामीण मार्गों पर बहुत कम कर लगाना चाहिए , ताकि वाहन मालिक ऐसे मार्गों पर वाहन चलाने के लिए प्रोत्साहित हों । बैठक के बाद हम अरेरा कॉलोनी स्थित कैंप ऑफिस में बाक़ी के काम निपटाने आ गए । मैं दूसरे कमरे में इसी प्रस्ताव को लेकर केबिनेट के लिए ड्राफ्ट तैयार कर रहा था कि मैंने सुना पास के अपने कक्ष में बैठ परिवहन आयुक्त किसी पत्रकार से नई टैक्स प्रणाली और इसके प्रस्तावित संशोधनों पर चर्चा कर रहे थे । मैंने तो अब तक यही सीखा था , कि जब तक निर्णय न हो सब कुछ गोपनीय रखा जाता है , पर त्रिपाठी साहब तो इस विषय को अखबार के लिए चर्चा कर रहे थे । मुझसे रहा न गया सो मैं उनके कमरे में गया और उनसे पूछने लगा कि “ सर अभी तो कुछ हुआ ही नहीं है , तो इसे अख़बार में देना उचित होगा क्या “? त्रिपाठी साहब मुस्कुरा कर बोले हम ये सब जिनके लिए कर रहे हैं , उन्हें बताने में क्या दिक्कत है , और कुछ ग़लत होगा तो जनता का रिएक्शन भी हमें पता लग जाएगा , तब तो ये और भी अच्छा होगा । उसी दिन से गोपनीयता और जनसेवक का द्वन्द मेरे मन से समाप्त हो गया ।

अपनी शासकीय सेवा के उत्तर काल में मैं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी का सचिव पदस्थ हुआ , मेरे प्रमुख सचिव थे श्री मनीष रस्तोगी । एक बार मैं अपने गृह नगर कटनी गया तो मेरे एक मित्र की बहन , जिसे मैं भी अपनी छोटी बहन के सदृश मानता था , का फ़ोन आया और उसने अनुरोध किया कि उसके देवर किसी काम से मुझसे मिलना चाहते हैं । मैंने उन्हें घर बुलवा लिया और पूछा क्या चाहते हैं ? देवर भाई बोले कि उन्होंने किसी बंदे से जिसे शासन ने माइनिंग लीज़ दे रखी थी , करार पे सब-लीज़ ले रखी थी और अब जब काम शुरू हो गया है तो लीज़होल्डर उसी जगह पर किसी तीसरे आदमी को काम देने का करार कर रहा है , अतः कलेक्टर से कह कर कुछ मदद करा दें । मैंने पूछा क्या ये करार सरकार की नज़र में लाकर किया है? उसने कहा अरे नहीं भैया उसका कोई प्रावधान थोड़ी है , लीज़ तो उस पहले आदमी को मिली है हम तो बस ऊपर ही ऊपर काम कर रहे हैं । आप तो कलेक्टर को कह दो तो वो माइनिंग अफसर कों कह देंगे कि लीज़होल्डर को डपट दें और हमें ही काम करने दें तो हमारा काम हो जायेगा । मैंने उन्हें तो जैसे तैसे समझा कर विदा किया कि ऐसे मसले मिल बैठ कर सुलझाएँ पर भोपाल लौटते समय रास्ते में विचार करता रहा कि इस तरह के तो प्रदेश में बहुत मामले होंगे । माइनिंग लीज़ लेने वाले जिस क़ीमत को सरकार को लीज़ के बदले देते हैं , उससे कई गुना तो उसे सब लीज़ करके कमा लेते हैं , तो इसके नियम-क़ानून में ही ऐसे प्रावधान होने चाहिये , जिससे लोगों को भी सुविधा हो और सरकार को भी आमदनी होती रहे । मंथन जैसी बैठकों में शासन की आमदनी बढ़ाने के इस तरह के सुझाव कई अफसर देते भी रहते थे तो मुझे लगा मैं तो इस समय स्वयं मुख्यमंत्री जी के कार्यालय में हूँ तो क्यों ना इस सम्बंध में नए नियम बनाने में ही अपना योगदान दे दूँ ? पर कुछ भी करने के पहले प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री कार्यालय से पूछना जरूरी था , सो लौटते ही दूसरे दिन मैंने हमारे प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी जी को ये घटना बताते हुए उन्हें अपना मंतव्य व्यक्त किया कि सीएम साहब को निवेदन कर इस बारे में प्रावधान करने का विचार किया जा सकता है । मनीष रस्तोगी ध्यान से सुनते रहे फिर बोले “ शर्मा जी हमें इसके बीच नहीं पड़ना चाहिए , वे बिजनेस कर रहे हैं , और बिजनेस के बीच हम जितने नियम कानून घुसेड़ेंगे उतने ही भ्रष्टाचार के अवसर बढ़ेंगे , और सरकारी तंत्र में ग़ैर वाजिब फ़ायदा उठाने वाले लोग इसे लोगों को परेशान करने का ज़रिया बना लेंगे । सरकारें व्यवसाय को जितनी स्वतंत्रता से चलने देंगीं उतना ही जनसामान्य की परेशानी कम होगी इसलिये इसे इसी तरह परस्पर बैलेंस से चलने देना चाहिए । मुझे लगा कितना साफ़ विचार है , शासन करने की सच्ची अवधारणा तो यही है ।