BMC Elections : क्या दोनों बेटियों को जीता पाएंगे अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली?

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BMC Elections : क्या दोनों बेटियों को जीता पाएंगे अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली?

Ramesh Soni

Mumbai : महाराष्ट्र के मुंबई के हाईवोल्टेज बीएमसी चुनावों के विजेताओं का फैसला 16 जनवरी को होगा, लेकिन कभी मुंबई में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को खून के आंसू रोने को मजबूर करने वाले अरुण गवली अपनी बेटियों को जिता पाएंगे?? इस बात पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। इस बार के बीएमसी चुनावों में अरुण गवली अपनी बेटियों के साथ दिख रहें हैं, क्योंकि वह अब जेल में नहीं हैं, बेल या पैरोल पर नहीं बल्कि सजा पूरी करके रिहा हो चुके हैं।बता दें कि देश की आर्थिक राजधानी और सपनों के शहर मुंबई करीब 9 साल बाद चुनाव हो रहें हैं। मुंबई बीएमसी के चुनावों को मेयर की कुर्सी किसे मिलेगी? ठाकरे भाईयों का क्या होगा के बाद सबकी नजरें अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली और उनकी दोनों बेटियों पर टिकीं हैं। अंडरवर्ल्ड डॉन से बॉलीवुड के डैडी के सफर तय करने वाले अरुण गवली बेटियों को जिताने के लिए चुनावी मुकाबले में मुस्तेदी से सक्रिय हो गए हैं। अरुण गवली की सक्रियता के बीच चर्चा हैं कि जिस डॉन ने दगड़ी चाल में रहते हुए दाऊद इब्राहिम का जीना हराम कर दिया था, क्या वे सजा पूरी करने के बाद सबसे परीक्षा सियासी परीक्षा में पास हो पाएंगे???

 

 

आपको बता दें रहें हैं कि अरुण गवली मुंबई अंडरवर्ल्ड के ऐसे गैंगस्टर हैं जिन्हें बाल ठाकरे का खुला समर्थन मिला था। 1995 की एक सभा में बाल ठाकरे ने खुलकर कहा था कि अगर उनके पास दाऊद हैं तो हमारे पास अरुण गवली हैं। ठाकरे का यह बयान गैंगस्टर के साए में रही मुंबई में गवली की अहमियत बताने के लिए काफी था। हालांकि जब 1995 में बाल ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना सत्ता में आई थी तो अरुण गवली के रास्ते और बाल ठाकरे के बीच दूर आ गई थी। इसकी वजह बने थे बाल ठाकरे के करीबी जयंत जाधव, क्योंकि गवली के शूटरों ने जयंत जाधव की हत्या करवा दी थी। अब शिवसेना की तर्ज पर बनाई अखिल भारतीय सेना!

इसके बाद ही अरुण गवली के वर्चस्व को चुनाैती मिली तो गवली ने राजनीति में एंट्री ली। शिवसेना की तर्ज पर अरुण गवली ने अखिल भारतीय सेना (अभासे) का गठन किया। करीब तीन दशक बाद जिस पार्टी के गवली विधायक बने। अब उसी पार्टी से उनकी बेटियां चुनाव मैदान में उतरीं है। मुंबई के चुनाव में अरुण गवली की एंट्री के बाद सबकी नजरें अब इसी बात टिकी हैं कि क्या डैडी अपनी बेटियों को जिता पाए थे। क्योंकि ही ऐसे अरुण गवली को आज भी दाऊद इब्राहिम पंगा और फिर बाद के सालों में बाल ठाकरे से टकराने के लिए जाना जाता है। यही वजह थी जब सितंबर, 2025 गवली जेल से छूट कर मुंबई पहुंचे थे तो 17 साल वापसी पर फूल बरसे थे।

 

जानिए अरुण गवली का क्राइम रिकॉर्ड!

अरुण गवली ने जुर्म की दुनिया में कदम 1980 के दशक में रखा। रामा नाम के गैंगस्टर के जरिए गवली की मुलाकात दाऊद से हुई। गवली के जिंदगी में तब तगड़ा टि्वस्ट आया जब 1988 में दोस्त रामा नाइक की एक गैंगवार में हत्या कर दी गई। गवली को दाऊद इब्राहिम पर शक हुआ। इसके बाद गवली ने दाऊद का साथ छोड़कर अपना गैंग खड़ा किया। दाऊद और गवली गैंग में कई बार टकराव हुआ। आखिर में 26 जुलाई 1992 को गवली के 4 शूटरों ने दाऊद की बड़ी बहन हसीना पारकर के पति इब्राहिम पारकर को मार दिया था उसके बाद अरुण गवली का खौफ पूरी मुंबई में हो गया। कहते हैं इसके बाद दाऊद बुरी तरह टूट गया था।

 

अरुण गवली की बेटी गीता 3 बार रह चुकी पार्षद!

बता दें कि अरुण गवली बेटी गीता गवली पूर्व पार्षद हैं। वह बीएमसी के वार्ड संख्या 212 से चुनाव मैदान में उतरी हैं। जब योगिता गवली ने वार्ड 207 से नामांकन किया है। दोनों अखिल भारतीय सेना की कैंडिडेड हैं। अरुण गवली 2004 में विधानसभा चुनाव जीतकर भायखला से विधायक बने थे। गवली ने बीजेपी-शिवसेना की जगह आई कांग्रेस एनसीपी सरकार को समर्थन नहीं दिया। 5 साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले गवली को कलाकर जामसांडेकर नाम के शिवसैनिक की हत्या के जुर्म में अरेस्ट कर लिया गया था और इसमें उम्रकैद की सजा हुई थी। हालांकि सलाखों के पीछे रहते हुए गवली ने बेटी गीता को लांच किया और गीता 2007 में जीतकर पार्षद बनी। फिर 2 चुनाव और लगातार जीते। इस बार डैडी अरुण गवली ने दूसरी बेटी योगिता को भी उतार दिया हैं। ऐसे में मुंबई में चुनावी माहौल गरमा गया है। आपको बता दें कि केंडिडेट गीता गवली वार्ड क्रमांक 212 और योगिता गवली वार्ड क्रमांक 207 से मैदान में हैं, अब देखना है चुनाव के नतीजों को……