तिरंगे का महत्व संकट के समय समझ आया, किसी ने भी हमारी बस को चेक नहीं किया

यूक्रेन से लौटे चापड़ा के छात्र ऋषभ यादव ने साझा किया अपना अनुभव

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कुंवर पुष्पराजसिंह की रिपोर्ट

बागली। भारत का तिरंगा अपने आप में एक बहुत बड़ी शख्सियत है यह अनुभव हमने युद्ध ग्रस्त यूक्रेन में उस समय महसूस किया जब हम तिरंगे की छत्रछाया में यूक्रेन के पड़ोसी देश हंगरी की बॉर्डर में बस की सहायता से पहुंचे तो किसी ने भी हमारी बस को चेक नहीं किया। यह बातें और अनुभव युद्धग्रस्त यूक्रेन के डेनप्रो शहर में मेडिकल की पढ़ाई करे चापड़ा निवासी पंचायत सचिव किशोर यादव के पुत्र ऋषभ यादव ने हंगरी होकर अपने घर लौटने पर साझा किए। उसने बताया कि हमारी बस में 42 छात्र थे, जिसमें 8 विद्यार्थी साऊदी अरेबिया के भी शामिल थे। अरेबियन छात्रों ने भी कहा था, भारतीय झंडे के कारण हमें भी किसी ने चेक नहीं किया। दूसरे देश के लोगों को तो हर कहीं चेक कर रहे थे।। ऋषभ ने बताया में पिछले 6 साल से यूक्रेन में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा था, इस वर्ष मई में मेरी पढ़ाई पूरी होकर मुझे डिग्री मिल जाती, लेकिन रूस-युक्रेन युद्ध होने से अपने वतन लौटना पड़ा है। 1 मार्च को डेनोप्रो से हम 50 स्टूडेंट हंगरी बॉर्डर की ओर एक बस से निकले थे। 26 घंटे की यात्रा के बाद यूक्रेन बॉर्डर पर पहुंचे वहां से ट्रेन के द्वारा हंगरी बॉर्डर के लिए निकले, हंगरी पहुंचने के बाद बूडापेस्ट में भारत सरकार की ओर से होटल की व्यवस्था की गई थी। यहां 3 दिन तक रुके, फिर प्लेन से दिल्ली आया और दिल्ली से इंदौर तक की सरकार के द्वारा ही सारी सुविधा दी गई थी। केंद्रीय गवर्नमेंट ने जहां हमारी सबसे अच्छी मदद की वहीं प्रदेश की सरकार ने भी दिल्ली में उतरते ही इंदौर के लिए टिकट बुक करवाई और घर तक भिजवाया। ऋषभ का ग्रामीणों ने स्वागत कर मिठाई वितरित की। इस अवसर पर भाजपा नेता विनोद बाबेल, कमलसिंह सेंधव, सुरेश दास वैष्णव, अजयसिंह सेंधव, किशोर यादव आदि उपस्थित थे।

नयापुरा निवासी छात्र भी लौटा और बताया कि सैनिकों ने दुर्व्यवहार किया

बागली अनुभाग के ग्राम नयापुरा के विकास राणा भी सकुशल अपने घर लौट चुके हैं। उन्होंने बताया कि भारत सरकार का जितना आभार व्यक्त करें उतना कम है। हम उनकी बदौलत ही घर सकुशल लौट पाए हैं। वरना तो यूक्रेन के सैनिकों ने तो मारपीट भी की। विकास ने बताया कि हम लोग यूक्रेन और पोलैंड के बीच चेकपोस्ट पर पहुंचे तो यूक्रेन के सैनिकों ने हमें बॉर्डर पर रोक दिया। जबकि आसपास के देशों के छात्र निकल रहे थे। हमने दो रातें वहीं काटी और मौके का फायदा उठाते हुए धक्का-मुक्की के मध्य हम दूसरी चेक पोस्ट पर पहुंचे। लेकिन वहां पर तैनात सैनिकों ने हमें चेक पोस्ट पार नहीं करने दिया। सैनिक बहुत ही ख़राब व्यवहार कर रहे थे।उन्होंने हमारे साथ मारपीट भी की। कुछ लोगों को करंट भी लगाया। हमने दो रातें माइनस 8 डिग्री टेंपरेचर के बीच खुले आसमान के नीचे बिताई। फिर पता चला कि पोलैंड की दूसरी बॉर्डर उदोमरच भी खुली है। तो हम फिर से 40 किमी के सफर पर पैदल ही निकल पड़े। टैक्सी बुलाने का प्रयास किया तो बड़ी मुश्किल से टैक्सी मिल सकी जिसकी सहायता से हम केवल 2 घंटे में पोलैंड बॉर्डर पर पहुंच गए। जहां पर इंडियन एंबेसडर मिले। रात को 8:30 पर हम प्लेन में बैठे और 11 बजे दिल्ली पहुंच गए। वहां से इंदौर भी सरकारी मदद से ही पहुंचे।

चित्र में चापड़ा में यूक्रेन से लौटे छात्र का स्वागत करते ग्रामीण