बेरहम मतदाता-धराशायी नेता

दो साल के कोरोना संक्रमण के नियंत्रण बाद इस बार होली और फ़ाग के त्यौहार में जोश है, उत्साह है। लोगों में, भाजपा, आप व अन्य दलों के विजयी विधायकों के समर्थकों में यह ख़ासा देखा जा रहा है।

इसके पीछे कमोबेश शांतिपूर्ण ढंग से निपटे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। देश के सबसे बड़े प्रान्त उत्तरप्रदेश और छोटे राज्य गोआ सहित उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर में नई सरकार गठन की तैयारी है।

लोकतांत्रिक व्यवस्था में इन चुनावों में पुनः मतदाताओं का विवेक और शक्ति उजागर हुई है। सभी राज्यों में औसत मतदान ही हुआ। जबकि 35 से 40 प्रतिशत लोगों का मत नहीं पड़ा।

इसके अन्यान्य कारण रहे होंगे? जबकि आमजन का यह सबसे बड़ा अधिकार और निर्णायक हथियार है।

इन विधानसभा चुनावों ने मतदाताओं की ताकत को रेखांकित किया है कि प्रजातंत्र में निर्णय उसके हाथ है। कई दम्भी, अहंकारी, अपराधी, स्थापित, उद्योगपति, नेता, माफिया, बड़बोले, दागी उम्मीदवारों को धूल चटाई।

सालों से पदपर काबिज़, क्षेत्र को जागीर समझने वालों, मंत्री, उप मुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री, पार्टी नेता, दलबदलू सहित कई को धराशायी कर दिया। कहीं कहीं तो इतने कांटे की टक्कर रही कि फैसला बहुत कम वोटों से हुआ जबकि कई लाखों मतों से जीते|

उत्तरप्रदेश के साहिबाबाद से भाजपा प्रत्याशी सुनील कुमार शर्मा रेकॉर्ड 2 लाख 15 हजार मतों से विजयी रहे। यह देश भर में विधानसभा चुनावों में जीत का आल टाइम रिकॉर्ड है।

बड़बोले नेता, क्रिकेटर रहे नवजोतसिंह सिद्धु को 50 वर्षीय सामान्य महिला जो सेनेटरी नैपकिन के पुनर्पयोग का प्रमोशन कर जागरण करती हैं ने हराया।

वहीं पंजाब मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को सामान्य से मोबाइल रिपेयरिंग शॉप वाले लाभ सिंह उगोके ने शिकस्त दी।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, उत्तरप्रदेश उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री हरीश रावत, अकाली दल नेता वयोवृद्ध प्रकाशसिंह बादल, पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेन्दर कोर भट्टल, कैप्टन अमरिंदर सिंह, उत्तरप्रदेश के मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, पंजाबी मुख्यमंत्री रहे सुखवीर सिंह बादल, गोआ पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर पुत्र उत्पल पर्रिकर सहित कई नाम हैं जो मतदाताओं का विश्वास नहीं जीत सके और चुनाव हार गए। कई स्थापित नेताओं को पहली बार हार का मुंह देखना पड़ा है।

यह सिध्द करता है कि नीतिनिर्माताओं, कर्णधारों और सत्ता पर काबिज़ वर्गों को अवाम की खुशहाली और जनकल्याण कार्यों को सर्वोपरि रखना होगा।

मिथक टूट रहे हैं , समीकरण बदल रहे हैं , जागरूकता बढ़ रही है, धारणाओं को झुठलाया जा रहा है|

मतदाताओं के विवेक और शक्ति को कम नहीं आंका जा सकता।

पंजाब में आम आदमी पार्टी की बड़ी विजय बदलाव का संकेत है। एकतरफ़ा जीत महत्त्वपूर्ण है। दिल्ली प्रदेश में भी उसकी एकतरफ़ा विजय थी। पंजाब में आंधी की तरह जीत दर्ज़ की। उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, गोआ में भाजपा ने सत्ता प्राप्त की।

इन चुनाव परिणामों ने देश के मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा आदि अन्य राज्यों के लिए संदेश भी दिया है और संकेत भी।

कई मंत्री, सांसद, विधायक आदि लगातार चुनाव लड़ रहे हैं। कई अच्छा कार्य कर रहे हैं तो कई नेतृत्व के भरोसे वैतरणी पार कर चुने जा रहे हैं? बदले परिदृश्यों में मतदाता मौन हो सकता है? मुखर हो सकता है?

पर वोट की चोट पर माफ़ नहीं कर सकता।

कितना बेरहम हो सकता है यह प्रमाणित किया है इन चुनावों में।

कई नेताओं की गलतफहमी दूर करदी है इन चुनावों ने।

समझा जाता है कि सभी प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा परिणामों की समीक्षा होगी। मंथन होगा, रणनीति बनेगी। भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस, शिवसेना, आप, लोकदल आदि को समझकर आगामी कार्ययोजना तय करना होगी।

मतदाताओं की ताकत को महत्व प्रदान कर विकास और निर्माण योजनाओं पर काम करना होगा।

वरना मध्यप्रदेश में 2018 में सरकार बदल दी। राजस्थान में बारी बारी से कांग्रेस, भाजपा शासन कर रही, गुजरात में बड़ी मुश्किल से भाजपा जीती, कर्नाटक में संकट बना हुआ है, महाराष्ट्र में अस्थिरता दिखती है, नई दस्तक प्रभावी आगाज़ आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के बाद पंजाब में दे दिया है।

एक प्रश्न यह उठता है कि जब 60-65 फ़ीसदी मतदान हुआ है और विजयी दल को लगभग 40-42 प्रतिशत मत मिले हैं तो सबकी सरकार कहां हुई?

यह तो अल्पमत ही होगा?

मतदान से दूरी लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। निर्वाचन आयोग, राजनीतिक दलों, स्वयं सेवी संगठनों, सामाजिक और सार्वजनिक, धार्मिक क्षेत्र के लोगों को अनिवार्य मतदान के लिए जन जागरूकता अभियान चला कर काम करना होगा। प्रयास और बढ़ाने होंगे।

राष्ट्रीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अच्छा होगा यदि सैनिक शिक्षा और मतदान प्रत्येक के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए।