बुद्धिजीवी, सत्ताधीश और धुआँ

595

पूरे भारत की तरह मेरे शहर के बुद्धिजीवी भी बहुत प्रखर है सभी समस्याओं पर अपने अलग अलग रूपों में रहते हुए अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं । हमारे सत्ताधारी भी पूरे समाज को बदल देने के लिए कमर कसे हुए है और इसके लिए तरह तरह के बोर्ड और कॉरपोरेशन बनाकर जनता की समस्याओं को हल कर रहे हैं। परन्तु उनका पराक्रम मानव जनित धुएँ के समक्ष असहाय है।

प्रति वर्ष के अनुसार इस वर्ष भी भोपाल में वृक्षों ने अपने पत्तों को गिराना प्रारंभ कर दिया है। इन पत्तों को नगर निगम के सफ़ाई कर्मी आप पार्टी के चुनाव चिन्ह से एक स्थान पर एकत्र करते हैं।पॉश कॉलोनी में कुछ निजी सफाईकर्मी भी यही काम करते हैं।प्रातः शुभ बेला में वे इन पत्तों के ढेरों में होलिका दहन की संभावनाएँ देखते हैं और इन्हें अग्नि को समर्पित कर देते हैं। प्रात: की शीतल हवा में धुआँ नीचे-नीचे, धीरे- धीरे फ़ैल कर छोटी बड़ी मात्रा में सबके फेफड़ों में प्रवेश कर जाता है।

जहाँ तक मेरी जानकारी है नगर निगम के नियमों के अंतर्गत कोई भी पत्ते या कूड़ा करकट जलाने की अनुमति नहीं है, परन्तु यह संभवतः नगर निगम पर लागू नहीं है। नगर निगम को ज्ञात नहीं है कि ये पत्तों के ढेर प्रकृति की सम्पदा है जिसे वह सहज ही पुनः अपने पोषण के लिए उपयोग कर लेती है।

आज मैं भोपाल शहर के नागरिकों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बनाए गए एकांत पार्क में जब प्रविष्ट हुआ तब वहाँ धुएं के बादलों के बीच ब्रिस्क वॉक करने के लिए बाध्य हो गया ।सत्ता के सूत्रधारों के निवास चार इमली की तलहटी में स्थित पूरे क्षेत्र में धुआँ ही धुआँ था। ये अपने आप में कोई अनोखी घटना नहीं है क्योंकि ये सभी पाश कॉलोनी से लेकर शहर की झुग्गियों तक महीनों तक यही होता रहता है।पंजाब की पराली पर घोर आपत्ति करने वाले बुद्धिजीवी अपनी कॉलोनी में उठते हुए धुएं के प्रति निर्विकार भाव से तटस्थ बने रहते है।यदि हमारा संवेदनशील नगर निगम पत्ते और प्लास्टिक जलाने पर अड़ा हुआ है तो वे कृपया भरी दोपहर में ऐसा करे ताकि धुआँ धूप की गर्म हवा में सीधे ऊपर जा सके।ऐसा करने के लिए वैज्ञानिकों के विशिष्ट अध्ययन दल की आवश्यकता नहीं है।

भारत को सभी के लिए शौचालय की आवश्यकता एवं खुले में शौच की प्रथा बंद करने के लिए मोदी की प्रतीक्षा करनी पड़ी। अब संभवतः पत्ता जलाने की प्रथा बंद करने के लिए भी उनकी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।वैसे प्लास्टिक और कचरा जलाना भारत की अन्य अनेक जटिल समस्याओं में से बहुत ही साधारण समस्या है और इस पर विशेष ध्यान देने से देश के कर्णधारों की ऊर्जा का अनावश्यक ह्रास होगा।