MP BJP’s new organization general secretary : हितानंद शर्मा में कुछ ऐसा है, जो सुहास भगत से अलग!

वे ज्यादा सहज, मिलनसार और संगठन में संवाद बनाए रखने के पक्षधर

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भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश भाजपा के सह संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा को सुहास भगत की जगह प्रदेश भाजपा का संगठन महामंत्री नियुक्त कर दिया। सुहास भगत की संघ के वापसी की घोषणा के साथ ही इस बात की संभावना भी व्यक्त की गई थी। क्योंकि, चुनाव के डेढ़ साल पहले भाजपा कोई नया प्रयोग नहीं करना चाहती थी, इसलिए हितानंद शर्मा को ये जिम्मेदारी देना सही भी है। सुहास भगत के साथ करीब डेढ़ साल से काम करते हुए, वे संगठन की तासीर को समझ भी चुके हैं। उन्हें सितम्बर 2020 को सह संगठन महामंत्री बनाया गया था। हितानंद शर्मा की नियुक्ति को भाजपा के ‘मिशन 2023’ से जोड़कर देखा जा रहा है। उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान हितानंद शर्मा को वहां जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने वहां चुनाव को काफी करीब से देखा है। अब उसी तर्ज पर वे मध्य प्रदेश में भी भाजपा को जिताने की तैयारी में है। शायद इसीलिए हितानंद शर्मा को ये दायित्व सौंपा गया है।

सुहास भगत की संघ में वापसी के साथ ही इस बात के कयास लगाए जाने लगे थे कि संघ से किसी नए व्यक्ति को ये जिम्मेदारी देने के बजाए, हितानंद शर्मा को ये पद सौंपा जा सकता है। क्योंकि, वे सहयोगी के रूप में सुहास भगत के साथ काम कर चुके हैं और संगठन में उनके संबंध भी बेहतर हैं। भाजपा के ‘मिशन 2023’ के लिए यदि भाजपा में यदि किसी को नया संगठन महामंत्री बनाया जाता तो मुश्किल थी। क्योंकि, विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कुछ सख्त फैसले भी लेना पड़ सकते हैं और किसी नए व्यक्ति के लिए यह आसान नहीं होता! प्रदेश भाजपा संगठन के पदाधिकारियों को समझने में भी नए व्यक्ति को ज्यादा समय नहीं मिलता। विधानसभा चुनाव में भाजपा कोई नया जोखिम नहीं लेना चाहती थी, इसलिए सह महामंत्री हितानंद शर्मा को यह जिम्मेदारी सौंपना सही फैसला है।

भाजपा संगठन में हितानंद शर्मा को नजदीक से समझने वालों का मानना है कि सुहास भगत के मुकाबले वे ज्यादा सहज और मिलनसार हैं। उनके साथ संवादहीनता जैसी समस्या भी नहीं है, जो सुहास भगत के साथ थी। भगत तो कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करते थे और मिलने से बचने की कोशिश करते! जबकि, हितानंद के साथ ये समस्या नहीं है। सह संगठन महामंत्री होते हुए भी वे सबसे खुलकर मिलते और सबकी बात सुनते रहे हैं! उनकी यही सकारात्मकता कार्यकुशलता अब उनकी जिम्मेदारी में कामकाज का आधार बनेगी।

हितानंद शर्मा को 27 सीटों के उपचुनाव से पहले प्रदेश संगठन में ये जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इससे पहले वे आरएसएस के सहयोगी संगठन विद्या भारती में प्रांतीय संगठन मंत्री के तौर पर कार्य कर रहे थे। हितानंद मूलतः संघ के प्रचारक हैं और आरएसएस के कई अनुषांगिक संगठनों में रह चुके हैं। उन्हें प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत के सहयोगी के तौर पर लाया गया था। हितानंद शर्मा लम्बे समय से संघ से जुड़े रहे हैं। उन्हें संगठन चलाने में माहिर माना जाता है। उन्हें 27 विधानसभा सीटों के उपचुनाव से पहले लाया गया था, जो उनके लिए परीक्षा की घड़ी था।

27 सीटों के उपचुनाव से पहले हितानंद शर्मा को भाजपा का सह संगठन मंत्री बनाने का कारण यह भी था कि उन्होंने चंबल और ग्वालियर क्षेत्र में लंबे समय तक आरएसएस के अलग-अलग अनुषांगिक संगठनों में काम किया है। वे वहां के माहौल और तासीर से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। उपचुनाव की 27 सीटों में से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग में आती थी। ऐसे में इन चुनाव में भी हितानंद का फायदा भारतीय जनता पार्टी को लेना चाहा था, जो सफल रहा।

भाजपा के अंदरखाने की जानकारियां बताती है कि हितानंद शर्मा को जब लाया गया था, तब सबसे बड़ा मकसद पार्टी के भीतर उठने वाले असंतोष को नियंत्रित करना था। इस नजरिए से उपचुनाव से लेकर अभी तक के कार्यकाल में हितानंद अपने लक्ष्य में सफल रहे हैं। उनके आने के बाद से मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के अंदर का असंतोष न तो उभरकर बाहर आया और न मीडिया में शीर्षक बना! उन्हें उन्हें संगठन का माहिर खिलाड़ी माना जाता है। लेकिन, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी को तैयार करना है, इसमें वे कितने सफल होते हैं, ये बड़ा सवाल है।