देश के जिस शहर में विकास के बड़े-बड़े मसीहा रहते हैं उस शहर के विकास में आखिर कौन सी ऐसी बाधा है जो इस शहर में एक अदद ‘ रोप- वे ‘ नहीं बनने दे रहा .जी हाँ इस अभागे शहर का नाम है ग्वालियर. ग्वालियर दुर्ग पर जाने के लिए रोप वे बनाने के प्रस्ताव को दो दशक होने को आये लेकिन इस परियोजना को पूरा करने के लिए कोई तैयार नहीं है.
ग्वालियर में छटवीं शताब्दी में बना ग्वालियर दुर्ग मौजूद है. कोई ढाई किलोमीटर लम्बे इस दुर्ग की ऊंचाई 342 फीट है .इस किले पर चढ़ने के लिए सड़क मार्ग है .यहां या तो आप अपने निजी वाहन से जा सकते हैं या फिर पैदल. किले पर भारतीय पुरातत्व सर्वे के अधीन प्रसिद्ध मानमंदिर के अलावा अनेक मंदिर और संग्रहालय है ,लेकिन यहां तक पहुँचने के लिए रोप वे नहीं है .जबकि मध्यप्रदेश के छोटे से छोटे धर्मस्थलों पर रोप वे बन चुके हैं .
ग्वालियर में रोप वे की मांग बहुत पुरानी है .स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के समय भी ये मांग उठी लेकिन वे इस मांग पर हमेशा मौन रहे. बाद में कोई डेढ़ दशक पहले तत्कालीन महापौर श्रीमती समीक्षा गुप्ता ने इस दिशा में पहल की किन्तु बात आगे नहीं बढ़ी. उनके बाद महापौर विवेक शेजवलकर ने कोलकता की एक कम्पनी से रोप वे बनाने का अनुबंध कर 15 साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस रोप वे का शिलान्यास करा दिया. स्वर्णरेखा नाले के पास परियोजना का डाफ्ट्र भी खुल गया और आधार प्लेटफार्म भी बन गया ,लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वे से इस रोप वे के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं मिला .
ग्वालियर पर अपनी जान न्यौछावर करने का दावा करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया तत्कालीन कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे लेकिन वे भी अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं दिला पाए ,या दिलाया नहीं. 2014 से केंद्र में ग्वालियर के नरेंद्र सिंह तोमर मंत्री है किन्तु उन्होंने भी इस परियोजना में दिलचस्पी नहीं ली. माधवराव सिंधिया की बहन श्रीमती यशोधरा राजे भी दो बार ग्वालियर की सांसद रहीं किन्तु उन्होंने भी इस परियोजना में हाथ नहीं डाले .पहले आरोप लगा की खुद सिंधिया इस रोप वे के खिलाफ हैं ,क्योंकि ग्वालियर दुर्ग पर जहां रोप वे का स्टेशन बनना है वहां सिंधिया स्कूल है और सिंधिया नहीं चाहते कि रोप वे की वजह से स्कूल की निजता प्रभावित हो .लेकिन सिंधिया ने कभी इस आरोप का खंडन नहीं किया .
रोप वे बनाने के लिए महपौर के रूप में सक्रिय विवेक शेजवलकर वर्तमन में ग्वालियर के सांसद हैं ,सांसद विवेक नारायण शेजवलकर का कहना है कि यह दुर्भाग्य की बात है कि ग्वालियर के नेता पर्यटन को बढ़ाने के लिए बैठक कर रहे हैं, लेकिन महत्वकांक्षी योजना और रोपवे को लेकर कोई भी बात नहीं कर रहा है. सांसद विवेक नारायण शेजवलकर इस प्रोजेक्ट के स्थान में बदलाव और लेट लतीफी को लेकर नाराज हैं. इस बारे में उन्होंने नगर निगम कमिश्नर को कई बार पत्र भी लिखे हैं.लेकिन अब उनकी कोई सुनता नहीं .वे सांसद में इस बाबद बोलने से कतराते है क्योंकि वहां पहले से रोप वे के विरोधी मौजूद हैं .
नगर निगम ग्वालियर ने गत दिवस वर्ष 2022 के लिए 1338 करोड़ रूपये का सालाना बजट पेश किया लेकिन इसमें भी रोप वे का कोई जिक्र नहीं है .यानि नगर निगम की प्राथमिकता में ये है ही नहीं. ग्वालियर में स्मार्ट सिटी परियोजना ने भी इस परियोजना से दूरी बनाकर रखी क्योंकि बड़े लोग नहीं चाहते कि रोप वे बने .कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आरपी सिंह का आरोप है कि पर्यटन की दृष्टि से रोप-वे काफी अहम प्रोजेक्ट है. लेकिन सिंधिया घराने की वजह से यह प्रोजेक्ट धूल खा रहा है. हर बार जय विलास पैलेस के इशारों ने सरकारी आदेशों को फाइलों में बंद हो जाने के लिए मजबूर कर दिया. स्कूल प्रबंधन की आपत्ति की वजह से हर बार काम शुरू होने से पहले ही रोक दिया जाता है.प्रबंध कमेटी के प्रमुख खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं .
ग्वालियर को विकास की मुख्यधारा में शामिल करने का दावा करने वाले नेतृत्व को पता है कि
25 मई 2006 को एमआईसी ने प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गयी थी . 5 जून 2018 को दामोदर रोपवे के साथ अनुबंध हुआ .कंपनी को वोट क्लब के पास फूलबाग स्टेशन से लैंडिंग स्टेशन किला तक निर्माण कराना था .पुरातत्व विभाग और अन्य विभागों की एनओसी नहीं मिलने के कारण 8 – 10 साल निर्माण शुरू नहीं हो सका. 9 जुलाई 2015 को फिर से 7 एएसआई से 2 साल में काम करने की एनओसी मिली लेकिन 2020 पुरातत्व ने किले की दीवार को खतरा बताते हुए रोपवे की लैंडिंग दीवार के पास के बजाय दूर करने को कहा. यही मामला फंसा हुआ है .
कंपनी ने अभी तक रोप-वे के कार्य के रूप में फूलबाग स्थित लोअर टर्मिनल बनाया है. इसके अलावा कोई भी कार्य नहीं किया .सिवाय इसके कि 10 जनवरी 2010 को रोप वे के लिए भूमि पूजन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने किया ..इसके बाद 25 नवंबर 2015 को महापौर विवेक नारायण शेजवलकर ने ही फूलबाग लोअर टर्मिनल के निर्माण कार्य का भूमि पूजन किया.
मध्य प्रदेश में जहां विकास को लेकर राजनीति नहीं है वहां ग्वालियर दुर्ग के मुकाबले बहुत छोटे पहाड़ों पर रोप वे बन चुके हैं .सलकनपुर माता का मंदिर [भोपाल] मैहर शारदा माता मंदिर[सतना] भेड़ाघाट जलप्रपात [जबलपुर] टेकरी जैन मंदिर [देवास] और कामदगिरी परिक्रमा पथ लक्ष्मण पहाड़ी पर रोप वे लगने के बाद पर्यटकों की संख्या बढ़ी है,.ग्वालियर में तो रोप वे बनने से पर्यटकों की संख्या चार गुना हो सकती है ,लेकिन हो कैसे ? पहले कोई राजनीति का ग्रहण तो हटाए ! यहां आमेर के किले की तरह किले पर चढ़ने के लिए न हाथी हैं और न घोड़े .
आम जनता के पास कारण नहीं हैं और सरकार के पास रोप वे .हैरानी की बात ये है कि भारतीय पुरातत्व सर्वे को किले पर फसाद लाइट लगाने में आपत्ति नहीं है, ग्वालियर दुर्ग पर एक पत्थर की बावड़ी पर एक धर्म विशेष द्वारा कब्जा करने के मामले में विभाग कुछ नहीं करता ,किले कि तलहटी में चौतरफा अतिक्रमण की और से सबने आँखें बंद कर ली हैं लेकिन रोप वे सबकी नजर में खटकता है