इमरान के पास कौनसा तुरुप का पत्ता?

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अब पाकिस्तान में इमरान सरकार का बचना मुश्किल है। कल पाकिस्तान के सेनापति क़मर बाजवा और आईएसआई के मुखिया जनरल नदीम अंजुम से इमरान की काफी लंबी भेंट हुई। ये दोनों इमरान से नाराज हैं। यदि इमरान ने इन दोनों को पटा लिया हो तो हो सकता है कि इमरान हारी हुई बाजी जीत जाएं, क्योंकि पाकिस्तान की राजनीति की असली धुरी फौज ही है। पाकिस्तान के जो राजनीतिक दल इमरान की पार्टी पीटीआई को समर्थन दे रहे थे और उसकी अल्पमत की सरकार को जिंदा रखे हुए थे, वे भी फौज का बदला हुआ रवैया देखकर अब इमरान का साथ छोड़ रहे हैं। इमरान के अपने लगभग दो दर्जन सांसदों ने बगावत का झंडा थाम रखा है। यदि इमरान उन्हें भी किसी तरह जोड़े रखें तो भी अब मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के 7 सांसद विरोधी खेमे में शामिल हो गए हैं। इमरान की गठबंधन सरकार सिर्फ 5 सदस्यों के बहुमत से चलती जा रही थी। वह अब अल्पमत में चली गई है। इमरान अब भी इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। वे कहते हैं कि अभी भी उनके पास ‘तुरुप का पत्ता’ है। उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री पद से अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री का इस्तीफा करवाकर मुस्लिम लीग (क़ा) के परवेज इलाही को मुख्यमंत्री बनवा दिया है ताकि इस पार्टी के 7 सांसद टूटे नहीं। समझ में नहीं आता कि इमरान अब कौनसा तुरुप का पत्ता चलनेवाले हैं? क्या वह अपनी जगह अपने बागियों में से किसी को प्रधानमंत्री बनाकर अपनी सरकार बचा लेंगे? वे अपनी संसद को भंग भी करवा सकते हैं ।सभी विरोधी दल मांग कर रहे हैं कि 3 अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव के पहले ही इमरान इस्तीफा दे दें लेकिन इमरान तो इतिहास बनाने पर तुले हुए हैं। 1957 में सिर्फ दो माह तक प्रधानमंत्री रहनेवाले इब्राहिम चुंदरीगर ही ऐसे एक मात्र प्रधानमंत्री हुए हैं, जिन्हें संसद में अविश्वास प्रस्ताव के कारण अपना पद छोड़ना पड़ा था। इमरान उन्हीं की राह पर हैं। आज तक पाकिस्तान में एक भी प्रधानमंत्री ऐसा नहीं हुआ है, जो पूरे पांच साल तक अपनी कुर्सी में टिका रहा हो। यह तथ्य ही बताता है कि पाकिस्तानी लोकतंत्र कितना दुर्दशाग्रस्त है। उसके प्रधानमंत्री को कभी फौज उलटती रही, कभी राष्ट्रपति पलटते रहे और कभी उनकी हत्या हो गई। अब जो सरकार बनेगी, उसके प्रधानमंत्री बनने की संभावना शाहबाज शरीफ की है। वे तीन बार पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और आजकल सबसे बड़े विरोधी दल के नेता हैं। उनके बड़े भाई मियां नवाज़ शरीफ और फौज के रिश्ते कितने कटु हैं, सबको पता है। अब पता नहीं कि शाहबाज को फौज कब तक और कैसे बर्दाश्त करेगी? यह हो सकता है कि प्रधानमंत्री शाहबाज शीघ्र ही आम चुनाव की घोषणा कर दें। अर्थात पाकिस्तान हमेशा की तरह अस्थिरता के एक नए दौर में प्रवेश कर जाएगा।