भाजपा मे दो खेमों के सरदार शैलेष दुबे ओर बृजेन्द्र चुन्नू शर्मा के नजदीकियों की चर्चा लंबे समय से चल रही है। शैलेष दुबे जिले की राजनीति में वजनदार नाम है, तो चुन्नू शर्मा भाजपा और कॉरपोरेट जगत में दखल रखते हैं। एक समय था जब दोनों खेमे एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी माने जाते थे। लेकिन, पिछले कुछ महिनों से इन दोनों की निकटता सार्वजनिक समारोह मे एक मंच पर देखी जा रही है और इसके अलग-अलग मायने तलाशे जा रहे है।
कहावत है कि राजनीति में न दोस्ती स्थायी होती है न दुश्मनी। यह दोस्ती काॅपरेटिव बैंक के अध्यक्ष पद के चुनाव तक ही सीमित रहेगी या आगे भी चलेगी, यह एक बड़ा सवाल है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है और इन दोनों का दुश्मन एक ही है जो नदिया के पार है। अपने अस्तित्व को बचाने और भविष्य के राजनीतिक समीकरण अपने पक्ष में साधने के लिए दोनों विरोधियों ने हाथ मिलाया है। ये इनकी मज़बूरी भी थी और वक़्त की जरुरत भी।
गरजने वाली सरकार यहाँ खामोश क्यों!
शिवराज सरकार महिलाओं की हितेषी है, तो भाजपा जिला अध्यक्ष पर एक महिला द्वारा लगाए गए उत्पीडन के आरोप के बारे में क्या कहेंगे! यह सवाल जिला भाजपा कार्यालय पर आयोजित एक पत्रकार वार्ता में पूछा गया। पूछे गए सवाल पर सभी सन्न रह गए। प्रदेश मंत्री संगीता सोनी ने सफाई देते हुए कहा कि मामला अभी न्यायालय में है। जल्द ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
केन्द्र की मोदी और प्रदेश कि शिवराज सरकार की उपलब्धियों को बताने के लिए पत्रकार वार्ता आयोजित की गई थी। इसमें भाजपा की प्रदेश मंत्री संगीता सोनी, भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य ओमप्रकाश शर्मा, भाजपा महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष सुनिता अजनार पत्रकारों से रूबरू हो रहे थे। भाजपा जिला अध्यक्ष लक्ष्मणसिंह नायक पर एक महिला के उत्पीडन का मामला पिछले कई महिनों से सुर्खियों में है। इसे लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी मुददा उठा चुकी है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा तक यह मामला पहुंचा था ओर जिला अध्यक्ष को कई जगह सफाई देना पड़ी! लेकिन, मंच से गरजने वाली सरकार अपने ही जिला अध्यक्ष के मामले में गोलमाल जवाब देने के लिए क्यों मजबूर है!
कांग्रेस को याद आई ‘कलावती जीजी’
पिछले दिनों जिला कांग्रेस कमेटी कार्यालय पर एक आयोजन में विधायक कांतिलाल भूरिया की मौजूदगी के बावजूद मंच के सामने पांडाल की कुर्सियां खाली दिखाई दी। आयोजन में गिनती के कार्यकर्ता उपस्थित थे। ऐसे समय कांग्रेसियों को दबंग नेत्री स्व कलावती भूरिया की याद आ गई। जोबट विधानसभा की कांग्रेस की दिवंगत विधायक कलावती भूरिया का पिछले साल कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया था।
‘जीजी’ के नाम से क्षेत्र में अपनी पहचान रखने वाली कलावती के निधन से अलिराजपुर-झाबुआ जिले मे कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ है। वहीं, कांतिलाल भूरिया और उनके पुत्र विक्रांत भूरिया को पारिवारिक क्षति भी हुई। कलावती भूरिया ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एकजुट करके पार्टी को मजबूत बनाए रखा था। जिसका फायदा कांतिलाल भूरिया को हमेशा मिलता रहा। कुछ कांग्रेसियों ने दबी जुबान मे कहा है कि कलावती भूरिया के निधन से कांग्रेस व कांतिलाल भूरिया का जनाधार कम हुआ है। बात असहज लगे, पर इस बात में दम तो है और वो दिखाई भी देने लगा!
भाजपा नेता मास्टर साब से दुखी!
भाजपा में लक्ष्मण मास्टर से पार्टी के नेता परेशान और दुखी है। मास्टर ने कई भाजपा नेताओं को हाशिए पर ला दिया। इनमें वो नेता भी है, जो अपने समय में जिले व प्रदेश की राजनीति में दम रखते थे। प्रशासन पर रौब झाड़ते थे, लेकिन अब बगले झांक रहे हैं। भाजपा और संगठन में परिवर्तन से कई नेता व कार्यकर्ता गुटबाजी का शिकार हुए है।इनमें दो नेताओं का दर्द फूट फूटकर कर निकल रहा है। एक नेता तो मास्टर साहब से जाकर मिल भी लिए। लेकिन, मास्टर साहब ने उसे अस्वीकार कर दिया। कारण एक ही था कि वो राजगढ नाका समर्थित खेमे से थे। उस पर भाई साहब का खास होने का ठप्पा लगा था। दूसरे नेता का दुख है कि मास्टर को जिले की कमान दिलवाने मे मेरी भूमिका अहम थी ओर अब मास्टर के तेवर बदल गए।
प्रशासन और मीडिया में सामंजस्य क्यों नहीं!
कलेक्टर के निमंत्रण पर किसी बैठक में गिनती के पत्रकारों का आना अच्छे संकेत नहीं है। यह प्रेस ओर प्रशासन में सामंजस्य के अभाव का संकेत है। दोनों में सौहाद्रपूर्ण संबंध होना चाहिए। क्योंकि, दोनों ही एक-दूसरे के बिना अधूरे है। पत्रकार प्रशासन का आईना है। ऐसी दूरियों को कम करने के लिए त्रैमासिक बैठक आयोजित की जाती थी। बैठक में कलेक्टर ओर पत्रकारों का सीधा संवाद होता था, जो जीवंत रहता था। लेकिन, कुछ सालों से यह बैठक नहीं हुई। इसमें प्रशासन का दोष भी नहीं है।
कुछ एक पत्रकारों ने बैठक मे मुददों से भटकते हुए निजी विषयों कि चर्चाएं शुरू कर दी थी। जिसके बाद उन पत्रकारों ने बैठक में जाना बंद कर दिया, जो बैठक को लेकर गंभीर रहते थे। धीरे-धीरे बैठक ही बंद हो गई। प्रशासन की मंशा है कि मीडिया के साथ संबंधों में सुधार हो तो, प्रशासन किसी पत्रकार संघ अध्यक्ष की राह न देखे। पत्रकार स्वयं अपने आपमें संघ और संगठन है। आज के इस दौर मे पत्रकारों की बाढ आई हुई है। पत्रकारों की भीड़ भरे माहौल में कलेक्टर उन कलमकारों का चयन करे, जिन्होंने पत्रकारिता कि गरिमा को बनाए रखा है। कलेक्टर को स्वविवेक निर्णय लेकर रिश्तों को महत्व देना होगा। इसके लिए जनसम्पर्क अधिकारी को सकारात्मक पहल करनी होगी। आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की समस्या और विकास की योजनाओं को प्रदेश व देश में पत्रकार ही तो पहुंचा सकेंगे।