कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच मध्यप्रदेश में कक्षा पहली से लेकर पांचवीं तक के स्कूल खुल गये हैं। अपने दिल पर अरमानों का पत्थर रख कर अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने मजबूर दिख रहे हैं। मैं यह मजबूरी शब्द इसलिये लिख रहा हूं क्योंकि मुख्यमंत्री जी आपके मातहत शिक्षा विभाग ने ही 20 सितम्बर से स्कूलों को खोलने का फरमान जारी किया है। लिहाजा अभिभावक प्रतिस्पर्धा के इस युग में न चाहते हुए भी बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं। लेकिन इन 2 दिनों में मेरे अपने सूत्रों से प्रदेश बल्कि देश भर में जितनी भी चर्चायें हुई पालक आपके इस निर्णय से असहमत ही दिखे हैं। कारण भी स्पष्ट है जिस प्रकार से कोरोना की दूसरी लहर ने एक विभिषिका के रूप में मानव सभ्यता पर अपना कहर बरसाया था उस टीस से अभी भी लोग बाहर नहीं निकल पाये हैं।
आज ही हिमाचल प्रदेश से जो खबरे बोर्डिंग स्कूल को लेकर आ रही है वह अत्यंत डराने वाली है। मध्यप्रदेश में एक बार फिर कोरोना अपने पांव पसारने को तैयार है। ऐसी स्थिति में छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल भेजकर उन्हें संभावित कैरियर बनाने के लिए भला कौन पालक तैयार होगा। और वह भी तब जब सुविधाओं के अभाव में व्यवस्थाओं ने दम तोड़ दिया हो, तब कोरोना के नये वैरियंट से बच्चें कैसे बच पायेंगे इस बुनियादी सवाल का जबाब अभी भी नहीं मिला है। जाहिर है कोरोना से बचने के लिए दो गज दूरी मास्क है जरूरी, हैंड सैनेटाइजर से लेकर संक्रमण से बचने के तमाम वो उपाय किये जाने चाहिये जिससे बच्चों को कोरोना वायरस से बचाया जा सके, लेकिन मुख्यमंत्री जी बड़े अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि ग्रामीण क्षेत्र तो ठीक बड़े शहरों में भी ये सुविधाये मयस्सर नहीं है। उसके ऊपर तुर्रा यह कि निजी स्कूलों के संचालक अभिभावकों पर बच्चों को भेजने का प्राकृतिक दबाव भी बना रहे हैं। दबी जुबान तो लोग यह भी कह रहें हैं कि मध्यप्रदेश में प्राथमिक स्कूलों को खोलने का निर्णय सरकार का नहीं बल्कि शिक्षा माफियाओं का है। जो स्कूल बंद होने से पैसों के लिए छटपटा रहे थे। आज भी इन स्कूलों में जहां कोई दबाव नहीं आप उपस्थिति देखेंगे तो आपको संख्या नगण्य ही मिलेगी। वजह साफ है अभी भी कोई भी पालक न तो इंतजामों से खुश है और ना ही किसी गफलत के वायदे में आना चाहता है।
यदि स्कूलों के माध्यम से बच्चें संक्रमित होने लगे तो कोरोना का विस्फोट किस तरह का होगा यह सिर्फ कयास ही लगाया जा सकता है। जो हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से शहर की बानगी से स्पष्ट दिख रहा है। 18 महीने तक पूरे प्रदेश या यूं कहे पूरे देश में लॉकडाउन का नजारा देखा। जाहिर है अर्थव्यवस्था पर ऐसे मामलों से शिथिलता आती है, लेकिन न्यूनार्मल करने के उद्देश्य से शुतुरमुर्ग बन जाना किसी बुद्धिमानी का काम नहीं। आपने ही तो 12वीं और दसवीं जैसे महत्वपूर्ण कक्षाओं को जनरल प्रमोशन दिया था फिर पहली से पांचवीं तक के बच्चों में किस प्रतिस्पर्धा को खोने का डर है हालांकि आपके मंत्री इंदर सिंह परमार पालकों को भरोसा दिला रहे हैं कि कोरोना के किसी भी प्रोटोकाल का उल्लंघन नहीं होने दिया जायेगा और बच्चों के स्वास्थ्य के साथ कोई भी समझौता नहीं किया जायेगा। साथ ही उनका यह भी कहना किसी अफवाह में नहीं आना चाहिये अपनी जगह बिल्कुल सही है।
लब्बोलुआब यह है कि अभिभावकों के मन में इस समय जो भ्रांतियां फैल रही है उससे निजात दिलाने का काम भी आपका ही है क्योंकि निर्णय तो आपने ही लिया है, स्कूल खुलवाने का। लेकिन जो शंकाये और वास्तविकता धरातल पर दिख रही है उसे कैसे नकार सकते हैं? हो सके तो एक बार फिर अपने निर्णय को सोच कर देखियेगा।