SP Finding It Difficult To Keep Vote Bank Intact: सपा के सामने अपना वोट बैंक बचाए रखने की चुनौती

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अजय कुमार चतुर्वेदी की खास रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी अब एक नयी मुश्किल का सामना कर रही है। पार्टी के सामने अपना वोट बैंक बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है। विधानसभा चुनाव के एक महीने बाद हुए विधानपरिषद चुनाव में भी सपा
की करारी हार के बाद नेतृत्व को इस समस्या से और जूझना पड़ रहा है। विधानपरिषद की 36 सीटों के लिए हुए चुनाव में सपा को एक भी सीट नहीं मिली।
पूर्व मंत्री आजम खान के एक करीबी ने अखिलेश यादव के ऊपर मुसलमानों की अनदेखी का आरोप लगा कर नयी हलचल पैदा कर दी। उधर बरेलवी मरकज के मौलाना शहाबुद्दीन ने भी कह दिया कि अब समय आ गया है कि मुसलमानों को सोचना होगा कि वे किसके साथ खडे हैं और कहां जा रहे हैं।

विश्लेषकों का मानना है कि हाल में संपन्न विधानपरिषद चुनाव में सपा की बुरी हार के पीछे का एक कारण उसे मुस्लिम वोटों का कम मिलना भी है। विधानसभा चुनाव में इस वर्ग ने जहां सपा को खुल कर अपने वोटों से नवाजा वहीं एक महीने बाद हुए दूसरे चुनाव में इन मतदाताओं ने पार्टी से दूरी बना ली।

सपा की परेशानी बढने का एक और कारण शिवपाल सिंह यादव की अलग अलग चाल है। वरिष्ठतम होने के बावजूद प्रतिपक्ष का नेता न बनाए जाने से शिवपाल अपने भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराज बताए जाते हैं। पिछले दस दिनों में वे भाजपा के कुछ बड़े नेताओं और मुख्यमंत्री योगी से मिल चुके हैं। शिवपाल यह ऐलान भी कर चुके हैं कि जल्द ही वे बडी घोषणा करेंगे। उनके भाजपा में शामिल होने की चर्चा जोरों पर है। एक समस्या यह भी है कि शिवपाल यादव अभी राजनीति में सक्रिय रहना चाहते हैं जबकि अखिलेश उन पर राजनीतिक सन्यास लेने का दबाव बनाने का कोई मौका नहीं छोडते। लेकिन दौनों का दिल है कि – मानता नहीं।

हालांकि उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव अभी बहुत दूर है। संसद के चुनाव दो साल बाद यानी 2024 में होने हैं। भाजपा को टक्कर देने के लिए फिलहाल समाजवादी पार्टी ही मैदान में दिख रही है। कांग्रेस की तो उत्तर प्रदेश में स्थिति बहुत कमजोर है। कांग्रेस से कोई क्षेत्रीय दल चुनावी समझोता भी नहीं करना चाहता।
बसपा का भी जनाधार पहले की तुलना में कम हुआ है। लगभग सभी विपक्षी पार्टियों के सामने अपना वजूद बनाए रखने के साथ ही बोट बैंक बचाए रखने की चुनौती है। क्योंकि सभी क्षेत्रीय नेता अपने को बड़ा नेता मानते हैं इसलिए विपक्ष के मोर्चे की फिलहाल उत्तर प्रदेश में कोई संभावना नहीं दिखाई देती है।