Jhuth Bole Kauva Kaate:अजान और नमाज पर तो इस्लामिक देश भले;
सऊदी अरब की कुल आबादी लगभग साढ़े तीन करोड़ है, जिनमें 94 प्रतिशत मुस्लिम हैं और 3 प्रतिशत ईसाई हैं। वहां लगभग 94 हजार मस्जिदें हैं। सऊदी अरब एक इस्लामिक देश होते हुए मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज को कम रखने के आदेश दे सकता है, लेकिन भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश होते हुए भी ऐसा नहीं कर सकता। इसी तरह इस्लामिक देश सार्वजनिक स्थानों और सड़कों पर नमाज़ अदा करने की प्रथा को रोकने के लिए सख्त मानदंड लागू कर चुके हैं, लेकिन भारत में ऐसा करने पर बवाल मच जाता है।
दुनिया में मुसलमानों की सबसे ज्यादा 21 करोड़ जनसंख्या वाले देश इंडोनेशिया ने 70,000 मस्जिदों पर लाउडस्पीकर की आवाज कई साल पहले ही कम कर दी थी। लोगों ने तेज आवाज के बुरे प्रभावों जैसे अवसाद, क्रोध, अनिद्रा आदि से पीड़ित होने की शिकायत की थी। नाइजीरिया में तो वर्ष 2019 में ही मस्जिदों और चर्चों पर लाउडस्पीकर के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लग गया था। पाकिस्तान भी पीछे नहीं रहा।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार ने वर्ष 2015 में एक अध्यादेश जारी किया था, जिसके अंतर्गत मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज को कम रखने और इसका इस्तेमाल सिर्फ अजान के लिए करने को कहा था। नीदरलैंड, जर्मनी, स्विटजरलैंड, फ्रांस, यूके, ऑस्ट्रिया, नॉर्वे और बेल्जियम सहित अनेक देशों में भी ध्वनि प्रदूषण की वजह से मस्जिदों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को सीमित किया जा चुका है। लागोस और अमेरिकी राज्य मिशिगन में कुछ समुदायों सहित मस्जिदों द्वारा लाउडस्पीकर के उपयोग पर स्वतंत्र रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया या प्रतिबंधित कर दिया गया।
भारत में मस्जिदों की संख्या को लेकर कोई स्पष्ट आंकड़ा मौजूद नहीं है। लेकिन कुछ रिपोर्ट दावा करती हैं कि भारत में 3 लाख मस्जिदें हैं। हालांकि भारत में लाउडस्पीकर पर इस तरह का कोई निर्णय या प्रतिबंध आज तक नहीं लगाया गया है। ऐसा नहीं है कि भारत में सिर्फ मस्जिदों पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल होता है। दूसरे धार्मिक स्थलों और धार्मिक अनुष्ठानों में भी लाउडस्पीकर का प्रयोग किया जाता है। लोग इसकी शिकायत भी करते हैं लेकिन भारत में ऐसे मुद्दों को धर्म पर हमले से जोड़ दिया जाता है। जो फैसला सऊदी अरब ने लिया है, अगर वो फैसला हमारे देश में लिया जाता तो शायद बड़े पैमाने पर इसका विरोध शुरू हो जाता। एक खास विचारधारा के लोग भारत के संविधान को खतरे में बताने लगते, लेकिन सऊदी अरब में ऐसा कुछ नहीं हुआ।
इस्लामिक देश ईरान में किया गया एक अध्ययन कहता है कि मस्जिदों पर लगे लाउड-स्पीकर की आवाज 85 डेसिबल से 95 डेसिबल तक होती है. इसके अतिरिक्त कुछ अध्ययन कहते हैं कि भारत में धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज 110 डेसिबल या उससे ज़्यादा होती है। इतनी ऊंची ध्वनि कितना ख़तरनाक है, इसे आप इस बात से समझ सकते हैं कि 70 डेसिबल से ऊंची आवाज़ इंसानों के अन्दर मानसिक बदलाव ला सकती है। ये हमारे शरीर की धमनियों में खून के प्रवाह को भी बढ़ा सकती है। कई बार इससे आपका ब्लड प्रेशर भी बढ़ सकता है।
अज़ान नमाज़ का मुस्लिम आह्वान है, जो दिन में पांच बार मस्जिद से किया जाता है, जिससे कि अनुयायियों को सामूहिक प्रार्थना में शामिल किया जा सके। पैगंबर मुहम्मद ने मदीना प्रवास के बाद इस प्रथा की स्थापना की और वहां एक मस्जिद का निर्माण किया। लोगों को पांच समय की नमाज के लिए मस्जिद में बुलाने के तरीके के बारे में उन्होंने अपने साथियों के साथ इस मुद्दे पर विचार-विमर्श किया।
किसी ने घंटी बजाने, किसी ने हॉर्न बजाने और किसी ने आग जलाने की सलाह दी। लेकिन, दैवीय प्रेरणा के अंतर्गत, पैगंबर ने मानव आवाज पर फैसला किया। स्पष्ट रूप से, उनके अनुयायियों के लिए इसमें एक सबक है, जिन्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या लाउडस्पीकर की यांत्रिक रूप से प्रवर्धित ध्वनि मानव आवाज है, जिसे पैगंबर स्वीकार कर सकते हैं। मस्जिदों में मीनार अज़ान के लिए ही बनाए गए।
बोले तो, एक आधुनिक मस्जिद में लाउडस्पीकर गैर-मुसलमानों की निजता में घुसपैठ है। सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में भारत बनाम चर्च ऑफ गॉड के मामले में धार्मिक उद्देश्य के लिए लाउडस्पीकर के उपयोग के मुद्दे पर कहा, “संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के अंतर्गत लाउडस्पीकर या इसी तरह के उपकरणों का उपयोग करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। इसके विपरीत, ध्वनि प्रदूषण नियमों के विपरीत ऐसे उपकरणों का उपयोग मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकार के साथ-साथ उन्हें किसी ऐसी बात को सुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जिसे वे सुनना नहीं चाहते।” न्यायालय ने आगे कहा कि कोई भी धर्म यह नहीं कहता है कि प्रार्थना दूसरों की शांति भंग करके की जानी चाहिए और न ही यह उपदेश देता है कि वो आवाज बढ़ाकर या ढोल बजाकर होनी चाहिए। एक सभ्य समाज में धर्म के नाम पर, ऐसी गतिविधियां जो वृद्ध या अशक्त व्यक्तियों, छात्रों या बच्चों को सुबह या दिन के समय या अन्य गतिविधियों को करने वाले अन्य व्यक्तियों को परेशान करती हैं, करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जनवरी 2020 में कहा कि मस्जिदों को अज़ान के प्रयोजनों के लिए ध्वनि प्रवर्धक प्रणाली का उपयोग करने से ध्वनि प्रदूषण के आधार पर और क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए मना किया जा सकता है। मई 2020 में फिर से, न्यायालय ने अज़ान के प्रयोजनों के लिए लाउडस्पीकर के उपयोग पर स्थापित कानूनी स्थिति को दोहराया। इसने कहा, “जब तक ध्वनि प्रदूषण नियमों के अंतर्गत संबंधित अधिकारियों से लाइसेंस की अनुमति नहीं मिलती है, तब तक किसी भी परिस्थिति में, किसी भी ध्वनि-प्रवर्धक उपकरणों के माध्यम से अज़ान का पाठ नहीं किया जा सकता है।
यदि उपरोक्त माध्यम से अजान पढ़ी जा रही है, तो यह ध्वनि प्रदूषण नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन होगा और इस तरह के नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सकती है। लाउडस्पीकर या सार्वजनिक संबोधन प्रणाली का उपयोग रात में (रात 10.00 बजे से सुबह 6.00 बजे के बीच) संचार के लिए बंद परिसर जैसे, सभागार, सम्मेलन कक्ष, सामुदायिक हाल और बैंक्वेट हाल को छोड़कर नहीं किया जाएगा।
सड़क पर नमाजः आपको याद हो तो, भारतीय मीडिया और ‘धर्मनिरपेक्ष’ राजनेताओं ने 2019 में उत्तर प्रदेश सरकार के उस आदेश को बड़ा मुद्दा बना दिया था जिसमें मेरठ और अलीगढ़ जैसे राज्य के कुछ हिस्सों में सड़कों पर नमाज अदा करने पर सीमित प्रतिबंध के सफल कार्यान्वयन के बाद, प्रदेश सरकार ने राज्य भर में सड़कों पर नमाज अदा करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था। कहा गया था कि विशेष अवसरों पर, जब त्योहारों पर नमाज अदा करने के लिए बड़ी भीड़ इकट्ठा होती है, तो जिला प्रशासन द्वारा इसकी अनुमति दी जा सकती है, लेकिन हर शुक्रवार की प्रार्थना के दौरान इस प्रथा को नियमित रूप से अनुमति नहीं दी जाएगी।
अब बात इस्लामिक देश अबू धाबी की। पुलिस ने 2018 में ही नमाज अदा करने के लिए राजमार्गों पर जहां-तहां अपने वाहनों को रोकने वाले मोटर चालकों पर 1,000 दिरहम (लगभग 20,000 रुपये) का अर्थ दंड लगा दिया था। कारण कि इस तरह की प्रथाएं स्वयं और अन्य सड़क उपयोगकर्ताओं के लिए खतरा पैदा करती हैं।
भारत में मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि नमाज अदा करने के उद्देश्य से सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति एन किरूबाकरण और न्यायमूर्ति कृष्णन रामासामी की पीठ ने 18 जुलाई, 2018 को कहा था कि हर कोई कानून के अंतर्गत पूजा के स्थान या अपने निवास स्थान पर प्रार्थना करने का हकदार है, लेकिन वे सार्वजनिक स्थान पर ऐसा नहीं कर सकते हैं जिससे आम जनता को परेशानी हो सकती है।
झूठ बोले कौआ काटेः उन प्रथाओं को बदलना आवश्यक है जो व्यापक जनता के लिए असुविधाजनक हैं। शुक्रवार की दोपहर की नमाज को छोड़कर मस्जिद में लोगों की भीड़ न के बराबर है। और, जो लोग नियमित रूप से दिन में पांच बार वहां जाते हैं, वे वास्तव में प्रार्थना के समय की याद दिलाने के लिए अज़ान पर निर्भर नहीं होते हैं। इसी प्रकार, नमाज घरों में या छतों पर आयोजित की जा सकती है, यदि मस्जिदें सभी को समायोजित नहीं कर सकती हैं। विशेष दिनों में मस्जिदों में जगह के लिए आरक्षण किया जा सकता है ताकि ज्यादातर लोगों को अपनी मर्जी से नमाज पढ़ने का मौका मिले।
सच ये है कि बांग्लादेश, मलेशिया, अल्जीरिया, जॉर्डन, इराक़, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, कुवैत, मोरक्को, पाकिस्तान, तुर्की, ट्यूनिशिया, मिस्र, लीबिया और लेबनान जैसे देश तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा सकते हैं, लेकिन भारत में इस तरह के प्रतिबंध के लिए 70 वर्षों का इंतज़ार करना पड़ा। भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत लोगों को एक से अधिक विवाह की छूट है जबकि कई इस्लामिक देशों में इस पर रोक लग चुकी है।
तुर्की में वर्ष 1926 से इस पर प्रतिबंध है। ट्यूनिशिया में ऐसा करने पर एक साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। अर्थात्, इस्लामिक देशों में ये सब करना आसान है, लोग प्रगतिशील हैं। लेकिन, धर्मनिरपेक्ष देश भारत में ऐसा करना धर्म पर हमला माना जाता है। लाउडस्पीकर को लेकर मंदिर-गुरुद्वारे या अन्य धार्मिक स्थल और धार्मिक अनुष्ठान भी नियम-कानून से परे नहीं हैं, यह भी समझना होगा।
ये भी गजबः अक्सर अपने विवादित बयानों की वजह से सुर्खियां बटोरने वाले गीतकार और फिल्म लेखक जावेद अख्तर ने मई 2020 में कहा कि लाउडस्पीकर पर अजान से लोगों को परेशानी होती है और इसका ध्यान रखना चाहिए। अख्तर ने कहा कि 50 साल से लाउडस्पीकर पर अजान हराम थी लेकिन जब हलाल हुई तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। उन्होंने उम्मीद जताई कि हो सकता है लोग इससे होने वाली परेशानी को समझें और खुद से ही ऐसा करना बंद कर दें। उन्होंने लिखा, ‘इससे लोगों को परेशानी होती है। उम्मीद है कि उन्हें समझ में आएगा और खुद से ही लाउडस्पीकर पर अजान बंद कर देंगे।’ कुछ समय पहले उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की तुलना तालिबान से कर दी थी तो हाल ही में बुली बाई ऐप बनाने वाले को माफी दिए जाने की अपील करने लगे थे।