नाम और चेहरे बदले, आतंकी हिंसा (Terrorist Violence) के हमले बढ़ते ही रहे

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नाम और चेहरे बदले , आतंकी हिंसा (Terrorist Violence) के हमले बढ़ते ही रहे;

आतंकी हिंसा के रुप दानवी चेहरों की तरह बदलते रहते हैं | गंभीर अपराधों और आतंकवादी गतिविधियों पर कठोर दंड के कानून की रक्षा करने वाली अदालतें आतंकवादी या उसको गुपचुप मदद करने वालों के प्रकरण आने पर पर्याप्त सबूत मांगती हैं | देशी या विदेशी आतंकवादी संगठनों अथवा विदेशी ताकतों से षड्यंत्रपूर्वक गोपनीय ढंग से सहायता मिलने के सबूत जुटाना पुलिस अथवा गुप्तचर एजेंसियों के लिए आसान नहीं होता है | कुछ महीने पहले केरल के कथित पत्रकार सिद्धकी कप्पन पर आतंकवादी हिंसक गतिविधियों में सहायता के आरोपों का प्रकरण सामने आने पर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकान्त ने भारत के सॉलिसिटर जनरल  तुषार मेहता से सवाल किया कि ” क्या पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इण्डिया ( पी ऍफ़ आई ) पर प्रतिबन्ध है ? ” श्री मेहता ने उत्तर दिया कि ‘ कुछ राज्यों में इस संगठन पर प्रतिबन्ध है , क्योंकि यह हिंसा , हत्याओं , अपहरण और विदेशी आतंकवादी संगठनों से जुड़ा हुआ है | केंद्र सरकार प्रतिबन्ध पर विचार कर रही है | ‘

कप्पन की तरह अनेक मामले सामने आते रहे हैं | यह तथ्य है कि पी ऍफ़ आई का जाल अब तक 22 राज्यों में फैला हुआ है | केरल सरकार ने इस पर प्रतिबन्ध भी लगाया था | कर्णाटक सरकार ने हाल ही में अदालत में कहा था कि वह प्रतिबन्ध लगाने पर विचार कर रही है | यों इससे जुड़े सहयोगी संगठन नेशनल विमेंस फ्रंट और कैंपस फ्रंट ऑफ़ इण्डिया भी देश भर में सक्रिय है | वास्तव में पी ऍफ़ आई पहले प्रतिबंधित सिमी ( स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया ) का नया अवतार है |

इस पर हत्या , हथियारों के प्रशिक्षण , अपहरण , भारत विरोधी उग्र आन्दोलनों की फंडिंग ,  तालिबान और अल कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों से सम्बन्ध के गंभीर आरोप रहे हैं | सुरक्षा एजेंसियों ने अनेक प्रमाण भी सरकार को उपलब्ध करा रखे हैं | इसलिए पिछले दिनों जहांगीरपुरी सांप्रदायिक हिंसा की घटना सामने आने पर संदिग्ध आरोपियों के पी ऍफ़ आई से जुड़े होने के कुछ सबूत भी सामने आने पर चिंता होना स्वाभाविक है | इस संगठन की गतिविधियां अब दक्षिण भारतीय राज्यों से उत्तर में बढ़ रही हैं |

 सिमी का गठन तो बहुत पहले जमायते इस्लाम ए हिन्द द्वारा 1977 में किया गया था | लोकतान्त्रिक व्यवस्था और कुछ राजनितिक पार्टियों और नेताओं के सहयोग का  का लाभ उठाकर इसका जाल फैलता गया तथा हिंसक हमले होते रहे | तब 2001 में जाकर इस पर प्रतिबन्ध का सिलसिला शुरु हुआ | हर बार पांच वर्ष का प्रतिबन्ध बढ़ता रहा | इसलिए उसने पी ऍफ़ आई को खड़ा कर दिया | माओवादी नक्सल या पाकिस्तान से मदद लेने वाले कुछ कश्मीरी संगठन इसी तरह नए नए नाम के संगठन खड़े करते रहे हैं |

कानून और लोकतंत्र के अधिकार का ऐसा दुरूपयोग शायद दुनिया के किसी देश में देखने को नहीं मिलेगा | ब्रिटेन , अमेरिका , कनाडा जैसे देशों में कुछ भारत विरोधी आतंकववादी संगठन सक्रिय हैं , लेकिन वे उन देशों में हिंसा फ़ैलाने का खतरा उठाने के बजाय भारत में फंडिंग या अन्य रास्तों से हथियार – ड्रग्स और भेस बदलकर लोग भजते रहते हैं | वे मानव अधिकार का झंडा उठाकर भारत को बदनाम करते हैं या धर्म के नाम पर इस्लामिक देशों से सहायता जुटाते रहते हैं |

इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय उप महाद्वीप को माओवादी और इस्लामी कट्टरपंथियों आतंकियों ने एक भौगोलिक निशाने पर रखा है | इन तत्वों की न तो जन्म भूमि में विश्वास है और न ही किसी राष्ट्रीय सीमा | यही कारण है कि कम्युनिस्ट चीन पाकिस्तान और अफगानिस्तान के  तालिबान सहित संगठनों की आतंकी गतिविधियों पर अंकुश के बजाय अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें सहयता देता है |  भारत में मार्क्सवादी कम्युनिस्टों के बाद घोषित रूप से माओवादी संगठनों ने आदिवासी इलाकों में हिंसक गतिविधियों से तबाही की स्थितियां बनाई | नागरिक – मानवीय अधिकारों के नाम पर नेताओं , वकीलों , डॉक्टरों , पत्रकारों , एन जी ओ ,  सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक वर्ग से ऐसे अतिवादियों को कभी खुलकर और कभी छिपकर सहायता भी मिलती रही है |

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद इन गतिविधियों तथा संगठनों पर कड़ी कार्रवाई का अभियान से चलाया है | जांच एजेंसियां और पुलिस विभिन्न राज्यों में जब कोई कार्रवाई करती है , तो अदालतों में गवाह सबूत का लम्बा सिलसिला चलता है | इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता कि सुदूर जंगलों या छद्म कंपनियों – संगठनों के बल पर जुटाए जाने वाले धन और हथियारों के चश्मदीद गवाह या डिजिटल युग में कागज के प्रमाण कैसे उपलब्ध हो सकते हैं ? हाँ , दिल्ली , मुंबई अथवा अन्य क्षेत्रों में हिंसक घटना में गिरफ्तार आरोपियों पर समयबद्ध सीमा के साथ मुक़दमे चलाकर सजा देने के लिए आवश्यक नियम कानून संशोधित हों या नए बनाए जाएं | खासकर जब ऐसे राजनीतिक दलों के नेता जो राज्यों में सत्ता में भी आ जाती हैं , अधिक समस्याएं उत्पन्न करते हैं | वे विधायिका के विशषाधिकार का उपयोग कर अप्रत्यक्ष रूप से हिंसक आतंकवादी गतिविधियों के आरोपियों को संरक्षण देकर बचाव करते हैं |

सबसे दिलचस्प स्थिति पश्चिम बंगाल की है | दस पंद्रह वर्ष पहले सुश्री ममता बनर्जी सार्वजनिक  रुप से कम्युनिस्ट सरकार पर ‘जंगल राज ” का आरोप लगाती थीं | अब उनके सत्ता काल में सैकड़ों हत्याओं और राजनीतिक हमलों के लिए न केवल भारतीय जनता पार्टी बल्कि कम्युनिस्ट पार्टियां भी अपराधियों को प्रश्रय देने के गंभीर आरोप लगा रही हैं | केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट लगातार सत्ता में हैं और वहां कट्टरपंथी संगठनों को विदेशी सहायता के प्रकरण सामने आ रहे हैं और भाजपा या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं की हत्याओं पर पुलिस की कार्रवाई नहीं हो रही है | जम्मू कश्मीर तो अब भी संवेदनशील इलाका है | लेकिन दिल्ली , उत्तर प्रदेश , राजस्थान , मध्य प्रदेश , पंजाब जैसे राज्यों में हिंसा और आतंक से जुड़े संगठनों और लोगों पर समय रहते अंकुश की जरुरत होगी |

( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इण्डिया न्यूज़ और आज समाज दैनिक के कार्यकारी निदेशक हैं )

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।